नई दिल्ली विश्व पुस्तक मेला 2023

नई दिल्ली विश्व पुस्तक मेला 2023
नई दिल्ली विश्व पुस्तक मेला 2023

नई दिल्ली विश्व पुस्तक मेला फरवरी 25 से मार्च 5 2023 तक चला था। अब इसे गुजरे काफी वक्त हो गया है। मैं सोच रहा था कि ये पोस्ट तभी लिख लूँ लेकिन अब जाकर लिखने का मौका आया है। 


2023 से  पूर्व यह मेला 2020 में हुआ था और फिर कोरोना ले चलते अब तीन सालों बाद हुआ। ऐसे में जब इस पुस्तक मेले के होने की खबर मिली तो मैं लालायित था लेकिन मन में एक शंका भी थी। 


पिछले बार भी पुस्तक मेला होने की खबरें ऐसे ही आई थी। स्टॉल भी बुक हो चुके थे लेकिन फिर मेला कैंसल हो गया और सारे अरमानों पर पानी फिर गया। ऐसे में शंका थी कि कहीं दोबारा ऐसा न हो जाए। लेकिन शुक्र है ऐसा हुआ नहीं।


पुस्तक मेले का दिन नजदीक आया तो मन में खुशी भी थी और एक तरह की घबराहट भी थी। खुशी इसलिए कि पुस्तक मेला आखिरकार हो रहा था और घबराहट इसलिए क्योंकि ये साहित्य विमर्श का पहला दिल्ली पुस्तक मेला होने वाला था। ऐसा नहीं है कि इससे पर्व हमने पुस्तक मेले में भाग नहीं लिया था। 2022 जून के वक्त हमने शिमला बुक फेयर में भाग लिया था और उससे पहले टीम ने पटना पुस्तक मेला भी अटेंड किया था। हमने इन अनुभव से काफी कुछ सीखा था लेकिन दिल्ली का पुस्तक मेला इसलिए भी खास था क्योंकि ये एक तरह से होम ग्राउन्ड है। 


और यह बताते हुए खुशी ही हो रही है कि यह मेला ठीक ठाक तरीके से निपट गया। ऐसा नहीं है कि गलतियाँ नहीं हुई। वो तो हुई लेकिन उससे कुछ सीखने को ही मिला जिससे आगे आने वाले मेलों में सुधार ही होगा। 



मेले के अनुभव


अपनी बात करूँ तो इस बार मेरा मेले में कुछ ही दिनों के लिए जाना हुआ। मैं 24 फरवरी, 26 फरवरी27 फरवरी की सुबह को कुछ मिनटों के लिए और फिर 4 मार्च5 मार्च को ही मेले में जा पाया। 

मेले में किताबें भी ली, कुछ समय तक साहित्य विमर्श के स्टॉल पर बैठकर पर्ची भी काटी और साथियों की मदद की, और कई लोगों से मिलना जुलना भी हुआ। हाँ, चूँकि मेरा अधिकतर वक्त साहित्य विमर्श के स्टॉल पर बीतता था इसलिए ज्यादा घूमना फिरना मैंने नहीं ही किया। 


मिलना-जुलना


लोगों की बात की जाए इन कुछ दिनों में काफी ऐसे लोगों से मिला जिनसे काफी वर्षों से नहीं मिल पाया था मसलन राघवेंद्र भाई जो कि साहित्य विमर्श के टीम मेम्बर भी हैं और उनसे लगभग चार पाँच साल बाद ऐसे मिलने हुआ। टीम के बाकी सदस्य सिद्धार्थ अरोड़ा सहर, अभिराज, हितेश भाई, मनीष भाई और गुरुजी से भी काफी दिनों बाद मिलना हुआ था। साथ ही योगी भाई, जिन्होंने प्रकाशन के रूप में हमारी और हमारी स्टॉल की कमियों को गिनाया और इस तरह उसे बेहतर करने में हमारी मदद की, शशिभूषण भाई, दीपक मौर्य भाई, सुशील मिश्रा जी, आबिद भाई, कुलभूषण चौहान जी, कुलदीप गुप्ता भाई, यशवंत जी, देव, विशी सिन्हा जी, सुभाष भारती जी, राज स्टोर के राकेश चौहान जी, तन्वी पारीक,रजत मिश्रा जी, जीतेश तलवानी जी, चैतन्य वत्स उर्फ लोन वुल्फ़ (कॉमिक्स ग्रुप में इसी नाम से जुड़े हैं) इत्यादि। 


