मार्च-अप्रैल 2022 में पढ़ी गई किताबें


अप्रैल के महीने में मैं मनुष्य से पहले शृंखला लिखने में और कुछ व्यक्तिगत कार्यों ही व्यस्त रहा और इस करण मार्च माह में पढ़ी हुई किताबों के विषय में नहीं लिख पाया। चूँकि अप्रैल में पढ़ना भी कम ही हुआ तो सोचा कि एक ही पोस्ट में मार्च और अप्रैल में पढ़ी गई किताबों के विषय में लिखा जाए। 


मार्च 2022 में पढ़ी गई किताबें


मार्च में पढ़ी हुई किताबों के विषय में बात करूँ तो मार्च में कुल आठ ही रचनाएँ मैंने पढ़ीं। इन आठ रचनाओं में से पाँच उपन्यास थे, एक बाल उपन्यासिका थी और दो कॉमिक बुक्स थे। भाषा के हिसाब से देखें तो सभी रचनाएँ हिंदी की ही थीं। 

चलिए ज्यादा देर न करते हुए जानते हैं कि यह रचनाएँ कौन सी थीं:


मार्च 2022 में पढ़ी गई रचनाएँ | Books Read in March 2022
मार्च 2022 में पढ़ी गईं किताबें



भँवर 


संक्षिप्त समीक्षा: भँवर - सत्य प्रकाश बंसल | Short Book Review: Bhanwar- Satyaprakash Bansal

भँवर डायमंड पॉकेट बुक्स (Diamond Pocket Books) द्वारा प्रकाशित सत्य प्रकाश बंसल (Satya Prakash Bansal) का लिखा हुआ सामाजिक उपन्यास (social novel) है। सत्य प्रकाश बंसल का यह पहला उपन्यास है जो कि मैंने पढ़ा है। यह एक धनाढ्य वर्ग के लड़के विनय कुमार की कहानी है जो कि व्यापारी जीवन से त्रस्त होकर मुंबई से बाहर चले जाता है और फिर उसके जीवन में ऐसे मोड़ आते हैं जिसकी उसने कल्पना भी नहीं की थी। 

उपन्यास वैसे तो पठनीय है लेकिन इसमें कुछ ऐसी कमियाँ भी हैं, जिनका जिक्र विस्तृत समीक्षा में किया है,  जिन्हें कुशल संपादन से लेखक के समक्ष उजागर कर उन्हें ठीक करवाया जा सकता था। अगर ऐसा होता तो उपन्यास थोड़ा तार्किक भी हो जाता है और इस कारण उसकी रोचकता बढ़ जाती। अभी यह एक औसत फिल्मी उपन्यास सा बन कर रह गया है। अगर पुरानी फिल्में पसंद हैं तो इसे पढ़ सकते हैं।

विस्तृत समीक्षा: भँवर | पुस्तक लिंक: अमेज़न

मर गई रीमा

संक्षिप्त समीक्षा: मर गई रीमा | Short Review: Mar Gayi Reema

मर गई रीमा (Mar Gayi Reema) लेखक अनिल सलूजा (Anil Saluja) की रीमा राठौर शृंखला का उपन्यास है। यह रीमा राठौर शृंखला (Reema Rathaur Series) का पहला उपन्यास था जिसे मैंने पढ़ा। रीमा राठौर पेशे से एक वकील है जो कि अपराधियों से सख्त नफरत करती है और कई बार उनसे खुद ही दो चार हाथ कर लेती है। उसकी इसी फितरत के कारण पुलिस और जनता के बीच उसका दबदबा है। रीमा के यही मामले उपन्यास का कथानक बनते हैं। प्रस्तुत उपन्यास में रीमा ऐसे ही एक अपराधी से जूझते हुए दिखती है जिसने एक जज की बेटी का अपहरण कर लिया है। वहीं दूसरी तरफ कौशल है जिसने रीमा को जान से मारने की ठान ली है। आखिर जज की बेटी का अपहरण किसने किया है? कौशल क्यों रीमा को मारना चाहता है? क्या रीमा जज की बेटी को बचा पाई? क्या रीमा खुद कौशल के हाथों बच पाई? यह ऐसे प्रश्न हैं जिनके उत्तर इस उपन्यास में मिलते हैं। 

