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Image by David Mark from Pixabay |
अटल पैन्यूली युवा कवि और कथाकार हैं। वह फिलहाल बी एड की पढ़ाई कर रहे हैं। दुई बात में आज पढ़िए अटल पैन्यूली की कविता 'मैं हिमालय बोल रहा हूँ'।
मैं हिमालय बोल रहा हूँ
आँचल में खिलते-बुझते,
इतिहासों को तोल रहा हूँ।
मैं हिमालय बोल रहा हूँ।
ना जानें कब से ,
खड़ा हूँ इस भारत भू पर ,
ना जानें कब तक खड़ा रहूँगा,
आखिर कब तक अपनी जिद पर अड़ा रहूँगा।
दुश्मन की कायरता सें,
मेरा मन खौल रहा है,
यह मैं नही,
मेरे लहू का उबाल बोल रहा है।
आँचल में खिलते-बुझते,
इतिहासों को तोल रहा हूँ।
मैं हिमालय बोल रहा हूँ ।
आँचल में खिलता है मेरे,
रंग-बिरंग मेला।
यह वही उर्वरा है,
जिस पर राम,कृष्ण ने खेला।
इस धरती पर हुए कई हैं ,
धीर,वीर,गंभीर।
पर भारत की माटी से ,
निकले हैं सबसे अद्भुत वीर।
मैं इतिहासों को तोल रहा हूँ,
मैं हिमालय बोल रहा हूँ।
छत्रपति, महाराणा ने ,
इस माटी की आन बचाई ।
भगत सिंह ,सुखदेव, राजगुरु,
ने इसकी शान बढ़ाई।
जब भी भारत कैद हुआ है,
दुश्मन की जंजीरों से,
वीरों ने छलनी की दुश्मन की छाती,
अपने पैने तीरों से।
मैं इतिहासों को तोल रहा हूँ,
मैं हिमालय बोल रहा हूँ।
जब भी आवश्यक होगा,
मैं स्वयं रूप धरता हूँ।
इस भूमि की रक्षा को ,
मैं स्वयं रुद्र, मैं स्वयं काल,
बना फिरता हूँ।
दुश्मन हो रक्तबीज तो,
महाकाल बनता हूँ।
भारत की खोयी शाक्ति को,
मैं पुनः जागृत करता हूँ।
फिर , रक्तबीज के गर्म लहू से ,
अपना भीषण खप्पर भरता हूँ।
मैं खुद में समायें इतिहासों को तोल रहा हूँ,
मैं हिमालय बोल रहा हूँ।
खण्ड-खण्ड की इस अखण्ड भू -धरा पर ,
जब तक अस्तित्व है मेरा।
हे भारत के कर्मवीर,
अमर अस्तित्व रहेगा तेरा।
मैं इतिहासों को तोल रहा हूँ,
मैं हिमालय बोल रहा हूँ ।
मैं हिमालय बोल रहा हूँ ।
- अटल पैन्यूली
लेखक परिचय:
अटल पैन्यूली मूलतः उत्तराखंड के टिहरी गढ़वाल से हैं। 31 जनवरी 2001 को जन्में अटल को बचपन से ही लिखने पढ़ने का शौक रहा है। अपनी बी एस सी पूरी करने के बाद अब वह बी एड कर रहे हैं।
वह अपनी कविताओ का पाठ कई मंचों और कई ऑनलाइन प्लेटफार्म में कर चुके हैं। कई ऑनलाइन प्लेटफार्मों में वह अपनी कहानियाँ अक्सर प्रकाशित करते रहे हैं जहाँ लाखों बार उनकी रचनाएँ पाठकों द्वारा पढ़ी जा चुकी हैं।
कुकू एफ एम पर उनकी लिखी कहानियों पर बनी ऑडियो श्रृंखलाओं को कई हजार पाठकों द्वारा सुना और सरहाया जा चुका है।
समर्पक लिंक: फेसबुक
उनकी रचनाओं को निम्न लिंक्स पर जाकर पढ़ा और सुना जा सकता है:
प्रतिलिपि | मातृभारती | कुकू एफ एम
उनकी रचनाओं को निम्न लिंक्स पर जाकर पढ़ा और सुना जा सकता है:
प्रतिलिपि | मातृभारती | कुकू एफ एम
जी नमस्ते,
जवाब देंहटाएंआपकी लिखी रचना आज शनिवार 20 मार्च 2021 को शाम 5 बजे साझा की गई है......... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन " पर आप भी सादर आमंत्रित हैं ....धन्यवाद! ,
जी सांध्य दैनिक मुखरित मौन में इस पोस्ट को स्थान देने के लिए हार्दिक आभार मैम....