इसके साथ कई लेखकों और प्रकाशकों से भी मिलने का मौका लगा जिसमें सत्य व्यास जी, शुभानन्द जी, सुबोध भारतीय जी, देवेन्द्र प्रसाद, मिथलेश गुप्ता भाई, जयंत भाई, मनमोहन भाटिया जी,  जयंती रंगनाथन जी, रणविजय, राम 'पुजारी' जी, अफजल अहमद जी, रूपाली नागर जी,मोहित शर्मा भाई इत्यादि। 


इन लेखकों और मित्रों से बातें हुई। कुछ से ज्यादा और कुछ से कम। कुछ बातें लेखन पर थी कुछ बातें पठन पाठन पर थी। बातें अपनी पसंद की किताबों पर थी। किताबों के दामों पर थीं और मेले में नेट के गायब होने पर भी थी। मोहित भाई, विशी सिन्हा जी के साथ लेखन पर अच्छी चर्चा भी हुई। विशी जी ने बताया वो अपने विषय किस तरह सुनते हैं और उनके रविवार को लगने वाले मार्केट के किस्से और अनुभव भी सुनने को मिले जो कि मुझे बहुत पसंद आए। 


बातों की बात आई है इन्हीं बातों में एक वाक्य ऐसा भी है जो मुझे इस वक्त मुझे याद  या रहा है। जब ये मिलना जुलना हो रहा था तो उस दौरान एक भीड़ में एक महिला का एक वाक्य मेरे कान में पड़ा। उन्होंने कहा था कि किताबें तो हम ऑनलाइन भी मँगवा सकते हैं मेले में मिलने जुलने के लिए आना होता है क्योंकि ऑनलाइन किताबें सस्ती पड़ती हैं। 


इस वाक्य ने मुझे सोचने पर विवश कर दिया कि क्या ज्यादातर लोग यही सोचते होंगे? ऐसा इसलिए क्योंकि मेरे मेले में आने का मकसद कुछ और होता है। दूसरों का पता नहीं लेकिन मुझे लगता है ऑनलाइन हमारे द्वारा केवल उन किताबों को तलाशने की संभावना होती है जिनके विषय में हमें पता है। किसी अनजान लेखक  की अनजान किताब पाने की संभावना नगण्य होती है क्योंकि अक्सर व्यक्ति ऑनलाइन वही तलाशता है जिसके विषय में उसे पता होता है। ऐसे में  ऐसी कई ऐसी पुस्तकें होती हैं जिनके विषय में हमें पता ही नहीं होता है और हम इसलिए उन्हें तलाशते नहीं है। लेकिन पुस्तक मेले में विभिन्न राज्यों से आए प्रकाशकों के स्टॉल पर घूमते हुए कई बार ऐसी अच्छी अनजान किताब मिल जाती हैं। मेरे लिए तो पुस्तक मेला ऐसी ही पुस्तकों को तलाशने का जरिया है। 


मैं अक्सर नैशनल बुक ट्रस्ट, चिल्ड्रन बुक ट्रस्ट, नया ज्ञानोदय, साहित्य अकादमी और पुस्तक मेले में मौजूद कई अनजान प्रकाशकों के पास भी चला जाता हूँ और उधर से कुछ पसंद आया तो उठा लेता हूँ। मेरी कोशिश तो यही रहती है कि मैं मेले में जाऊँ तो किसी अनजान लेखक की किताबें लूँ या जानकार लेखक की कोई अनजान सी किताब लूँ  क्योंकि जिन किताबों और लेखकों के विषय में मुझे पता है उन्हें तो मैं पा ही लूँगा। 