उपन्यास पठनीय है। हाँ, कुछ कमियाँ इसमें हैं, जिनका विस्तृत विवरण विस्तृत समीक्षा में किया है, जिन्हें सम्पादन में सुधारा जा सकता था। अगर ऐसा होता तो यह औसत उपन्यास से अच्छा उपन्यास भी बन सकता था। उपन्यास में कुछ अनावश्यक कामोत्तेजक वविरण भी हैं जो कि जबरदस्ती ठूँसे हुए लगते हैं। उन्हें हटाया जा सकता था। अगर हिंसा के दृश्य आपको विचिलित करते हैं तो इस उपन्यास के कुछ दृश्य आपको विचलित कर सकते हैं। 

विस्तृत समीक्षा: मर गई रीमा

लम्बू-मोटू और पत्थर की लाश


संक्षिप्त समीक्षा: लम्बू मोटू और पत्थर की लाश | Short Review: Lambu Motu aur Patthar Ki Laash

लम्बू-मोटू और पत्थर की लाश (Lambu Motu Aur Patthar Ki Laash) लम्बू मोटू शृंखला (Lambu Motu Series) का कॉमिक बुक है जो कि डायमंड कॉमिक्स (Diamond Comics) द्वारा प्रकाशित किया गया है। कॉमिक बुक प्रतलिपि एप्प पर जाकर पढ़ा जा सकता है। लम्बू मोटू के विषय में अगर आप नहीं जानते हैं तो यह दोनों भाई हैं जो कि अकेले रहते हैं और इंस्पेक्टर अंकल के कहने पर कई आपराधिक मामलों से जूझते रहते हैं। प्रस्तुत कॉमिक बुक में भी ऐसा ही होता है। 

यह एक तेज रफ्तार कॉमिक बुक है जिसमें काफी एक्शन है बस रहस्य के तत्व कमजोर हैं। इन तत्वों को भी थोड़ा मजबूत बनाया जाता तो यह एक बेहतरीन चित्रकथा बन जाती। अभी एक औसत कथा बनकर रह गई है। एक बार पढ़ सकते हैं।

विस्तृत समीक्षा: लम्बू-मोटू और पत्थर की लाश | कॉमिक बुक लिंक: प्रतिलिपि

आखिरी प्रेमगीत

संक्षिप्त समीक्षा: आखिरी प्रेमगीत | Short Review - Akhiri Premgeet

छोटे न बड़े शहर में रहता था त्रिपाठी और सिंह परिवार। इन्हीं घरों में रहते थे दो युवा। गोपाल त्रिपाठी का बेटा नटराज त्रिपाठी और मान सिंह की बेटी सरगम सिंह। दोनों ही अपनी अपनी कलाओं में माहिर थे। जहाँ नटराज गाता अच्छा था वहीं सरगम नृत्य में पारंगत थी। 

और फिर इन दोस्तों के जीवन में प्रेम आया और सब कुछ बदल गया। शहर के लोगों को इस कारण कुछ ऐसा देखने को मिला जो चमत्कार ही कहलायागा जायेगा। 

'आखिरी प्रेमगीत' (Aakhiri Premgeet) एक कलाकार की प्रेम के लिए किये गये त्याग की कहानी है। त्याग आपकी आँखें अक्सर नम कर देता है और ऐसा ही इधर भी होता है। उपन्यास का अंत भी अलग तरह से लेखक ने किया है जो कि मुझे पसंद आया।  हाँ, अगर संगीत और नृत्य के विभिन्न पहलुओं की बारीकियों की अपेक्षा आप उपन्यास से लगाएँगे तो हो सकता है आपको निराश होना पड़े। 

अगर आपने 'आखिरी प्रेमगीत' (Aakhiri Premgeet) को नहीं पढ़ा है तो एक बार पढ़िए। उम्मीद है यह प्रेम उपन्यास आपको पसंद आएगा।

