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उग आया टहनियों पर आफताब हो जैसे |
दिखता है वो, एक ख्वाब हो जैसे
उग आया टहनियों पर, आफताब हो जैसे
आये छत पर, तो हो जाते खुश इस तरह
उतर आया जमीं पर महताब हो जैसे
झटकना गेसुओं का, होना यूँ सुर्ख गालों का
मेरी इकरार ए मोहब्बत का जवाब हो जैसे
करके सीना जोरी लूट खसोट यूँ इतराने लगा वो
पाया है उसने कोई बड़ा खिताब हो जैसे
चेहरे पर हँसी और दोस्तानी फितरत, 'अंजान'
देखूँ, तो लगे पहना कोई नकाब हो जैसे
© विकास नैनवाल 'अंजान'
लाजवाब बेहतरीन
जवाब देंहटाएंशुक्रिया....
हटाएंसादर नमस्कार,
जवाब देंहटाएंआपकी प्रविष्टि् की चर्चा शुक्रवार ( 08-01-2021) को "आम सा ये आदमी जो अड़ गया." (चर्चा अंक- 3940) पर होगी। आप भी सादर आमंत्रित हैं।
धन्यवाद.
…
"मीना भारद्वाज"
जी मेरी प्रविष्टि को चर्चा लिंक में शामिल करने के लिए दिल से आभार....
हटाएंजी नमस्ते,
जवाब देंहटाएंआपकी लिखी रचना शुक्रवार ८ जनवरी २०२१ के लिए साझा की गयी है
पांच लिंकों का आनंद पर...
आप भी सादर आमंत्रित हैं।
सादर
धन्यवाद।
जी पाँच लिंकों के आनन्द में मेरी रचना को शामिल करने के लिए हार्दिक आभार
हटाएंसुन्दर गीतिका।
जवाब देंहटाएंजी हार्दिक आभार...
हटाएंसुंदर !
जवाब देंहटाएंजी आभार...
हटाएंबहुत ही उम्दा
जवाब देंहटाएंवाह
जी आभार.....
हटाएंबहुत खूब।
जवाब देंहटाएंजी आभार....
हटाएंबहुत खूब !!!
जवाब देंहटाएंउम्दा शायरी ... 🌹🙏🌹
जी धन्यवाद...
हटाएंबहुत बढिया..
जवाब देंहटाएंजी शुक्रिया....
हटाएंबहुत सुंदर।
जवाब देंहटाएंजी आभार....
हटाएंसुन्दर ... भावपूर्ण प्रेम का रस लिए ...
जवाब देंहटाएंजी शुक्रिया.....
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