मैंने देखा है कि अक्सर लोग एक लिस्ट सी लेकर पुस्तक मेले में आते हैं और मैं यही सोचता हूँ कि क्या यह अपने आप को बाँधना नहीं हुआ? मुझे ऐसा करना अटपटा लगता है। 


आपका इसके विषय में क्या विचार है? आप पुस्तक मेले में क्यों आते हैं और कैसी किताबों को पुस्तक मेले से लाने के लिए चुनते हैं?


मेले में मेल मिलाप की कुछ झलकियाँ:


नई दिल्ली विश्व पुस्तक मेला 2023
सुजाता जी (मेरी धर्मपत्नी जी) भी स्टाल पर आई थीं तो उन्होंने भी हमारी किताबें पकड़कर फोटो खिंचवाई


नई दिल्ली विश्व पुस्तक मेला 2023
श्वेतांश बाबू के साथ। उनके हाथ में हमारे द्वारा प्रकाशित बाल साहित्य है जो कि वो तब समझेंगे जब नौ दस साल के होंगे 


नई दिल्ली विश्व पुस्तक मेला 2023
लोकेश गौतम भाई

नई दिल्ली विश्व पुस्तक मेला 2023
बाएँ से दायें: मैं, सहर भाई और शशि भूषण भाई

नई दिल्ली विश्व पुस्तक मेला 2023
एक पाठक को उनकी पुस्तक देते हुए। पर्ची मैंने ही काटी थी। साथ में टीम के सदस्य सिद्धार्थ भाई जिनके जान पहचान के ये पाठक थे और समोसे लेकर आए थे। 

नई दिल्ली विश्व पुस्तक मेला 2023
राज स्टोर के राकेश चौहान जी। इनसे पढ़ने के लिए काफी पुस्तकें मँगवाता रहता हूँ


नई दिल्ली विश्व पुस्तक मेला 2023
बाएँ से: रजत भाई, मैं, जितेश भाई और चैतन्य वत्स उर्फ लोन वुल्फ़


नई दिल्ली विश्व पुस्तक मेला
बाएँ से दायें: सुशील मिश्रा जी, अभिराज भाई, राघव भाई, मैं और आबिद भाई


नई दिल्ली विश्व पुस्तक मेला 2023
कुलभूषण चौहान जी आए और उन्होंने मेरे द्वारा अनूदित उपन्यास  'चाल पे चाल' खरीदकर मुझे प्रोत्साहित किया 


नई दिल्ली विश्व पुस्तक मेला 2023
कुलदीप गुप्ता जी मेरे अब तक प्रकाशित दो अनुवादों ली चाइल्ड के 'नेवर गो बैक' और जेम्स हेडली चेज के 'चाल पे चाल' के साथ

नई दिल्ली विश्व पुस्तक मेला 2023
दोस्त और लेखक देवेन्द्र प्रसाद और उनकी नवीन पुस्तक रहस्यमय सफर के साथ 



नई दिल्ली विश्व पुस्तक मेला 2023
बाएँ से दायें: पराग डिमरी जी (पराग जी लेखक भी हैं। इनकी दो पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं।), योगी भाई, दीपक मौर्या भाई, हसन अलमास भाई, मैं और सुशील मिश्रा जी


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बाएँ से दायें: लोकेश भाई, मैं और सुशील मिश्रा जी साथ में सुरेन्द्र मोहन पाठक की झूठी औरत


नई दिल्ली विश्व पुस्तक मेला 2023
लेखक अनिल पुरोहित जी के साथ

नई दिल्ली विश्व पुस्तक मेला 2023
बाएँ से दायें: मैं, लेखक अनिल पुरोहित जी, सुबोध भारतीय जी और सुशील मिश्रा जी 


नई दिल्ली विश्व पुस्तक मेला 2023
लेखिका जयंती रंगनाथन जी के साथ मैं, सिद्धार्थ भाई और मोहतरमा का नाम मुझे मालूम नहीं, सॉरी

