Blogchatter A2Z 2024: E से एक अनोखी सजा

Blogchatter A2Z 2024: E से एक कॉमिक बुक संस्मरण

ब्लॉगचेटर के A2 Z में मैं E तक बिना किसी गड़बड़ के पहुँच गया था। अब एक ऐसा लेख लिखना था जिसके शीर्षक में E हो। सच बताऊँ तो शीर्षक में E वाले किसी लेख के विषय में सोचते सोचते मेरा दिमाग थोड़ा सा भन्ना गया था। वैसे तो कई भारतीय कॉमिक बुक किरदार हैं जिनका नाम Eसे आता है जैसे कि भेड़िया का एक विलेन एलेफांटो लेकिन उसके विषय में लिखना एक तरह से खानापूर्ति ही होती। ऐसा नहीं है कि इस चैलेंज में मैं किरदारों के बारे में नहीं लिखूँगा लेकिन वो खाली लिखने के लिए लिखना नहीं होगा। ऐसे में जब कुछ लिखने को सूझ नहीं रहा था तो सोचा कॉमिक बुक्स से जुड़ा एक संस्मरण ही लिख दूँ। लेकिन कहते हैं न कि आदमी सोच कुछ भी ले होता वही है जो कि होना होता है। मैंने अब शीर्षक तो सोच लिया था और उसे लिखने भी बैठा था कि एक दुर्घटना हो गई। 


मेरी आदत चाय की चुस्कियाँ लेते हुए लिखने की रही है। ऐसा ही मैं कल यानी 5 अप्रैल 2024 को कर रहा था कि तभी लैपटॉप के चार्जर की केबल, जो थोड़ा उलझ गई थी, को मैंने सीधा करने की गलती कर दी। केबल तो सीधी हो गई लेकिन चाय से भरा ग्लास टेढ़ा होकर गिर गया और सारी चाय मेरे कीबोर्ड पर फैल। लैपटॉप के कीबोर्ड की तो पहले से ही बैंड बजी हुई थी। अब जिस यू एस बी कीबॉर्ड पर मेरा टायपिंग का काम होता था वो भी चाय से पूरी तरह से तर हो चुका था और इस तरह कुछ लिखने की मेरी योजना पर चाय फिर गई थी। इसके बाद जद्दोजहद शुरू हुई कीबॉर्ड को ठीक करने की। चाय उससे जितना हो सकता था उतना निकाली लेकिन फिर भी की बॉर्ड की की ढंग से काम नहीं कर रही थी। इसके बाद कीबोर्ड के पेंच खोले गए। उसे खोला गया तो पाया गया कि उसमें अभी भी चाय थी। सूखे कपड़े से उसे किसी तरह साफ किया गया। पंखे के नीचे रखकर उसे पूरी तरह से सुखाया गया। जब लगा कि सब सूख चुका है तो पेंच लगाकर एक और कोशिश की गई लेकिन वही ढाक के तीन पात। की बोर्ड ने काम नहीं करना था तो उसने नहीं ही किया। अब कोई दूसरा चारा नहीं रहा तो अमेज़न की शरण ली गई और एक नया की बोर्ड लिया गया। आज ही वह की बोर्ड आया और अब इस लेख को लिख रहा हूँ। आसपास चाय या कॉफी या पानी या जूस नहीं रखा है ताकि इस बार लेख लिखने के इरादे पर कुछ न फिरे। 


अब वापस कॉमिक बुक से जुड़े संस्मरण पर आएँ तो यह बात होगी तब कि जब मैं आठवी या नवीं में से किसी एक कक्षा में होऊँगा। ज्यादा उम्मीद नवी में होने की की है। खैर, उन दिनों स्कूल में मेरा एक दोस्त हुआ करता था जिसका नाम भी विकास था। हम पक्के दोस्त हुआ करते थे। दोस्ती का आलम ये था कि विकास स्क्वायर की दोस्ती क्लास में चर्चा का केंद्र भी हुआ करती थी। कभी अगर हमारे बीच में झगड़ा हो जाता था तो इस बात की भी चर्चा हो जाती थी कि ये दोनों बातचीत नहीं कर रहे हैं। 


