कल ऑफिस से आ रहा था तो एक दोस्त की पोस्ट देखी। दोस्त का नाम अरुण यादव है। वो दिल्ली आया था और अब वापस जाते हुए उसने पोस्ट लिखी थी। उसी पोस्ट में कमेन्ट के दौरान इसका कुछ भाग लिखा था। फिर कुछ पंक्तियाँ और जुड़ने लगीं। वो मैं भूल न जाऊँ इसलिए ऑफिस से रूम की तरफ आते आते मैंने फेसबुक में उन पंक्तियों को लिखकर डाल दिया। अब इसे ये स्वरुप देकर इधर ब्लॉग में डाल रहा हूँ। अभी उम्मीद है कि कुछ वर्षों बाद इधर आऊँगा और फिर इसे सम्पादित करूँगा।
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तस्वीर का स्रोत : पिक्साबे |
हर हाल में मुस्कराना सीख लिया है,
ज़िन्दगी को है कैसे जीना सीख लिया है,
खुश रहने लगा हूँ मैं अब ,
पुराने गम को भुलाना सीख लिया है,
कैद था जज़्बातों के पिंजरे में अब तलक,
तोड़कर पिंजरा, अब पंख फैलाना सीख लिया है,
कभी करा करता था ऐतबार आँख मूंद कर,
मुखोटा चेहरे से मैंने हटाना सीख लिया है
चुप रहना है मुजरिम होने की निशानी यहाँ,
झूठ चिल्ला चिल्लाकर कहना सीख लिया है
टूट कर बिखरा था कभी 'अंजान',
समेट कर खुद को बनाना सीख लिया है
© विकास नैनवाल 'अंजान'
हर हाल में मुस्कराना सीख लिया है,
जवाब देंहटाएंज़िन्दगी को है कैसे जीना सीख लिया है,
बहुत खूब....,बहुत भावपूर्ण सृजन ।
हार्दिक आभार, मैम।
हटाएंजी नमस्ते,
जवाब देंहटाएंआपकी लिखी रचना शुक्रवार ११ जनवरी २०१९ के लिए साझा की गयी है
पांच लिंकों का आनंद पर...
आप भी सादर आमंत्रित हैं...धन्यवाद।
मेरी रचना को अपने पोस्ट में सम्मिलित करने के लिए हार्दिक आभार श्वेता जी।
हटाएंबहुत खूब ...........
जवाब देंहटाएंधन्यवाद,मैम।
हटाएंबहुत खूब.....आदरणीय
जवाब देंहटाएंहार्दिक आभार, रविन्द्र जी।
हटाएंबहुत सुन्दर...
जवाब देंहटाएंधन्यवाद मैम।
हटाएंसुंदर शब्द चित्र अपनी पांक्तियों में उकेरा है आपने सर..
जवाब देंहटाएंहार्दिक आभार, सर।
हटाएंबहुत सुंदर!
जवाब देंहटाएंशब्द और भाव सब अनुपम।
शुक्रिया, मैम।
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