नई दिल्ली विश्व पुस्तक मेला 2023
मनमोहन भाटिया जी और उनकी नव प्रकाशित पुस्तक रक्कासा के साथ 

नई दिल्ली विश्व पुस्तक मेला 2023
शुभानन्द जी की आने वाली पुस्तक मिर्जा बेईमान के साथ

नई दिल्ली विश्व पुस्तक मेला 2023
मिथलेश भाई के साथ 

नई दिल्ली विश्व पुस्तक मेला 2023
मिथलेश भाई, शशि भाई और मैं 

नई दिल्ली विश्व पुस्तक मेला 2023
रेडियो जॉकी पंकज जीना जी  के साथ 

नई दिल्ली विश्व पुस्तक मेला 2023
साहित्य विमर्श की टीम के सदस्य राघव भाई के साथ 

नई दिल्ली विश्व पुस्तक मेला 2023
लेखक सत्य व्यास जी के साथ

नई दिल्ली विश्व पुस्तक मेला 2023
नीलम जासूस कार्यालय के सी ई ओ और हैश टैग के लेखक सुबोध भारतीय के साथ 


नई दिल्ली विश्व पुस्तक मेला 2023
वारलॉक शृंखला और चेडेप के लेखक विक्रम दीवान के साथ। हाथ में है चेडेप


तस्वीरें तो और भी थी लेकिन काफी मेरे पास है नहीं। 

किताबों की खरीद फरोख्त


किताबों की बात की जाए तो किताबों की खरीद फरोख्त मैंने दो दिन की। 


26 तारीख को जब आया था तो उस  दिन टीम के साथ अभिषेक सिंह राजावत उर्फ अभिराज के साथ मिलकर नैशनल बुक ट्रस्ट यानी राष्ट्रीय पुस्तक न्यास से कुछ पुस्तकें ली। राष्ट्रीय पुस्तक न्यास से शिमला के बुक फेयर में मैं वीरगाथा शृंखला, जिसमें परमवीर चक्र विजेताओं को लेकर बनाई गई कॉमिक बुक हैं,  की एक कॉमिक बुक (चित्रकथा) मेजर शैतान सिंह लाया था। ये कॉमिक बुक  मुझे तो पसंद आयी लेकिन साथ ही मेरे मामा जी को भी पसंद आई थी ऐसे में उन्होंने मुझे कहा था कि एक सेट उनके लिए भी लेते आना। इस कारण मैं नैशनल बुक ट्रस्ट में गया था और वहाँ से ये सेट तो लाया ही साथ में अन्य कई पुस्तकें भी लाया। 

ये पुस्तकें निम्न हैं:


कॉमिक बुक्स:


वैसे तो वीरगाथा माला की कॉमिक बुक हिंदी और अंग्रेजी दोनों में हैं लेकिन मेरी वरीयता हिंदी भाषा की चित्रकथाएँ लेने की थी। नैशनल बुक ट्रस्ट के स्टॉल पर मुझे दो चित्रकथाएँ तो हिंदी में मिलीं और दो अंग्रेजी में ही मौजूद थीं तो वही लेनी पड़ीं। मैं नौ चित्रकथाएँ लीं जिनमें से चार तो मेरे सेट के लिए थीं और पाँच मामा जी के लिए। 

जो चित्र कथाएँ लीं वो निम्न थीं: 

  1. परमवीर चक्र विजेता कैप्टन मनोज कुमार पाण्डेय (2 प्रतियाँ)
  2. परमवीर चक्र विजेता सेकंड लेफ्टीनेंट अरुण खेत्रपाल (2 प्रतियाँ)
  3. परमवीर विजेता मेजर शैतान सिंह (1 प्रति)
  4. Paramveer Chakra Awardee Major Somnath Sharma (2 प्रतियाँ)
  5. Paramveer Chakra Awardee  Company Qaurter Master Havildar Abdul Hamid (2 प्रतियाँ)
 