हमारे बीच की इस गहरी दोस्ती के पीछे एक कारण यह भी था कि हम दोनों के शौक लगभग एक जैसे ही थे। उसे और मुझे कॉमिक बुक्स काफी पसंद आती थीं। उसके माध्यम से ही मैंने काफी कॉमिक बुक्स पढ़ी थी और खरीदी भी थी। हम अपनी कॉमिक्स पढ़कर एक दूसरे से अपनी कॉमिक बुक्स साझा भी करते थे। यह दोस्ती कॉमिक बुक्स के साथ साथ विडिओ गेम पर भी लागू होती थी। मैं उन दिनों दुकानों पर बैठकर गेम नहीं खेलता था लेकिन विकास ये काम करता था। उसके साथ एक आध बार लक्ष्मीनारायण मंदिर के सामने चलती एक दुकान पर गेम खेलने जरूर मैं गया था। वहीं विकास के पास विडिओ गेम के कई कैसेट हुआ करते थे और ये कैसट उसके माध्यम से मुझे भी मिला करते थे। मैंने उसके माध्यम से काफी गेम खेले भी थे। विडिओ गेम के कैसेट भी हम एक दूसरे से अदला बदली करते रहते थे। चूँकि यह लेख कॉमिक बुक्स से जुड़ा है तो उसकी बात करते हैं।  


अब जैसा कि अक्सर होता है जो व्यक्ति कॉमिक पढ़ते हैं वो कॉमिक बुक बनाने की भी कोशिश यदा कदा करते ही हैं। मैं और विकास  भी इस मामले में अलग नहीं थे। हम भी उन दिनों कॉमिक बुक्स बनाया करते थे। हम कहानी सोचा करते और फिर अपने सीमित आर्टिस्टिक टैलेंट के साथ उनका चित्रांकन भी करते। 


मुझे याद है कि इनमें से मेरी एक कहानी में एक किशोर चोर हुआ करता था जो कि चोरी के इरादे से किसी इमारत में दाखिल होता था। वह इमारत एक वैज्ञानिक की होती थी और वो चोर उसकी सीक्रेट की लैब में किसी तरह पहुँच जाया करता था। यहाँ एक सूट उसे मिल जाता था। जब चोर उसे देख रहा होता था तो वैज्ञानिक पहुँच जाता था और उनके बीच टकराव होता था। बाद में वैज्ञानिक, जो कि वृद्ध हुआ करता था, चोर को एक तरह से गोद ले लेता था और ट्रेनिंग के लिए भेज देता था। यह चोर ट्रैनिंग पाने के बाद उस कास्टूम की मदद से सुपर हीरो बन जाता था जो वैज्ञानिक ने उसके लिए बनाई होती थी। 


कहानी सिंपल ही है और इसके इर्द गिर्द मैं पैनल बनाया करता था। एक पैनल में चोर भाग रहा है। दूसरे में बिल्डिंग दिखा दी। तीसरे में चोर को खिड़की से दाखिल होता और ऐसे ही आखिर तक पहुँच जाते थे।

 

इन्हीं दिनों मैंने एक सुपर हीरो तारक की भी कल्पना की थी। यह हीरो अंतरिक्ष से आया था और तारों से ऊर्जा लिया करता था। तारों की ऊर्जा सोखकर इसके भीतर अतुलनीय शक्तियाँ आ जाया करती थी। इसका डिजाइन भी मैंने सोचा हुआ था। इसके सिर पर एक बंदाना बँधा होता था जिस पर एक तारा होता था। साथ ही छाती पर भी तारा सा बना होता था। कुछ नीचे दी गई तस्वीर जैसा:


कुछ ऐसा सा होता था तारक। काफी समय बाद पेन कुछ बनाने के लिए पकड़ी है 

ऐसे और भी किरदार रहे होंगे जो बनाए थे उन दिनों  लेकिन अभी यही याद है। विकास भी अपनी अपनी कहानी सोचा करता था और उसे बनाया करता था। 

 

अब हम लोग कॉमिक बुक्स बनाया तो करते थे लेकिन ये काम घर में नहीं होता था। जी हाँ, ये काम हम लोग क्लास में बैठकर करते थे। मैं और विकास साथ ही बैठा करते थे। जब कभी कोई क्लास ऐसी होती जो हमें बोर लगती या जहाँ टीचर कह देती कि आप खुद से कुछ पढ़ लीजिये तो हम अपनी अपनी कॉमिक्स बुक्स बनाने लगते थे। यहाँ ये कहने में मुझे कोई झिझक नहीं है कि विकास की ड्रॉइंग और आइडिया अक्सर मुझसे बेहतर ही होती थी। इस कारण कई बार मुझे उससे रश्क भी होता था। वो एक तरह से कॉमिक बुक्स की दुनिया में मेरे सबसे पहले मेन्टरों में से एक था जिसने विभिन्न कॉमिक बुक्स से मेरा परिचय करवाया था। ऐसे में मेरी इच्छा आर्ट और कहानी में उसकी बराबरी करने की ही होती थी।

 