हटाएंदुश्मन हो रक्तबीज तो,
जवाब देंहटाएंमहाकाल बनता हूँ।
भारत की खोयी शाक्ति को,
मैं पुनः जागृत करता हूँ।
फिर , रक्तबीज के गर्म लहू से ,
अपना भीषण खप्पर भरता हूँ।
मैं खुद में समायें इतिहासों को तोल रहा हूँ,
मैं हिमालय बोल रहा हूँ।
बहुत सुंदर अभिव्यक्ति।
जी आभार....
हटाएंवाह बहुत ही सुंदर कविता। इस तरह की कविताओं को पढ़कर मन प्रफुल्लित हो उठा। लेखक का बहुत बहुत आभार। उम्मीद करता हूँ कि इनकी और भी कविताओं को विकास भाई मंच प्रदान करते रहेंगे।
जवाब देंहटाएंजी आभार। जी जरूर वह कविता देंगे तो मुझे दुईबात में स्थान देने में ख़ुशी होगी।
हटाएंअटल पैन्यूली को पहली बार पढने का अवसर मिला है ... ....
जवाब देंहटाएंहिमालय का मानवीकरण कर के सच ही हिमालय के मन के भाव उतार दिए हैं पूरी कविता में . बहुत सुन्दर .
जी आभार मैम। अटल दूसरे प्लेटफार्म में ज्यादा सक्रिय है। कविता आपको पसंद आई यह जानकर अच्छा लगा।
हटाएंआपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल रविवार (21-03-2021) को "फागुन की सौगात" (चर्चा अंक- 4012) पर भी होगी।
जवाब देंहटाएं--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ-
--
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
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चर्चालंक में मई हिमालय बोल रहा हूँ को स्थान देने के लिए आभार, सर।
हटाएंविकास भाई.....😊मेरी कविता को अपनें पटल पर स्थान देनें के लिए ह्रदय से आभार ....😍
जवाब देंहटाएंजी आभार। कविता साझा दुईबात के साथ साझा करने के लिए आभार।
हटाएंबहुत सुंदर रचना।
जवाब देंहटाएंजी सही कहा। आभार।
हटाएंकवि परिचय के साथ उनकी बहुत सुंदर रचना ।
जवाब देंहटाएंसाधुवाद।
आभार मैम....
हटाएंपहली बार आना हुआ और पहली बार में ही कविता ने अपनी छाप मन पर छोड़ दी,हिमालय पर लिखी गई बेहतरीन रचना बधाई हो आपको
जवाब देंहटाएंब्लॉग पर आपका स्वागत है मैम... कविता आपको पसंद आई यह जानकर अच्छा लगा, आभार।
हटाएंबहुत ही सार्थक रचना विकास जी। प्रिय अटल के हिमालय पर ये रचना निशब्द करती है। हिमालय के इतिहास, भूगोल और अंतर मन को तोलती रचना के लिए प्रिय अटल को हार्दिक शुभकामनाएं । वे यूँ ही साहित्य के सृजन पथ पर आगे बढ़ते रहें यही कामना है। आपका आभार युवा कवि को प्रोत्साहित करते हुए रचना साझा करने के लिए।
जवाब देंहटाएंजी आभार मैम।
हटाएंबहुत खूब।
जवाब देंहटाएंजी आभार मैम......
हटाएंबहुत सुंदर और सार्थक काव्य लिखा अटल जी आपने, ।आपको बधाई,साथ ही विकास जी आपको भी बहुत शुभकामनाएँ सुंदर कविता से परिचय करने के लिए।
जवाब देंहटाएंआभार मैम...
हटाएंअटल पैन्यूली जी की बहुत ही सुन्दर कविता एवं परिचय साझा करने हेतु धन्यवाद नैनवाल जी!
जवाब देंहटाएंकविता आपको पसंद आई यह जानकर अच्छा लगा मैम। आभार।
हटाएंबहुत ख़ूब ...
जवाब देंहटाएंसारगर्भित रचना जिसका मानवीय पहलू भी कमाल है ... पकवान अभिव्यक्ति ...
आभार....
हटाएंबहुत अच्छी रचना
जवाब देंहटाएंबेहतरीन प्रस्तुति
बधाई
जी आभार सर....
हटाएंपहली बार पढने का अवसर मिला है !!
जवाब देंहटाएंआभार....
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