मेरे विचार से अगर आपके घर में बच्चे हैं और आप देश के इन सपूतों के नाम और काम से से अपने बच्चों को वाकिफ करवाना चाहते हैं तो यह कॉमिक बुक्स इसका अच्छा माध्यम बन सकती हैं। श्वेतांश बाबू जब बड़े होंगे तब उन्हें भी ये पढ़ाऊँगा। साथ साथ बड़े भी इन चित्रकथाओं को पढ़कर भारत के इन वीर सपूतों के विषय में जान सकते हैं।  पुस्तकें नैशनल बुक ट्रस्ट की साइट से भी जाकर खरीदी जा सकती है।



नैशनल बुक ट्रस्ट से लायी गई चित्रकथाएँ

अन्य पुस्तकें


चित्रकथाओं के अतिरिक्त आठ पुस्तकें मैंने नैशनल बुक ट्रस्ट से ली। इनमें से अधिकतर रहस्य, जासूसी बाल कथाएँ थीं। यह पुस्तकें निम्न हैं:

  1. प्यारे पिताजी - भवेंद्रनाथ साकिया, अनुवाद: नवारुण शर्मा, मूल भाषा: असमिया
  2. खोए मोबाइल का रहस्य - तनुका भौमिक एंडोवअनुवाद: आरती स्मित, मूल भाषा: अंग्रेजी 
  3. तोत्तो- चान - तेत्सुको कुरोयानागी, अनुवाद: पूर्वा याज्ञिक कुशवाहा, मूल भाषा: जापानी
  4. एक वन्यजंतु वार्डन के साहसिक कारनामें - ई आर सी दावेदार, अनुवाद: सुरेश उनियाल, मूल भाषा: अंग्रेजी
  5. पहला अध्यापक - चिंगिज ऐटमाटोव, अनुवाद: भीष्म साहनी, मूल भाषा: रूसी 
  6. बोरी का पुल - सरेखा पाणंदीकर 
  7. बचपन की यादें - माधविकुट्टि, अनुवाद: अरिविंदन एम, मूल भाषा: मलयालम
  8. स्मृति: एक प्रेम की - कृष्ण खटवाणी, अनुवाद: मोतीलाल जोतवाणी, मूल भाषा: सिंधी  


नैशनल बुक ट्रस्ट से लायी गई पुस्तकें


5 मार्च को मैंने चिल्ड्रन बुक ट्रस्ट, फ्लाई ड्रीम्स प्रकाशन और नीलम जासूस कार्यालय से कुछ पुस्तकें की खरीद करी।

 

फ्लाईड्रीम्स प्रकाशन


फ्लाईड्रीम्स प्रकाशन से इस बार उनके निम्न तीन बाल उपन्यास लिए:


  1. गोल्डन फाइव के कारनामें (खजाने का रहस्य और चमकते पत्थर का रहस्य संकलित है)- नेहा अरोड़ा  
  2. आओ बच्चों तुम्हें सुनाएँ - आलोक कुमार 
  3. जादुई जंगल: अश्वमानवों की वापसी - मिथलेश गुप्ता

फ्लाईड्रीम्स से की गई खरीद। पुस्तकों के साथ दो पोस्टर भी मिले। 


नीलम जासूस कार्यालय

नीलम जासूस कार्यालय से निम्न दो पुस्तकें ली:

  1. हैश टैग - सुबोध भारतीय 
  2. एक रात का मेहमान - जनप्रिय लेखक ओम प्रकाश शर्मा

नीलम जासूस कार्यालय | नई दिल्ली विश्व पुस्तक मेला 2023
नीलम जासूस कार्यालय से ली गई पुस्तक 


चिल्ड्रन बुक ट्रस्ट

इस बार चिल्ड्रन बुक ट्रस्ट में भी जाना हुआ और वहाँ से निम्न पुस्तकें खरीदीं:

