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अकेले हैं इधर, बुलाएँ हम किसको Image by Pam Patterson from Pixabay |
जी रहे हैं कैसे ये बताएँ हम किसको
घाव अपने ये दिखाएँ हम किसको
रात है काली, और दिखता कुछ नहीं,
अकेले हैं इधर, बुलाएँ हम किसको
आया है कुछ जहन में शेर सा मेरे,
रहे हैं ढूँढ के अब सुनाएँ हम किसको
हैं एक ही थैली के चट्टे बट्टे सभी इधर
रहे हैं सोच इस बार जिताएँ हम किसको
होती बन्द आँखें खेमों के हिसाब से अंजान
करें सोने का यूँ नाटक, जगाएँ हम किसको
- विकास नैनवाल 'अंजान'
ऐसा लग रहा की आपने आज सुबह मेरे मन के भाव पढ़ लिए है। अति सुन्दर।
जवाब देंहटाएंवाह!! मशकूर हुआ ये जानकर...
हटाएंबहुत सुंदर
जवाब देंहटाएंआभार...
हटाएंअति उत्तम, इतने दिन बाद कविता
जवाब देंहटाएंजहन में जब कौंधे तब इधर दिखे...इस बार जहन में कौंधने में वक्त लग गया...
हटाएंबहुत ख़ूबसूरत सृजन । अत्यंत सुन्दर भावाभिव्यक्ति ।
जवाब देंहटाएंजी आभार...
हटाएंBeautiful composition, so expressive.
जवाब देंहटाएंThank you...
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