मेरी पहली कॉमिक बुक खरीद

 


कॉमिक बुक की बातें चली हैं तो पहली कॉमिक बुक खरीद की बात करनी भी बनती है। 

उन दिनों हमारे घर में सिलेब्स से इतर किताबें खरीदने के लिए पैसे अक्सर नहीं दिए जाते थे। मुझे हमेशा से ही कहानियाँ पढ़ने का शौक रहा है और काफी वर्षों तक मैं इसे कुछ अलग तरीकों से पूरा किया करता रहा था। पहला तरीका तो यह था कि मैं जब अपने चचेरे ममेरे भाइयों के यहाँ जाता था तो उनकी हिंदी और अंग्रेजी विषयों की किताबें पढ़ा करता था। उसमें कहानियाँ होती थी जो पढ़ना मुझे पसंद आता था। दूसरा तरीका भी रिश्तेदारों के यहाँ ही पूरा होता था। किसी रिश्तेदार के यहाँ जब कभी मुझे विनीता या गृहशोभा का कोई अंक मिल जाता तो उसमें मौजूद कॉमिक स्ट्रिप मैं पढ़ लिया करता था। उसमें मौजूद कहानियाँ मुझे उतनी नहीं भाती थी। इसके अलावा साल में कभी कभार रिश्तेदार अगर कोई पैसा दे देते तो उससे नंदन या चंपक ली जाती थी और फिर इन्हें तब तक पढ़ा जाता जब तक कोई और रिश्तेदार पैसे न दे दे। कॉमिक बुक के बारे में तो कुछ पता ही नहीं था और सच बताऊँ तो चूँकि उन्हें पढ़ने का मौका कभी लगा नहीं था तो उनके तरफ कोई रुचि भी नहीं थी। 

जहाँ तक मुझे याद आता है कॉमिक बुक्स से मेरा पहला परिचय शायद अपनी सर्दियों की छुट्टियों में हुआ था। यह कब की बात है यह तो याद नहीं है लेकिन इतना याद है कि उस समय मैं पाँचवी छठवीं या सातवीं आठवी में रहा होऊँगा।  सर्दियों की छुट्टियों में उन दिनों हम मामा के यहाँ दिल्ली जाया करते थे। वहीं पर दूसरे नाना जी का परिवार रहा करता था। कभी कभार उधर भी जाना हो जाता था । नानाजी के तीन लड़के थे जिनमे से सबसे छोटे राजू मामा थे जो कि कॉमिक बुक के शौकीन थे। सर्दी की एक ऐसी ही छुट्टी में राजू मामा और उनकी कॉमिक बुक्स से वास्ता पड़ा। उनके पास कॉमिक बुक का काफी बड़ा कलेक्शन हुआ करता था। वह बड़े सूटकेस और बड़े कार्टन्स में कॉमिक बुक रखा करते थे। यहाँ ये बताना भी जरूरी है कि आज भी उन किताबों में से काफी कुछ उनके पास सलामात बचा है और आज भी उनके कलेक्शन से कुछ कॉमिक बुक मैं पढ़ने के लिए गाहे बगाहे ले लिया करता हूँ। 

खैर, उस सर्दी की छुट्टी में पहली बार मुझे शायद कॉमिक बुक्स पढ़ने का अनुभव हुआ था। मुझे याद है कि मामा लोग कॉलेज जाने से पहले एक एक कॉमिक बुक मुझे दे जाते थे जो कि मैं दिन भर में पढ़ता था। इसके बाद कॉमिक बुक मुझे रात को ही मिलती थी और वो भी तब जब मैं होमवर्क कर लिया करता था। वो रात को बैठकर पढ़ा करते थे और मैं पढ़ने के बाद एक कॉमिक बुक पढ़ा करता था। ऐसे ही जितने दिन मैं वहाँ रहा मुझे एक दिन में दो कॉमिक बुक मिले। कभी वो ज्यादा खुश होते या जिस दिन मेरा मेरा  उधर रहने का आखिरी दिन था उस दिन ही तीन चार कॉमिक बुक मुझे मिले होंगे। 

यह एक नया संसार था जो मेरे लिए खोला गया था। उससे पहले तो कार्टून को टीवी पर ही देखा था या इक्का दुक्का मैगजीन में जो कॉमिक स्ट्रिप छपती थी उसी को पढ़ा गया था।

राजू मामा के यहाँ जाना दो चार दिनों के लिए ही था तो अक्सर कॉमिक बुक तभी पढ़ी गईं। हाँ, यहाँ ये बताना जरूरी होगा कि मैं कॉमिक बुक का उन दिनों या आगे भी कभी भी इतना दीवाना नहीं रहा कि उन्हें पढ़े बिना चैन न मिले। पढ़ने को मिलती थी तो पढ़ लेता था और नहीं भी मिलती थी तो ऐसा कोई दुख नहीं होता था। 

