'एक परफेक्ट दिन' कैसा हो?

बारिश के मौसम में घर के बाहर का एक दृश्य 


जैसे-जैसे व्यक्ति की उम्र बढ़ती है उसकी इच्छाएँ, उसके चीजों को देखने का नजरिया भी बदलता रहता है। कभी जो चीज उसे आनंद देती थी वह केवल उसकी स्मृति से ही आनंद पा पाता है। असल में जो चीज उसे आनंद देती है वह बिल्कुल बदल जाती है।  ऐसे में जब अपने परफेक्ट दिन के विषय में लिखना हो तो कई तरह के ख्याल मन में आना लाजमी है। कैसा होगा मेरा परफेक्ट दिन? यह प्रश्न अगर कोई मुझे उम्र के अलग अलग पड़ावों में पूछता तो मुझे यकीन है उसके उत्तर हमेशा अलग-अलग होते। 


मसलन, अगर कोई बचपन में मुझे एक परफेक्ट दिन की व्याख्या करने को कहता तो शायद मेरा उत्तर होता देर से उठना। उठकर आराम से जितना मन हो उतने दूध बिस्कुट खाना और फिर नाश्ता करते ही खेलने भाग जाना। जब भूख लगे तो लौट कर आना। दिन में न सोना और टीवी में कार्टून देखा या कॉमिक्स पढ़ना। शाम को फिर खेलने भाग जाना। खेलने के बाद रात ढले आना और रात के खाने पहले कुछ जलेबी समोसे खाना और उसके बाद खूब सारी कॉमिक्स पढ़ना। क्या इससे परफेक्ट उस वक्त कुछ हो सकता था भला?


वहीं अगर ये सवाल कोई मुझे दसवीं बारहवीं या कॉलेज में पूछता तो उस वक्त मेरा एक परफेक्ट दिन वो होता जो मैं उस लड़की के साथ बिताता जिसे देख उस वक्त दिल के गिटार बजते थे। सारा दिन उसके साथ घूमना, उसे हँसाना और दिन के अंत में एक दूसरे में खो जाना। इससे परफेक्ट शायद ही कुछ और होता। 


वहीं कुछ साल पहले कोई मुझे मेरे परफेक्ट दिन के विषय में पूछता तो वो मेरे लिए वह दिन होता जब मैं कोई लंबी ट्रेक करके किसी ऐसी जगह पर पहुँचता जहाँ प्रकृति ने अपनी नैसर्गिक सुंदरता बिखेरने में कंजूसी न बरती हो। सुबह ट्रेक शुरू करके शाम तक उस जगह पहुँचना और फिर रात ढलने तक उस नैसर्गिक सुंदरता को मन भरने तक अपनी आँखों के माध्यम से मन भरने तक सोखना। वहीं रात पड़ने पर सादा दाल चावल खाकर एक रोचक किताब के साथ अपनी रात गुजारना और उसे खत्म कर अगली सुबह किसी दूसरी जगह के लिए निकल जाना। इससे परफेक्ट शायद ही मेरे लिए कुछ और उस वक्त होता।


तुंगनाथ की तरफ जाते हुए पड़ता एक  दृश्य


पर अब वक्त बदल गया है। पिछले कुछ सालों ने हमें काफी कुछ सिखाया है। जीवन में क्या जरूरी है उसका पता चला है। अब कोई मुझे मेरे पेरफेक्ट दिन की परिभाषा बताने को कहे तो मैं यही कहूँगा कि मेरे लिए मेरा हर वो दिन परफेक्ट है जिसमें मैं अपने अपनों के साथ हूँ। एक ऐसा आम सा दिन मेरे अपनो के साथ होने से ही परफेक्ट हो जाता है। 


हम साथ नाश्ता करें। फिर सर्दी के मौसम में दोपहर को धूप में छत में बैठकर मालटे की खटाई खाते हुए बातें करते जाएँ।  खट्टे मीठे स्वाद का आनंद लेते हुए बातों का दौर चले। रह रह कर छत से हँसी की फुहारें छूटती हो। मेरी हँसी, माँ की हँसी, पापा की मुस्कान, बहन की हँसी और पत्नी की हँसी उस हँसी की फ़ुहार में शामिल हो। 


खटाई की कटोरी


फिर कुछ देर सभी धूप में लेट जाएँ और मैं किसी किताब में खो जाऊँ। ऐसे ही वक्त बीते और दिन के खाने का वक्त आ जाए। 


दिन में राई के पत्तों की सब्जी के साथ अरहड़ की दाल और चावल हो। साथ में करारे आलू के पकौड़े हों। चावल के साथ घी मिले अरहड़ की दाल की खुशबू जिसे सूँघते ही भूख बड़ जाए। वहीं सब्जी और पकौड़े जो खाने का स्वाद इतना बड़ा दें कि आदमी भूख से ज्यादा खा ले। चावल, दाल पकौड़ों और सब्जी को पेट भर खाने के बाद हम लोग कुछ वक्त तक धूप में अलसाये से लेटें। फिर मैं किसी रोचक किताब में डूब जाऊँ। शाम की चाय तक का वक्त ऐसे ही कटे। 


