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Image by kalhh from Pixabay |
गर्मियाँ शुरू हो चुकी हैं और इस वक्त बच्चों की छुट्टियाँ भी पड़ चुकी हैं। चूँकि ये छुट्टियाँ परीक्षाओं के बाद आती हैं तो एक अलग तरह का उत्साह बच्चों में देखने को मिलता है। अपने उन्हीं दिनों को याद करते हुए यह पंक्तियाँ लिखी हैं। उम्मीद है पसंद आएगी।
कितनी खुशियाँ लाई छुट्टी
आ भी चुके परिणाम
पड़ी है अपनी छुट्टीयाँ
पर करने हैं, ढेरों काम
कितनी खुशियाँ लाई छुट्टी
छुप्पन-छुपाई, पकड़म-पकड़ाई
खेलेंगे हम, करे बिना लड़ाई
हम पतंग उड़ाएँगे, दूर उसे पहुँचाएँगे
पेंच हम लड़ाएँगे, खूब धूम मचाएँगे
आई छुट्टी आई छुट्टी
कितनी खुशियाँ लाई छुट्टी
प्यारी मम्मी, प्यारे पापा
कुछ पूछें तो, क्या आप हमें बताएँगे
छुट्टियों के दिन हैं आयें
कॉमिक, नॉवेल और टीवी
क्या हम इनमें भी समय बिताएँगे
या फिर घूमने हम जाएँगे
आई छुट्टी आई छुट्टी
कितनी खुशियाँ लाई छुट्टी
मम्मी पापा बतलाओ न
घुमाने कहाँ हमें ले जाएँगे
इन छुट्टियों में आप
क्या क्या हमें दिखाएँगे
आई छुट्टी आई छुट्टी
कितनी खुशियाँ लाई छुट्टी
चलेंगे नाना-नानी के घर,
या घर दादा दादी के घर दिन बिताएँगे
या घूमेंगे हम यहाँ वहाँ
करते हुए मज़ा मज़ा
क्या आप हमें बतलाएँगे
ये छुट्टी हम कहाँ बिताएँगे
आई छुट्टी आई छुट्टी
कितनी खुशियाँ लाई छुट्टी
बताओ न मेरी प्यारी मम्मी
बताओ ने मेरे प्यारे पापा
किधर आप ले जाएँगे
क्या क्या हमसे कराएंगे
कैसे हम छुट्टियाँ बिताएँगे
कैसे हम छुट्टियाँ बिताएँगे
- विकास नैनवाल ‘अंजान’
नोट: इस कविता को पढ़ने के बाद मेरे पापा, श्री महेश चंद्र नैनवाल ने भी कुछ पंक्तियाँ लिखी हैं। उन्हें भी इधर साझा कर रहा हूँ। उम्मीद है आपको पसंद आएगी।
कब उस को दिखलाओगे
दादा-दादी की विरासत से
कब अवगत हमें करवाओगे
बहुत अच्छे
जवाब देंहटाएंजी आभार...
हटाएंबहुत सुन्दर कविता
जवाब देंहटाएंजी आभार।
हटाएंसुंदर बाल।कविता
जवाब देंहटाएंआभार मैम।
हटाएंपिता-पुत्र के संवाद का संगम कविता में देखते ही बनता है । आप दोनों को इस सुन्दर सृजन के लिए बहुत बहुत बधाई ।
जवाब देंहटाएंजी आभार...
हटाएंवाह!!!
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुन्दर बालकविता...
जी आभार मैम।
हटाएंपिता-पुत्र के संवाद का संगम कविता में देखते ही बनता है । आप दोनों को इस सुन्दर सृजन के लिए बहुत बहुत बधाई ।
जवाब देंहटाएंजी आभार मैम।
हटाएंपिताजी को भी छुट्टियों का लाभ उठाने दो और घुमा लाओ गांव, भले ही हम शहर में रहते हैं लेकिन दिल तो गांव में बसता है
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी यादगार रचनाएँ
जी आजकल तो पौड़ी ही हैं। शहर गए हुए तो काफी वक्त हो गया। लॉकडाउन के बाद दिन पहाड़ में ही बीत रहे हैं।
हटाएंदोनों रचनाएं लाजवाब हैं ... बाल रचनाये कभी कभी ही पढने को मिलती हैं आजकल ...
जवाब देंहटाएंजी आभार...
हटाएंअच्छी कविता। बेहतरीन प्रस्तुति। आभार।
जवाब देंहटाएंजी आभार...
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