उस साल सर्दियों की छुट्टियाँ समाप्त हुई तो घर आना हुआ। मुझे पता था कि कॉमिक बुक फिर अगले साल ही पढ़ी जाएगी और इसलिए मैं कॉमिक बुक को भूल गया। मुझे नहीं याद कि इस बीच साल में कुछ पैसे मेरे हाथ में ऐसे आए हों जिससे कॉमिक बुक लेने का मन बनाया हो। वैसे भी उस समय हमें सीमित पैसे मिला करते थे और चीजें इतनी खरीदनी होती थी कि कॉमिक बुक खरीदने का ध्यान आता भी नहीं था। फिर कॉमिक बुक हमारे यहां पौड़ी में इतनी आसानी से उपलब्ध नहीं होती थी तो खरीदने का लोभ भी कभी नहीं आया।

साल यूँ ही गुजर गया और सर्दियाँ आ गई। सर्दियों की छुट्टियों में दिल्ली जाने का फिर प्लान बना तो सफर के दिन कुछ पैसे भी सफर के लिए दिए गए। चूँकि मैं नानी और मामा के साथ जा रहा था तो इतना तो मुझे पता था कि पैसे खाने पीने में लगने वाले नहीं थे। अब इनसे क्या खरीदा जाए ये सोचना था। फिर कुछ पैसे छुट्टी के लिए भी मिले थे तो सोच समझकर खर्च करने थे।

दिल्ली जाने के लिए हमने बस ली थी। यह बस पहले पौड़ी से कोटद्वार जानी थी। पौड़ी से दिल्ली जाने के लिए डायरेक्ट बस उन दिनों नहीं हुआ करती थी। आज भी एक आध बसें ऐसी हैं जो पौड़ी से सीधे दिल्ली आपको ले जाएँ। आज भी पौड़ी से अगर दिल्ली जाना हो और डायरेक्ट बस में आप न जा पाएँ या उसके टाइम से जल्दी निकलना पड़े तो आपको पौड़ी से कोटद्वार जाना पड़ता है और फिर कोटद्वार से दिल्ली की बस पकड़नी पड़ती है। 

उस दिन भी हमने पौड़ी से कोटद्वार की बस पकड़ी थी। पौड़ी से कोटद्वार जब बस चलती है तो पौड़ी और कोटद्वार के बीच में सतपुली नामक जगह पर रुकती है। यहाँ पर चाय पानी के लिए रुका जाता है और लघु शंका इत्यादि निपटाई जाती है। पंद्रह बीस मिनट के लिए यहाँ बस रुकती है। 

उस दिन का सफर भी नॉर्मल तरीके से कट रहा था। मैं खिड़की से बाहर कभी पहाड़ों को देखता, कभी पहाड़ों में फैली धुंध को देखता या फिर कभी पहाड़ों के उस हिस्से को देखता जो  कि उस समय मेरे तरफ की खिड़की में थी। चूँकि मैं छोटा था तो खिड़की वाली जगह मुझे ही मिली थी। अगर आप पहाड़ में सफर कर चुके हो तो जानते होंगे कि सड़क के घुमाव के साथ बस का वह साइड भी बदलता रहता है जिधर से आपको सामने का नजारा दिखे। कभी आप उस साइड होते हो जहाँ पर आपको वह हिस्सा दिखता है जिधर दूर तक फैले खेत, नदी या दूर मौजूद पहाड़ दिखते हैं और कभी पहाड़ वाली साइड होते जहाँ आप जिस पहाड़ पर काटी गई सड़क पर चल रहे होते हैं उसी पहाड़ के चट्टानी शरीर या उस पर उगी घास पेड़ इत्यादि के कुछ और नहीं देख पाते हैं। 

खैर, सफर चलता रहा और सतपुली आया। बस रुकी और हम उतरे। पहले लघुशंका से निवृत्त हुए और फिर सतपुली में आस पास घूमने लगे। चाय वगैरह तो हमने पीनी नहीं थी क्योंकि नाश्ता वगैरह करके चले थे। 