तो उस दिन भी ऐसी ही एक कक्षा चल रही थी। शायद केमिस्ट्री की क्लास रही होगी। मुझे याद है नवीं में केमिस्ट्री, फिसिक्स और बायोलॉजी के विषय हमारे अलग अलग तो होते थे लेकिन पेपर इनका एक साथ ही होता था। क्लास में शायद शुभा मैम थीं। वो पढ़ा रही थीं और मैं और विकास अपनी अपनी कॉपियों के पीछे कॉमिक बुक्स बनाने में व्यस्त थे। ऐसे में पता नहीं क्या हुआ कि मैडम की नजर हम पर पड़ गई। नजर पड़ी तो उनकी अनुभवी नज़रों ने ये ताड़ लिया कि हम पढ़ने के बजाय कुछ और ही काम कर रहे हैं। मैडम ने पढ़ाना छोड़ा और हम दोनों को कॉपी लेकर अपने पास बुलाया। 


हमें तो काटो तो खून नहीं। हम अपनी जगह पर जम से चुके थे । एक और तेज गर्जना हुई और हमने खुद को मैडम की तरफ चलते हुए पाया। मैडम ने कॉपी माँगी तो हमने काँपते हुए हाथों से कॉपी आगे की। उन्होंने कॉपियों के आखिरी पन्ने देखे तो उधर उन्हें हमारी कलाकारी के कुछ नमूने दिखे। उन्होंने कुछ देर तक उन्हें नाक भौं सिकोड़ कर देखा और फिर हमें अपनी तरफ देखने को कहा। हम लोग तो मुंडी नीचे करके सजा पाने का इंतजार ही कर रहे थे। अपने मन में यही अनुमान लगा रहे थे कि कितनी देर मुर्गा बनना पड़ेगा या क्लास के बाहर रहना पड़ेगा या फिर कितने डंडे पड़ेंगे। लेकिन मैम ने तो हमारे लिया कुछ और ही निर्धारित किया गया था।


उन्हें हमें हमारी हमारी डायरी लाने को कहा तो एक पल को दिल धक करके रह गया। घर तक बात जाती तो बहुत पिटाई होती। वैसे भी घरों में कॉमिक बुक्स पढ़ना समय की बर्बादी समझा जाता था। हम दोनों ही इस चीज से वाकिफ थे। ऐसे में उन्हें पता चले कि बच्चे कॉमिक बुक्स पढ़ने के एक कदम आगे जाकर बनाने लगे हैं तो घर वालों के गुस्से ने सातवें आसमान तक पहुँचना ही था। घर वाले भी सोचते कि इनके कॉमिक बुक्स पढ़ने के कीड़े को तो पैसे न देकर और खरीदी हुई कॉमिक बुक जब्त करके नियंत्रित किया जा सकता था लेकिन अगर कॉमिक बनाने का कीड़ा जाग गया तो हर जगह नई कॉमिक बनने लगती। ऐसे में नियंत्रण करना मुश्किल न होता। ऐसे कई ख्याल उस समय हमारी छोटी सी खोपड़ी में दौड़ने लगे।

 

हम जड़ से हो रखे थे और रूआँसी शक्ल बनाकर मैम को देख रहे थे। अपनी शक्ल से हम पूरे इशारे देने की कोशिश कर रहे थे कि वहीं पर सजा देकर मामला रफा दफा कर दिया जाए। पर वो हमारी मैम थीं उन्होंने तो कुछ और सोचा था। उन्होंने फिर से हमारी जड़ता से हमें जगाया और डायरी लाने को कहा।

 

डायरी मैडम तक लाई गई और उन्होंने उसमें हमारी शिकायत दर्ज की। फिर हम लोगों ने अपनी अपनी डायरी लेने के लिया हाथ आगे बढ़ाया तो उन्होंने हमें अपनी अपनी डायरी देने के बजाए एक दूसरे की डायरी देते हुए यह आदेश थमाया कि उसकी डायरी पर साइन मैं करवाऊँगा और मेरी डायरी पर वो साइन करवाएगा। यानी क्लास में तो हमारी बेइज्जती होनी ही थी अब इस बात का बंदोबस्त कर दिया गया था कि हम दोनों एक दूसरे के घर वालों के सामने भी बेइज्जत होंगे।

 

क्लास खत्म हुई और बाकी के पीरियड जैसे तैसे बीते। दिमाग में बस यही चल रहा था कि इस मुसीबत से कैसे निजात पाएँ। एक बार को दोनों ने सोचा कि अपने आप ही साइन कर लें लेकिन मैम की आँखों में धूल झोंकना मुमकिन न था। अगर ये करते हुए पकड़े जाते और घर तक बात जाती तो मार मार कर घर वाले खाल में पक्का भूसा ही भर देते। जालसाजी तो उनकी नजर में अक्षम्य पाप होती। 