विस्तृत समीक्षा: आखिरी प्रेमगीत | पुस्तक लिंक: अमेज़न

बॉस 

संक्षिप्त समीक्षा: बॉस - अमित खान | Short Review: Boss - Amit Khan

अमित खान (Amit Khan) का प्रस्तुत उपन्यास बॉस (Boss) एक थ्रिलर उपन्यास है जो कि पहली दफा 1 जून 1996 में प्रकाशित हुआ था।

किस्मत’ एक ऐसी चीज है जिस पर या तो व्यक्ति विश्वास करता है या नहीं करता है। मनुष्य के हाथ में वैसे तो कर्म करना ही होता है लेकिन कई बार देखा गया है कि अगर किस्मत हो तो रंक भी राजा बन जाता है और राजा भी रंक बन जाता है। आप भले ही किस्मत को माने न माने लेकिन इसके खेल आस-पास घटित होते दिख ही जाते हैं। अमित खान (Amit Khan) का प्रस्तुत उपन्यास बॉस (Boss) भी किस्मत की एक ऐसी ही उठा पटक की कहानी है। 
बॉस एक पठनीय उपन्यास है जिसमें कुछ कमियाँ  भी हैं। मैंने इनके विषय में विस्तृत समीक्षा में लिखा है। यहाँ पर यही कहूँगा कि इन पर अगर प्रकाशक ध्यान देता और उपन्यास का ढंग से सम्पादन करवाता तो उपन्यास और बेहतर हो सकता था। इधर यह बताना चाहूँगा कि बॉस की कहानी कहीं-कहीं पर अतिनाटकीय हो जाती है तो अगर ऐसे ओवर द टॉप एक्शन और फिल्मी कथानक आपको पसंद आता है तो आपका इसका आनंद उठा पाएंगे लेकिन अगर पसंद नहीं आता है तो हो सकता है कि आपके लिए इससे दूर रहना ही बेहतर हो। व्यक्तिगत तौर पर मुझे ऐसे कथानको से ज्यादा परेशानी होती नहीं है और मैं इनका लुत्फ ले लेता हूँ। 

विस्तृत समीक्षा:  बॉस  |  पुस्तक लिंक: अमेज़न

 
मैं समय हूँ 

संक्षिप्त समीक्षा: मैं समय हूँ | Short Review: Main Samay Hoon


मनुष्य की सबसे बड़ी इच्छा इसी वक्त को नियंत्रण में लेने की होती है। वह चाहता है कि उसके हिसाब से वक्त धीमे या तेज बीते। बोर हो रहा हो तो वक्त तेजी से बीते और अगर मजे कर रहा हो तो वक्त धीमा हो जाए लेकिन अक्सर ये चीजें उलटे क्रम में ही होती हैं। पर क्या हो अगर कोई वक्त को नियंत्रित कर सकता हो? और क्या हो अगर वक्त को नियंत्रित करने की शक्ति एक ऐसे खूँखार खलनायक को मिल जाए जिसका मकसद दुनिया में आंतक फैलाना ही हो? इसी सोच को आधार बनाकर लेखक अनुपम सिन्हा (Anupam Sinha) ने ‘मैं समय हूँ’ (Main Samay Hoon) की कहानी लिखी है।

इस कॉमिक के केंद्र में दो खलनायक मौजूद हैं जिनसे सुपर कमांडो ध्रुव टकराता हुआ दिखता है। यह एक तेज रफ्तार एक्शन से भरपूर कहानी है जो पाठकों का मनोरंजन करने में सफल होती है। अगर नहीं पढ़ा है तो एक बार पढ़कर देख सकते हैं। 

