अपडेट: तहकीकात का चौथा अंक और एक कहानी

 

तहकीकात 4 | नीलम जासूस कार्यालय
बरसात में पौड़ी का एक दृश्य। यह दृश्य कंडोलिया जाने के रास्ते का है। कहानी में कंडोलिया का जिक्र है। 

नीलम जासूस कार्यालय (Neelam Jasoos Karyaylay) द्वारा प्रकाशित पत्रिका 'तहकीकात' (Tehkikat) का चौथा अंक इस जून में जल्द ही रिलीज होने वाला है। इसके लिए ऑर्डर्स उन्होंने लेने शुरू कर दिए हैं। मुझे बताते हुए बड़ी खुशी हो रही है कि इस बार मेरी एक रचना 'आखिरी किश्त' भी इसमें प्रकाशित हो रही है। इससे पूर्व मेरे द्वारा किये गए अनुवाद पत्रिका में प्रकाशित हो चुके हैं लेकिन यह पहली बार है कि मेरी लिखी कहानी इसमें आ रही है। मेरे लिए यह खुशी की बात है। 


'आखिरी किश्त' की बात करूँ तो यह  कुछ ऐसे किरदारों की कथा है जो पौड़ी (मेरे गृह कस्बे) में मिलते हैं।  यह एक अपराध कथा है, अपराधियों की कथा है लेकिन जासूसी कथा नहीं है। यानी इसमें अपराध बस होते हुए दिखता है। अपराधी कौन हैं? किस तरह का अपराध हो रहा है? आखिरी किश्त का क्या मसला है? यह सब तो आपको कहानी से ही पता चलेगा लेकिन कहानी से जुड़ी दो खास बातें मैं आपके सामने इधर जरूर बताना चाहूँगा।  


इस कहानी की पहली खास बात यह है कि यह कहानी गुरुग्राम वाले घर में शिफ्ट होने के बाद ही लिखी गई थी। मेरे दिमाग में बस एक विचार आया था और मैं लैपटॉप पर लिखने लगा था। लगातार तीन चार घंटे लिखने के पश्चात इस कहानी को खत्म करके ही उठा था। उन दिनों मैं छोटी कहानी लिखता था और कोई बड़ी कहानी का विचार मन में आता था तो वह शुरू तो हो जाता था लेकिन खत्म नहीं होता था। ऐसे में जब यह कहानी शुरू हुई और बढने लगी तो मुझे डर लगने लगा कि अगर इसे अधूरा छोड़कर मैं उठ जाऊँगा तो यह भी उन असंख्य टुकड़ों में शामिल हो जाएगी जो कि अधूरे पड़े हुए हैं। यही कारण है कि मैं बस इसे लिखता ही रहा था और किसी तरह खत्म करके ही इसे उठा था।  आखिरकार यह कहानी 4000 से ऊपर शब्दों की बनी थी जो कि मेरे लिए अच्छी बात थी। यह बात 2019 की है। इसके बाद इस कहानी को लिखकर मैं भूल गया। अपने एक दो साथियों से ही बस इसे साझा किया था। फिर तहकीकात में ही देने के लिए इसे संपादक महोदय को दिया था। उन्होंने प्रकाशन की हामी भरी तो आखिरी बार एडिट किया जिससे इसमें 1000 शब्दों का इजाफा हुआ था।  


कहानी की दूसरी खास बात यह है कि यह मेरे गृह कस्बे पौड़ी में बसाई गई है। मुझे पौड़ी की याद आती है तो पौड़ी में किरदार रखकर कहानी लिख लेता हूँ। मेरी पहली प्रकाशित कहानी कुर्सीधार  का घटनाक्रम भी मैंने पौड़ी में ही घटित होते दिखाया था। और उम्मीद है पहले उपन्यास का घटनाक्रम भी उधर ही घटित होते दिखेगा। वो कंडोलिया के भंडारे में लाइन में लगेंगे। रामलीला ग्राउंड में शरदोत्सव और राम लीला का मंचन देखेंगे। बुवाखाल, टेका या मैसमोर तक सुबह सुबह सैर करने जाया करेंगे। कांडे च्यूंचा गांव में क्रिकेट के टूर्नामेंट खेला करेंगे। लेकिन ये जब होगा तब होगा तब तक के लिए आप तहकीकात पत्रिका को बुक कर सकते हैं और इस कहानी का आनंद ले सकते हैं।


अगर लोकप्रिय लेखन में आपकी रुचि है तो आपको इसमें काफी कुछ अपनी पसंद की सामग्री भी मिल जायेगी।


पत्रिका में उर्दू से हिंदी में अनूदित उपन्यासिकाएँ हैं, जनप्रिय लेखक ओम प्रकाश शर्मा की आत्मकथा का अंश है, अंग्रेजी से हिंदी में अनूदित रचना है, कहानियाँ हैं, समीक्षाएँ भी हैं। पत्रिका के कवर पृष्ठ में जिन रचनाओं का जिक्र है वह हैं:


  1. प्रेम-प्यासी - अहमद यार खाँ (उर्दू से हिंदी अनूदित)
  2. माँ की खातिर - मलिक सफ़दर हयात (उर्दू से हिंदी में अनूदित)
  3. जनप्रिय लेखक ओम प्रकाश शर्मा की आत्मकथा का दूसरा भाग 
  4. जामुन का पेड़ - कृश्न चंदर
  5. मौत का फरमान - जैक रिची 
  6. रटंती कुमार - परशुराम (बांग्ला से हिंदी में अनुवाद)
  7. आखिरी किश्त - विकास नैनवाल


Tehkikaat | Neelam Jasoos Karyalay
तहकीकात चार का कवर पृष्ठ

पत्रिका की कीमत 175 रुपये है और आप इसे नीलम जासूस कार्यालय से संपर्क करके मँगवा सकते हैं। प्रकाशक से निम्न नंबर पर संपर्क किया जा सकता है:

9310032467 


पत्रिका के पहले तीन अंक अमेज़न से भी मँगवाए जा सकते हैं:

तहकीकात 1 | तहकीकात 2 | तहकीकात 3 



5 टिप्पणियाँ

आपकी टिपण्णियाँ मुझे और अच्छा लिखने के लिए प्रेरित करेंगी इसलिए हो सके तो पोस्ट के ऊपर अपने विचारों से मुझे जरूर अवगत करवाईयेगा।

  1. Oh, this magazine sounds like a very interesting package! And congratulations. How do you acquire copyright for translation? If you don't mind answering. Actually I want to translate a story that I read in my school textbook (many, many years ago) but don't know how to acquire copyright for translation. I mailed a few people asking about it, but nobody replies. :( Thank you.

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. I usually translate public domain works. For translations of work that are not in public domain you need to contact the writer for doing the translation. If the writer gives his/her permission then you can do it. Generally publishing houses do the task of getting the rights as it may mean giving advance payment to the writer.
      Glad you liked the photo. It was taken during my visit to Kandloiya Mandir during Rainy Season. You can read that blog post here

      हटाएं

एक टिप्पणी भेजें

आपकी टिपण्णियाँ मुझे और अच्छा लिखने के लिए प्रेरित करेंगी इसलिए हो सके तो पोस्ट के ऊपर अपने विचारों से मुझे जरूर अवगत करवाईयेगा।

और नया पुराने