  1. जासूसों की जासूस - कमला चमोला 
  2. नई कहानियाँ 
  3. पाँच जासूस - शकुंतला वर्मा 
  4. दिल्ली से प्लूटो - हरीश कुमार 'अमित'
  5. तलाश - सुरेखा पाणंदीकर 
  6. लोहे के आँसू - सेवा नंदवाल 
  7. हिम्मत सवार - अमिताभ शंकर राय चौधरी 
  8. सुलझती कड़ियाँ (चार रहस्यमय उपन्यास)


चिल्ड्रन बुक ट्रस्ट से ली गई पुस्तकें



लेना तो बहुत कुछ चाहता था लेकिन पिछले पुस्तक मेलों और मेले से इतर खरीदी पुस्तकों की संख्या इतनी अधिक हो गई है कि घर से ऑर्डर मिला है कि नवीन पुस्तकों को लेने से पहले उन्हें पढ़ना जरूरी है। इसलिए हाथ बांधकर ही खरीदारी करनी पड़ी। घर वालों का कहना भी सही है। पहले की खरीदी पुस्तकें राह तक रही हैं तो उन्हें भी पढ़ना जरूरी है। 


क्या आप पुस्तक मेले गए थे? आपने उधर क्या क्या खरीदा?


पुस्तक मेले की कमी


वैसे तो पुस्तकों का सानिध्य पाना हमेशा से ही अच्छा लगता है लेकिन इस बार के अनुभव को देखा जाए तो पाठक  के रूप में और प्रकाशक के रूप में कुछ अनुभव रहे जिनके विषय में यहाँ पर साझा करना चाहूँगा। 


इस बार मेले के लिए जो हॉल निर्धारित किए गए थे वो मेट्रो से काफी दूर थे। ऐसे में हम लोग जो मेले में मेट्रो के माध्यम से आए उनके लिए मेले तक पहुँचना थोड़ा कठिन था। मेट्रो के नजदीक गेट से मेले के हॉल तक की दूरी लगभग एक डेढ़ किलोमीटर थी। राष्ट्रीय पुस्तक न्यास द्वारा इस दूरी को तय करने के लिए बसे लगाई हुई थीं जिनके लिए जब भी मैं मेले पहुँचा लंबी लाइन ही लगी रहती थी। ऐसे में मैं लाइन मे लगे बिना चलकर ही हॉल तक आता जाता था। 


इससे एक परेशानी तो यह हुई कि हॉल तक पहुँचने के लिए मेहनत अधिक करनी पड़ी। दूसरी यह हुई कि अक्सर पुस्तक मेले में हॉल के नजदीक जो खाने पीने की सामग्री होती है वह महंगी मिलती है। पिछले पुस्तक मेले में हम लोग प्रगति मैदान के बाहर लगे ठेलों में पेट पूजा कर आते थे और कुछ पैसे बचा लिया करते थे लेकिन इस बार ऐसा करना मुमकिन नहीं था। लोगों के पास अंदर आकर ही खाने पीने का विकल्प था लेकिन खाने पीने की जगहों पर जो भीड़ मैंने देखी उससे ऐसा लगा नहीं कि मुझे छोड़कर किसी अन्य को इससे इतना अधिक फर्क पड़ा हो। 


इस बार हॉल एक से पाँच तक में पुस्तक मेला चल रहा था। ऊपर फर्स्ट फ्लोर में भी दुकानदार थे। मैं जितना घूमा नीचे फ्लोर में ही घूमा और ऐसे में 100 की 3 किताबों को बेचने वाली दुकानों जो कि ऊपर वाले फ्लोर में थी उधर नहीं जा पाया। 


हॉल के भीतर एक और तरह की परेशानी हमें पाठक और प्रकाशक के तौर पर महसूस हुई। हॉल इस तरह बने हुए थे कि उधर इन्टरनेट का होना न होना बराबर था। ऐसे में डिजिटल ट्रांसेक्शन न के बराबर हो रहे थे। चूँकि डिजिटल ट्रांसेक्शन कम थे तो प्रकाशकों के पास वही लोग जा रहे थे जिन्हें कैश से किताबें खरीदनी थी और इस कारण शायद बिक्री उतनी नहीं हुई जितना कि तब होती जब डिजिटल खरीददारी होती रहती। कई बार खुले पैसों की भी कमी पड़ जा रही थी और इसके कारण भी पाठकों को छुट्टे पैसे लौटाने की दिक्कत हो रही थी। 