उन दिनों सतपुली में मेरी बड़ी ताईजी के भाई की दुकान भी हुआ करती थी। मामा और नानी यह बात जानते थे। वह उनसे मिलने उनकी दुकान की तरफ गए तो मैं भी उधर चल पड़ा। ऐसा मुझे याद आ रहा है। मामा और नानी उनसे बात करते हुए हाल चाल लेने लगे और मेरी नजर दुकान में इधर उधर फिरने लगी। पौड़ी में जहाँ स्टेशनरी की दुकान में मुझे कॉमिक नहीं मिली थी (या फिर जिस स्टेशनरी की दुकान में मैं अक्सर जाता था उधर वो नहीं रहती थी) वहीं सतपुली की इस दुकान में मुझे कॉमिक बुक्स टँगी दिख गई। उन दिनों कॉमिक बुक या तो 8 रुपये की आती थी या 16 रुपये की आती थी। जहाँ 8 वाली 32 पेज की रहती थी वहीं 16 वाली डाइजेस्ट यानी 60-64 पेज की रहती थी। इतने दिनों बाद मैंने कॉमिक बुक देखी तो मेरे बाल मन में ख्याल आया कि जिन मामा की इतनी सारी कॉमिक बुक मैंने पढ़ी है और इन सर्दियों की छुट्टियों में भी पढ़ने वाला हूँ  उनके लिए एक कॉमिक बुक गिफ्ट के तौर पर ले जानी चाहिए। चूँकि मेरे पास इस सफर के बजट के लिए केवल 10 रुपये थे तो मैंने आठ रुपये वाली कॉमिक बुक लेने का फैसला लिया। उस दुकान में जिस कॉमिक बुक ने मेरा ध्यान आकर्षित किया वह थी 'गजारा'। जहाँ तक मुझे याद है यह कॉमिक बुक मैंने इसलिए ली थी क्योंकि इसका नाम मुझे समझ नहीं आया था और मैं यही सोच रहा था कि यह गजारा कौन हो सकता है? ऊपर से कवर पर बना चित्र भी आकर्षक लग रहा था। ऐसा हीरो मैं अभी तक नहीं देखा था। मैं ये भी जानना चाहता था कि यह कौन था? खैर, ये तो कॉमिक बुक पढ़कर पता चल ही जाना था। मैंने अपने पैसे से वह कॉमिक बुक ली और दो रुपये वापस लिए। फिर खुशी खुशी बस की तरफ बढ़ गया। 




जहाँ तक मुझे याद पढ़ता है मैंने वो कॉमिक बुक कोटद्वार पहुँचने से बहुत पहले ही खत्म कर दी थी। जब मैं आखिरी पेज पर पहुँचा तो यह देखकर दुख भी हुआ कि कहानी अधूरी थी। वह कहानी अगले कॉमिक बुक 'मौत मेरे अंदर' में खत्म होनी थी। खैर, कॉमिक खत्म हुई और रख दी गई थी। 

उस छुट्टी में जब मैं मामा के पास गया तो गर्व से मैंने उन्हें वह कॉमिक बुक गिफ्ट किया था। यह पहली बार था जब मैंने कोई कॉमिक बुक खरीदी थी और उसे उपहारस्वरूप दिया था। उस समय मुझे पता चला कि मामा भेड़िया के कॉमिक बुक इतने नहीं पढ़ते थे। भेड़िया के कॉमिक बुक उनके पास उतने होते भी नहीं थी। वह नागराज, ध्रुव, डोगा, बाँकेलाल, फाइटर टोड्स के कॉमिक बुक पढ़ा करते थे। उस समय मेरे मन में शायद यह ख्याल भी आया था कि अगर मुझे पहले पता होता तो इन्हीं हीरोज के कॉमिक बुक मैं लेता। ये मुझे आजतक नहीं पता कि उन्होंने गजारा का अगला भाग पढ़ा था या नहीं। जहाँ तक मेरी बात है मैंने आजतक 'मौत मेरे अंदर' नहीं पढ़ा है। कभी पढ़ने का मौका लग ही नहीं पाया। 

लेकिन उस सर्दी की छुट्टी के खत्म होने से पहले उन्होंने भी मुझे इक्के दुक्के कॉमिक बुक गिफ्ट स्वरूप दिए थे।आज भी मैं उनके कॉमिक बुक कलेक्शन से पढ़ने के लिए कॉमिक बुक लेता रहता हूँ और उन्हें कॉमिक बुक गिफ्ट भी देता रहता हूँ। कॉमिक बुक का हमारा प्रेम अब भी जीवित है।  

तो यह थी मेरी पहली कॉमिक बुक खरीदने की कहानी। वो कौन सा कॉमिक बुक था जो आपने सबसे पहले खरीदा था? बताइएगा जरा। क्या आप भी किसी के साथ कॉमिक बुक साझा करते हैं या किसी से कॉमिक बुक पढ़ने के लिए लेते हैं? कौन हैं वो? कमेंट्स के माध्यम से जरूर बताइएगा। 


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2 टिप्पणियाँ

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  1. आपकी यह पोस्ट बहुत रोचक लगी ।अपने बचपन की बहुत सी फैंटम और मेंड्रेक की कॉमिक्स याद आईं जहां तक खरीदने की बात है हमेशा पापा ही लाकर देते थे । बेटे के साथ सुपर कंमांडो ध्रुव,नागराज,फाइटर टोड्स , डोगा और परमाणु की लगभग सभी कॉमिक्स पढी हैं मगर वो भी मैंने कभी नहीं खरीदी ।बहुत अच्छी पोस्ट ।

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