अब सोच लिया था कि जो होगा देखा जाएगा। विकास की मम्मी एक दुकान पर कपड़े सिलती थीं और मेरी मम्मी एएनएम थीं। अब हमने स्ट्रैटिजी बनानी शुरू की। सबसे पहले सोचा गया कि दुकान पर जाकर पहले साइन ले लिए जाएँ। इससे फायदा ये था कि विकास की मम्मी साइन कर देतीं और चूँकि दुकान में होती तो उसकी ठुकाई नहीं होती। फिर यह बात इतनी बढ़ी नहीं थी। हमने कोई गबन थोड़े न किया था। या इग्ज़ैम में चीटिंग थोड़े की थी। ऐसे में कोई बड़ी बात नहीं थी कि दुकान से लौटते समय तक उसकी मम्मी का गुस्सा शांत होने की पूरी संभावना थी।

 

वहीं मेरे बारे में सोचा गया कि विकास शाम के समय, अपने मम्मी के घर आने से पहले पहले,  मेरी डायरी लेकर आएगा। हम लोग आस पास रहते थे तो शाम को साथ में खेलते थे। शाम को जब वो आएगा तो मेरी मम्मी से साइन करवा देगा और उसके एक दो घंटे बाद तक घर में रहेगा ताकि मम्मी को गुस्सा आए भी तो मुझे पीटे नहीं। मुझे इतना तो पता था कि एक दो घंटे नहीं पीटा गया तो बाद में पिटने की संभावना नगण्य थी।  


यह भी सोचा गया था कि साइन करने के दौरान हम एक दूसरे की मम्मियों से ये वादा करेंगे कि आगे से क्लास में तो कोई कॉमिक बुक नहीं ही बनाएँगे।  हमने ये भी सोचा था कि इस घटना के कुछ दिनों बाद तक हम लोग आदर्श बालक बनकर रहेंगे। समय पर जागेंगे, समय पर पड़ेंगे और इस बात की पूरी कोशिश करेंगे कि ऐसा कुछ न हो कि इस बात की सजा देने का मौका बाद में घर वालों को मिले।


यहाँ ये बताते हुए खुशी हो रही है कि हमारा ये प्लान पूरी तरह से सफल हुआ था। साइन करते हुए हमें अपनी अपनी मम्मियों के आग्नेय नेत्रों का सामना करना जरूर पड़ा था लेकिन उससे हम भस्म तो नहीं ही होने वाले थे। चेहरे पर दुनिया भर की ग्लानि पोतकर और मुर्दानी शक्ल बनाकर हमनें अपने लक्ष्य को प्राप्त कर दिया था।

 

मैम ने जो अनोखी सजा हमें दी थी उसी सजा के कारण हमारी ठुकाई होने से बच गई थी। कॉमिक बुक्स में जैसे सुपर कमांडो ध्रुव मुसीबतों को अपने दिमाग एक बल पर चकमा दे देता था उसी तरह से हम भी अपनी मुसीबत को पछाड़ने में कामयाब हो गए थे। 


अब आप सोच रह होंगे कि क्लास में हमने चित्रकथाएँ बनानी जारी रखी या नहीं? भई,  इस बात को तो रहने ही दीजिए। ये लेख मम्मी पढ़ने वाली हैं और इस बार तो विकास भी मुझे बचाने के लिए मेरे घर नहीं आ पाएगा। 


हा हा हा... 



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8 टिप्पणियाँ

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  1. आप लिखते रहें, हम पढते रहेंगे।

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  2. वाह! बहुत बढ़िया। हहहहहहहह

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  3. Enjoyed reading this post! Sorry about the keyboard though.

    It's wonderful that you guys created comics. And your Kishore Chor story idea is so fascinating. You never thought of writing a full length story based on this plot?

    My brother and I used to read comics. He was kind of obsessed (I was his saviour when papa got angry) and had a box full of comics. His favourite was Nagraj while I liked Super Commando Dhruv, we often had debates on this matter. Your sketch is very nice and it reminds me of my brother's sketches.

    Once a little boy, my friend’s cousin, got very friendly with me mainly because I knew everything about comics and the comic characters (I was in college). :))

    Sorry, my comment is so long.


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    1. No worries about the long comment.

      My favourite comic book character was Doga. No, i didn't continued with that story but i'm trying my hands on scripts for a graphic novel. If every thing falls into place i would try to bring it out.

      Thank you for liking the sketch. And Yeah, kids become friendly when they find out you know about things which they like. I keep some comic books handy so that whenever some relative's kid come to my place i could give those comic books to them as going away presents . They get super excited when they receive it.

      हटाएं

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