विस्तृत समीक्षा: मैं समय हूँ 

मांसभक्षी प्रेत


संक्षिप्त समीक्षा: मांसभक्षी प्रेत | Short Review: Mansbhakshi Pret by S C Bedi

क्या भूत प्रेत होते हैं? यह एक ऐसा प्रश्न जिसे लेकर संशय सबके मन में रहा है। भूत प्रेत की जो घटनाएँ घटित होती हैं उनमें से काफी कुछ मानव निर्मित ही होती हैं। कुछ ही ऐसी होती हैं जो शायद असल हों।  प्रस्तुत बाल उपन्यास मांसभक्षी प्रेत (Mansbhakshi Pret) में राजन इकबाल और शोभा सलमा ऐसे प्रेतों से जूझते दिखते हैं जो कि मानव मांस का भक्षण कर रहे हैं। 

बाल उपन्यास मांसभक्षी प्रेत (Mansbhakshi Pret) एक बार पढ़ा जा सकता है। 

 हाँ, आजकल के किशोर और बाल पाठक इतने जटिल कथानकों से दो चार हो गए हैं कि उन्हें ये पसंद आएगा या नहीं ये नहीं कह सकता। शायद आए या शायद न भी आए। कथानक में थोड़ा घुमाव ज्यादा होते तो यह और अधिक अच्छा बन सकता था। अभी इसकी कमी खलती है। 

विस्तृत समीक्षा: मांसभक्षी प्रेत 

नीले परिंदे 

संक्षिप्त समीक्षा: नीले परिंदे - इब्ने सफी | Short Review: Neele Parindey - Ibne Safi

नीले परिंदे (Neele Paarindey) लेखक इब्ने सफी (Ibn-e-Safi) की इमरान शृंखला (Imran Series) का छठवाँ उपन्यास है। विज्ञान की तरक्की वैसे तो मनुष्यता की भलाई के लिए होती हैं लेकिन कई बार लोग इसका बेजा इस्तेमाल कर अपना स्वार्थ सिद्ध करते हैं। इब्ने सफ़ी (Ibn-e-safi) द्वारा लिखा गया  प्रस्तुत उपन्यास नीले परिंदे (Neele Parindey) भी एक ऐसे ही व्यक्ति की कहानी है जो कि एक वैज्ञानिक उपज का इस्तेमाल अपने स्वार्थ की सिद्धि के लिए करता है। 

उपन्यास रोचक है और एक बार पढ़ा जा सकता है। लेखक रहस्य को अंत तक बनाए रखने में सफल हुए हैं जो कि उपन्यास को पठनीय बना देता है। 

विस्तृत समीक्षा: नीले परिंदे  |  पुस्तक लिंक: अमेज़न

अप्रैल 2022 में पढ़ी गई रचनाएँ

अप्रैल 2022 की बात की जाए तो अप्रैल में पढ़ना कम ही हो पाया। इस माह मैंने कुल चार उपन्यास पढ़ें। इन चार उपन्यासों में से तीन उपन्यास हिन्दी के और 1 उपन्यास अंग्रेजी का था। 

यह चार उपन्यास निम्न हैं

अप्रैल 2022 में पढ़ी गई किताबें | Books Read in April 2022
अप्रैल 2022 में पढ़ी गईं किताबें

हेयर फ़ॉल्स द शैडो (Here Falls the Shadow) 

संक्षिप्त: हेयर फ़ॉल्स द शेडो - भास्कर चट्टोपाध्याय | Short Review: Here Falls The Shadow- Bhaskar Chattopadhyay


हेयर फ़ॉल्स द शैडो (Here Falls the Shadow) भास्कर चट्टोपाध्याय (Bhaskar Chattopadhyay) द्वारा लिखी गई जनार्दन मैती शृंखला (Janardan Maiti Series) का दूसरा उपन्यास है। प्रसिद्ध लेखक संग्राम तालुकदार को जब जान से मारने की धमकी मिलती है तो वह जनार्दन मैती को इस मामले को सुलझाने के लिए निमदेवरा नामक कस्बे में बुला लेता है। संग्राम की माने तो यह उनके परिवार को मिले एक शाप का नतीजा है। जनार्दन अपने साथ प्रकाश को निमदेवरा लेकर जाता है। प्रकाश का इस कस्बे से पुराना रिश्ता है और अब दोनों को इस मामले को सुलझाना है। आखिर कौन संग्राम को मारना चाहता है? क्या ये तालुकदार परिवार पर छाये अभिशाप का नतीजा है? 