यहाँ प्रकाशन के रूप में हमारी अनुभवहीनता भी दिखी कि हम डिजिटल ट्रांसेक्शन पर ज्यादा निर्भर रहने की सोचकर गए थे और इस कारण पहले के दिनों  में छुट्टे हमारे पास कम ही थे। लेकिन एक आध दिन बाद सभी टीम मेम्बर्स ने इस दिक्कत को काफी कम कर दिया था। छुट्टे तो हमारे पास हो गए लेकिन नेट का कोई इंतजाम नहीं कर सके। ऐसे में कई पाठकों को सूखे सूखे लौटना पड़ा। 


मैं अपनी बात करूँ तो एक दिन तो मेरे पास कैश हो गया था लेकिन अगले दिन मेरे पास खुद कैश कम पड़ गया था। वो तो अच्छा था कि अपना ही स्टॉल था तो उधर से कुछ पैसे उधार ले लिए और फिर अपनी खरीददारी मैंने करी। लेकिन ये सुविधा दूसरे पाठकों को तो नहीं थी न? 


यहाँ ये बात  भी साफ करनी चाहिए कि ऐसा नहीं था कि न्यास ने नेट का बंदोंबस्त नहीं किया था। नेट की सुविधा उधर उपलब्ध थी लेकिन उसका रेट इतना अधिक था कि मुझे नहीं लगता कि ज्यादातर प्रकाशनों ने उसका प्रयोग किया होगा। ऐसा इसलिए भी कह रहा हूँ क्योंकि खुद नैशनल बुक ट्रस्ट और चिल्ड्रन बुक ट्रस्ट के हॉल में नेट का बुरा हाल था यानी वो खुद उस सुविधा का प्रयोग नहीं कर रहे थे।


अंत में दो बात


ऊपर लिखी दो बातों को छोड़ दें तो पुस्तक मेले का अनुभव मेरा तो बढ़िया रहा। कई लोगों से मिलना हुआ, कुछ से तसल्ली से बातें नहीं हो पाई लेकिन इस बात का सुख है कि लॉकडाउन के बाद उन्हें देख तो लिया, काफी कुछ लिया और प्रकाशक के तौर पर काफी कुछ सीखने को मिला। हमारी टीम ने अगले पुस्तक मेले को देखते हुए कुछ प्रोटोकॉल भी निर्धारित कर दिए जिससे इस मेले में होने वाली गलतियाँ न हो। उम्मीद है अगला मेला और अच्छा होगा। प्रकाशक के तौर पर हमारी टीम  और पाठक के तौर पर मैं इतने ही उत्साह के साथ उसमें शामिल हो पाऊँगा। पाठकों के लिए रोचक पुस्तकें हम उधर लाएँगे  और वहाँ से मैं अपने लिए भी काफी रचनाएँ खरीदूँगा। 


अगर आप भी पुस्तक मेले गए थे तो मुझे कमेन्ट करके बताइएगा कि आपका उधर का अनुवाद कैसा था? आपने उधर क्या खरीददारी करी?



5 टिप्पणियाँ

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  1. हितेष रोहिल्ला जी से भी मुलाकात हुई थी क्या आपकी...?

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    1. जी टीम के सदस्य हैं। उनसे तो होनी ही थी। 😀😀😀फोटो नहीं थी उनकी। टीम के राजीव रंजन सिन्हा जी से भी हुई थी।

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  2. वाह!.... बेहद खूबसूरत पल........ 👌👌👌👌👌👌........ अब मुझे सिग्नेचर कॉपी मिलेगी..... 😂😂😂😂😂😂

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