अकेले हैं इधर, बुलाएँ हम किसको


अकेले हैं इधर, बुलाएँ हम किसको
अकेले हैं इधर, बुलाएँ हम किसको Image by Pam Patterson from Pixabay


जी रहे हैं कैसे ये बताएँ हम किसको
घाव अपने ये दिखाएँ हम किसको


रात है काली, और दिखता कुछ नहीं,
अकेले हैं इधर, बुलाएँ हम किसको


आया है कुछ जहन में शेर सा मेरे,
रहे हैं ढूँढ के अब सुनाएँ हम किसको 


हैं एक ही थैली के चट्टे बट्टे सभी इधर
रहे हैं सोच इस बार जिताएँ हम किसको


होती बन्द आँखें खेमों के हिसाब से अंजान
 करें सोने का यूँ नाटक, जगाएँ हम किसको


- विकास नैनवाल 'अंजान'

10 टिप्पणियाँ

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  1. ऐसा लग रहा की आपने आज सुबह मेरे मन के भाव पढ़ लिए है। अति सुन्दर।

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  2. उत्तर
    1. जहन में जब कौंधे तब इधर दिखे...इस बार जहन में कौंधने में वक्त लग गया...

      हटाएं
  3. बहुत ख़ूबसूरत सृजन । अत्यंत सुन्दर भावाभिव्यक्ति ।

    जवाब देंहटाएं

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