उपन्यास मुझे पसंद आया। यह एक रहस्यकथा है और लेखक ने उपन्यास के कथानक में कई ऐसे संदिग्ध किरदार खड़े किए हैं जो असल कातिल का पता लगाना मुश्किल बना देता है। हाँ, अगर तेज रफ्तार कथानक आपको पसंद है तो शायद थोड़ा निराशा आपको  हो। यह एक धीमी रहस्यकथा है जो कि एक कस्बे में बसाया गया है और कस्बे के धीमे जीवन को बाखूबी दर्शाता है। मैं जनार्दन शृंखला के दूसरे उपन्यास जरूर पढ़ूँगा। 

 पुस्तक लिंक: अमेज़न

कुलदेवी का रहस्य

संक्षिप्त समीक्षा: कुलदेवी का रहस्य | Short Review: Kuldevi Ka Rahasya - Janpriya Lekhak Om Prakash Sharma


'कुलदेवी का रहस्य' (Kuldevi Ka Rahasya) नीलम जासूस कार्यालय (Neelam Jasoos Karyalay) द्वारा प्रकाशित 118 पृष्ठ का उपन्यास है जिसका घटनाक्रम सन 1935 ईसवी में ब्रिटिश आधीन भारत में घटित होता है। यह गोपाली शृंखला (Gopali Series) का पहला उपन्यास है। उपन्यास जनप्रिय लेखक ओम प्रकाश शर्मा (Janpriya Lekhak Om Prakash Sharma) द्वारा लिखा गया है। 

उपन्यास मुझे पसंद आया। अगर ये कहें कि यह अंधविश्वास पर तर्क की जीत की कहानी है तो कुछ भी गलत नहीं होगा। यह गोपाली शृंखला (Gopali Series) की ऐसी शुरुआत है जो इसके बाकी उपन्यास पढ़ने के लिए आपको प्रेरित कर देगा। कम से कम मुझे तो प्रेरित किया है।  हाँ, चूँकि उपन्यास कई वर्षों पहले लिखा गया तो उसी हिसाब से इसे पढ़ेंगे तो बेहतर तरीके से इसका लुत्फ ले पाएँगे। 

विस्तृत समीक्षा: कुलदेवी का रहस्य  | पुस्तक लिंक: अमेज़न

मौत की छाया

संक्षिप्त समीक्षा: मौत की छाया - सुरेन्द्र मोहन पाठक | Short Review: Maut Ki Chhaya - Surender Mohan Pathak

सुरेन्द्र मोहन पाठक (Surender Mohan Pathak) द्वारा लिखा गया उपन्यास 'मौत की छाया' (Maut Ki Chhaya) सुनील सीरीज का 53 वाँ उपन्यास है। उपन्यास के केंद्र में चूँकि नशे में लिप्त युवा भी हैं तो 1979 में लिखा यह उपन्यास आज भी प्रासंगिक है। एक युवती की लाश के मिलने से शुरू हुए इस उपन्यास में जब सुनील तहकीकात करता है तो वह शहर में फैले नशे के कारोबार से जुड़े ताकतवर लोगों की नज़रों में आ जाता है। इसके बाद जो होता है वही उपन्यास का कथानक बनता है। 

मौत की छाया (Maut Ki Chhayaa) एक रोमांचक उपन्यास है जो कि अंत तक बांधकर रहता है। अगर नहीं पढ़ा है तो एक बार पढ़कर देख सकते हैं। 1979 में पहली बार प्रकाशित हुआ यह कथानक आज भी निराश नहीं करता है। हाँ, अगर रहस्यकथा तौर पर देखूँ  तो मुझे मौत की छाया थोड़ी सी कमजोर लगी। 

