कोपल

Image by Holger Schué from ;Pixabay

लम रुक सी गयी है,
स्याही सूख गयी है,
शायद!!

हर्फ उगते से लगते हैं कभी
विचारों की टहनियों पर कोंपलों के जैसे
फिर गिर जाते हैं
सूखे पत्तों की तरह
अचानक!!

खो जाते हैं ऐसे
जैसे कभी थे ही नहीं
मैं खोजता रहता हूँ उन्हें
यहाँ वहाँ
फिर
थककर
हारकर
टूटकर
बिखरकर
बैठ जाता हूँ
बन्द कर देता हूँ अपनी आँखें
ताकि दूर कर सकूँ उस अंधकार को
जो  घेरता जाता है मुझको

मेरी सारी इन्द्रियाँ
देने लगती हैं तकलीफ मुझे
मैं सुबकना चाहता हूँ
दुबकना चाहता हूँ
ऐसे जैसे बचपन में
दुबक जाता था रोते हुए
अपने घुटनों को
अपनी छाती से लगाकर

खो जाता था खुद में
सो जाता था बेफिक्र होकर
और फिर
जब उठता था
तो सब कुछ पाता था नया सा

मैं सोना चाहता हूँ
अब
ताकि फिर उठ सकूँ
और
देख सकूँ उसे
जिसे ढक दिया है
मन में फैले इस अंधकार ने

क्योंकि
मालूम है मुझे 
मैं हूँ
उस नन्ही कोपल सा
जो कि उग आती है
किसी ठूँठ के बीच से
जिसे मान लिया था सभी ने मृत
उस कोपल सा
जो कि होती जरूर है मुलायम
लेकिन फिर भी
होती है भरी
जिजीविषा से
और फूँक देती है प्राण
एक थके हारे ठूँठ में

क्योंकि
मालूम है मुझे 
जब होता है अँधेरा घना
तो वो होता है इशारा
के बस होने को है सुबह
होने के है
उजियारा!!!

मेरी अन्य कवितायें आप निम्न लिंक पर जाकर पढ़ सकते हैं:

© विकास नैनवाल 'अंजान'

16 टिप्पणियाँ

आपकी टिपण्णियाँ मुझे और अच्छा लिखने के लिए प्रेरित करेंगी इसलिए हो सके तो पोस्ट के ऊपर अपने विचारों से मुझे जरूर अवगत करवाईयेगा।

  1. सादर नमस्कार,
    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शुक्रवार
    (19-06-2020) को
    "पल-पल रंग बदल रहा, चीन चल रहा चाल" (चर्चा अंक-3737)
    पर भी होगी। आप भी सादर आमंत्रित है ।

    "मीना भारद्वाज"

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. मेरी रचना को चर्चा में शामिल करने के लिए हार्दिक आभार, मैम।

      हटाएं
  2. जी नमस्ते,
    आपकी लिखी रचना शुक्रवार १९ जून २०२० के लिए साझा की गयी है
    पांच लिंकों का आनंद पर...
    आप भी सादर आमंत्रित हैं...धन्यवाद।

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. मेरी रचना को 'पाँच लिंकों का आनन्द' में शामिल करने के लिए हार्दिक आभार, मैम....

      हटाएं
  3. बहुत अच्छा विकास भाई ....निरंतर ऐसी बढ़िया कविताएँ लातें रहिए...।

    जवाब देंहटाएं
  4. वाह बहुत सुंदर!! बहुत शानदार अभिव्यक्ति।

    जवाब देंहटाएं
  5. आ विकास जी, एक सुंदर रचना,जीवन के रहस्य और अन्तरविरोधों को अभिव्यक्त करती सुंदर कविता! आप मेरे ब्लॉग marmagyanet.blogspot.com पर मेरी रचनाएँ भी पढ़ें और अपने विचार दें। आपके विचार मेरे लिए बहुमूल्य हैं। --ब्रजेंद्रनाथ

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. जी आभार सर। मैं आपके ब्लॉग पर रचनाएँ जरूर पढूँगा।

      हटाएं

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