शाम की चाय में वही हँसी की फुहारें हो और हम एक साथ चाय और स्नैक्स का आनंद लें। इसके बाद कुछ लिखना कर पाऊँ। एक लघु-कथा, एक कविता, या कोई उपन्यास जो शुरू करके रखा है। 


फिर रात का खाना हो और खाने के बाद फिर से हँसी मज़ाक का दौर चले। यह दौर दस ग्यारह बजे तक चले और हम चेहरों पर एक मुस्कान लेकर अपने अपने कमरों की तरफ बढ़ें। 


ऐसे एक दिन को बिताने के बाद जब रात को मैं सोऊँगा तो मैं सबसे ज्यादा संतुष्ट होऊँगा, सबसे ज्यादा खुश होऊँगा और शायद यह मेरा अभी के वक्त का सबसे परफेक्ट दिन होगा। 


इससे परफेक्ट दिन की कल्पना मैं फिलहाल तो नहीं कर सकता हूँ और खुशकिस्मत हूँ कि ऐसे दिनों को आजकल जी रहा हूँ।


मैं ये नहीं कह सकता कि अगर कुछ साल बाद आप मुझसे मेरे परफेक्ट दिन की परिभाषा पूछें तो वह यही होगी या नहीं। लेकिन यकीन जानिए कि मैं यही चाहूँगा कि यह परिभाषा कभी बदले नहीं। यही मेरे परफेक्ट दिन की परिभाषा हो और मैं यूँ ही उनके अनुभव लेता रहा हूँ। 


तो यह थी मेरे परफेक्ट दिन की परिभाषा? 


आपका परफेक्ट दिन कैसा होगा? जरा बताइए तो? 


नोट: ब्लॉगचैटर के #writeapageaday के तहत यह पोस्ट मैंने लिखी है। आज के दिन का प्रॉम्प्ट था What your perfect day/date looks like


 

23 टिप्पणियाँ

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  1. बहुत बढ़िया पोस्ट । परफ़ेक्ट दिन की परिभाषा समय के साथ बदलती रहती है लेकिन अपने परिवार के साथ हँसी-ख़ुशी दिन बिताना सब तरह के समय में एकदम परफ़ेक्ट है ।

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    1. पोस्ट आपको पसंद आई यह जानकर अच्छा लगा मैम। हार्दिक आभार।

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  2. जी नमस्ते,
    आपकी लिखी रचना शुक्रवार १८ फरवरी २०२२ के लिए साझा की गयी है
    पांच लिंकों का आनंद पर...
    आप भी सादर आमंत्रित हैं।
    सादर
    धन्यवाद।

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    उत्तर
    1. पाँच लिंकों का आनंद में मेरी रचना को शामिल करने हेतु हार्दिक आभार।

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  3. सही कहा उम्र के साथ परफेक्ट दिन के मायने भी बदलते रहते हैं आपके आजकल के परफेक्ट दिन में माल्टे की खटाई देख मुँह में पानी आ गया...वाह बड़े मजेदार हैं आजकल के आपके परफेक्ट दिन...
    हमेशा ऐसे परफेक्ट दिन रहें आपके बहुत बहुत शुभकामनाएं।

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  4. वक़्त के साथ ही सोच बदलती है और उसी के साथ हर एक का परफेक्ट दिन भी ।
    बढ़िया लेख ।

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  5. बहुत बढ़िया । खटाई की कटोरी की छवि देखते ही मैं समझ गई कि आपका दिन परफेक्ट बीत रहा है ।
    सच ऐसे परफेक्ट दिन किसको अच्छे नहीं लगेंगे । बहुत शुभकामनाएं।

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  6. सार्थक सच को उजागर करता बेहतरीन आलेख

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  7. परफेक्ट दिन का बिलकुल परफेक्ट विश्लेषण

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  8. बहुत ही उम्दा लेख पढ़ कर आनंद आ गया! लेख में लगे चित्रों ने तो लेख में चार चाँद लगा दिया!

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  9. टचवुड! नज़र न लगे आपके परफ़ेक्ट दिन को। अपनी ज़िन्दगी का हर इक दिन आपको परफ़ेक्ट लगे, यही दुआ कर सकता है एक दोस्त। बाक़ी सच यही है कि ज़िन्दगी सब को अलग-अलग ट्रीटमेंट देती है, इसलिए परफ़ेक्ट दिन की तर्ज़ुमानी भी सब के लिए अलग-अलग ही होती है।

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    1. जी आभार सर। सही कहा अपने अपने अनुभव के हिसाब से परफेक्ट दिन भी अलग-अलग हो सकता है।

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