विस्तृत समीक्षा: मौत की छाया | पुस्तक लिंक: अमेज़न

कुबड़ी बुढ़िया की हवेली

संक्षिप्त समीक्षा: कुबड़ी बुढ़िया की हवेली - सुरेन्द्र मोहन पाठक | Short Review: Kubdi Budhiya Ki Haweli - Surender Mohan Pathak


स्कूल की छुट्टियाँ हमेशा से ही बच्चों के लिए ऐसा समय होती हैं जिसका वो पूरा वर्ष भर इंतजार करते हैं। प्रस्तुत बाल उपन्यास 'कुबड़ी बुढ़िया की हवेली' (Kubdi Budhiya Ki Haweli) भी एक ऐसी ही छुट्टी की कहानी है।  

सुरेन्द्र मोहन पाठक (Surender Mohan Pathak) वैसे तो मूलतः अपराध कथाकार हैं लेकिन उन्होंने सामाजिक उपन्यास (Social Novels) और बाल उपन्यास (Children Fiction) भी लिखे हैं। 'कुबड़ी बुढ़िया की हवेली' (Kubadi Budhiya Ki Haweli) उनका लिखा पहला बाल उपन्यास है जो कि प्रथम बार 1971 में प्रकाशित हुआ था। अब साहित्य विमर्श प्रकाशन (Sahitya Vimarsh Prakashan) द्वारा इन्हें पुनः प्रकाशित किया गया है। उपन्यास के केंद्र में राजू मिनी और गाँव में बने उनके दोस्त भोला और सुंदरी हैं। यह बच्चे कैसे गाँव में मौजूद कुबड़ी बुढ़िया की हवेली का रहस्य का पता लगाते लगता मुसीबत में फँसते हैं और किस तरह उससे निकलते हैं यही उपन्यास का कथानक बनता है।  

उपन्यास के विषय में यही कहूँगा कि पचास साल पुराना यह कथानक मुझे रोचक लगा और आठ से 12 वर्ष के बच्चों के लिए उपयुक्त रहेगा। हाँ, थोड़े ट्विस्ट कथानक में और होते तो मज़ा बढ़ सकता था। 

विस्तृत समीक्षा: कुबड़ी बुढ़िया की हवेली | पुस्तक लिंक: अमेज़न | साहित्य विमर्श

*****


तो यह थी वह रचनाएँ जो मैंने मार्च और अप्रैल के माह पढ़ीं। आपने इन दो माह में क्या पढ़ा? मुझे बताइएगा। 


4 टिप्पणियाँ

आपकी टिपण्णियाँ मुझे और अच्छा लिखने के लिए प्रेरित करेंगी इसलिए हो सके तो पोस्ट के ऊपर अपने विचारों से मुझे जरूर अवगत करवाईयेगा।

  1. वाह!.....👍👍👍👍👍👍👍........ अब..... तुम्हारे लिए..... भी पढ़ लीजिये...।...... 😂😂😂😂😂😂😂

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  2. वाह इतनी सारी किताबें! आखिरी प्रेमगीत का कवर कितना प्यारा है।

    मैंने कल एक थ्रिलर 'Dead Against Her' पढ़ कर खत्म की ―बहुत अच्छी थी। बहुत अच्छा महसूस हुआ क्योंकि पिछले दिनों मैंने कई सारी किताबें अधूरी छोड़ी हैं।

    कई सालों से कोई कॉमिक्स नहीं पढ़ी, पहले पढ़ा करती थी। :)

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    1. जी सही कहा। आखिरी प्रेम गीत का कवर वाकई अच्छा बना है। हो सके तो डेड अगैन्स्ट हर के विषय में दो शब्द लिखिएगा। मेरा कई बार किताबें पढ़ने का मन नहीं करता है तो कॉमिक बुक्स, कहानी, लघु-उपन्यास या उपन्यासिका पढ़ लेता हूँ। छोटी रचनाएँ होती हैं तो जल्द ही खत्म भी हो जाती है और पढ़ने से जी भी नहीं उचटता है।

      कॉमिक बुक मैं तो आज भी पढ़ लेता हूँ। कम वक्त में मनोरंजन हो जाता है।

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