सितंबर 2021 बुक हॉल - 2

जितना मुझे हिंदी के गंभीर साहित्य से प्यार है उतना ही हिंदी के लोकप्रिय जिसे लोग पल्प कहते हैं साहित्य से भी है। जब भी हम पल्प साहित्य की बात करते हैं तो अक्सर हमारी जहन में जो तस्वीर बनती है वह चटकीले आवरण चित्रों से सुसज्जित ऐसी कथाएँ होती हैं जिन्हे घर वालों के सामने पढ़ने में सजा मिलती थी। ये कथाएँ अक्सर अपराध, प्रेम/सामाजिक, हॉरर विधाओं में लिखी जाती थीं।


सच बताऊँ हॉरर और अपराध साहित्य मेरे पसंदीदा साहित्य श्रेणियों में से एक है। हाँ, सामाजिक या प्रेम उपन्यास मैंने कम पढ़ें हैं लेकिन धीरे धीरे उन्हे पढ़ने की कोशिश कर रहा हूँ। सितंबर माह में मैंने काफी उपन्यास मँगवाएँ जो कि अपराध और समाजिक श्रेणी के कहे जा सकते हैं। ऐसा नहीं है कि मैं उपन्यास मंगवाना ही चाहता था परन्तु हुआ यूँ कि जैसे ही एक दिन  मैंने फेसबुक खोला तो मुझे अपने किसी फेसबुक फ्रेंड का साझा किया हुआ पोस्ट एक दिख गया। पोस्ट एम आर पी बुक स्टोर के शंभू नाथ महतो जी का था। अपनी पोस्ट में उन्होंने बताया कि अब उनके स्टोर में हिन्दी लोकप्रिय साहित्य भी मौजूद था। फेसबुक पर यह पोस्ट देखी तो साइट का चक्कर मारने का लोभ संवरण नहीं कर पाया और फिर जब साइट पर उपन्यास दिखे तो कुछ किताबे ऑर्डर करने से खुद को नहीं रोक पाया। उस दिन छः उपन्यास मैंने स्टोर से ऑर्डर कर दिये।


राजहंस का नाम मैंने योगेश मित्तल जी के राजहंस वाले संस्मरणों में काफी पढ़ा था। (अगर आपने योगेश मित्तल जी के संस्मरण नहीं पढ़ें हैं तो आप नहीं जानते आप क्या खो कर रहे हैं। आपको वो संस्मरण जरूर पढ़ने चाहिए। संस्मरण आप यहाँ क्लिक करके पढ़ सकते हैं।) इसलिए मैं राजहंस के उपन्यास पढ़ना चाहता था। इस कारण मैंने मई में राजहंस के कुछ उपन्यास मँगवाए थे लेकिन वो पौड़ी ही रह गए। अब वहाँ से उन उपन्यासों को मँगवाने के बजाए मैंने राजहंस के कुछ दूसरे उपन्यासों को मँगवाने की सोची। राजभारती के मैंने अब तक हॉरर या फंतासी (अग्निपुत्र शृंखला के उपन्यास) ही पढ़े थे तो जब उनके लिखे कुछ थ्रिलर या अपराध कथा वाले उपन्यास दिखे तो वो भी चखने के लिए मँगवा दिये। चूँकि वेद प्रकाश शर्मा जी को पढे हुए काफी वक्त हो गया था तो उनका एक उपन्यास और साथ ही एक सुनील प्रभाकर का उपन्यास  भी मँगवा लिया। 


इन सब उपन्यासों की कीमत हुई 205 रुपये और इन पर मुझे डिलवरी चार्ज लगा 130 रुपये। यह मुझे वाजिब कीमत लगी तो मैंने ऑर्डर कर ही दिया और उपन्यास मेरे पास पहुँच गए। 


आइए देखते हैं कि इस दूसरी खेप में कौन से उपन्यास मेरे पास पहुँचे: 


सितंबर 2021 बुक हॉल - 2
सितंबर 2021 में आयी किताबों की दूसरी खेप

वेद मंत्र 

वेद मंत्र वेद प्रकाश शर्मा का लिखा हुआ उपन्यास है।  लोकप्रिय साहित्य में वेद प्रकाश शर्मा ने जो मुकाम हासिल किया है वह शायद कम ही लोगों को हासिल हुआ होगा। पर मेरे साथ दिक्कत यह रही है वेद जी के मैंने काफी कम उपन्यास पढ़ें हैं। ऐसे में वेद जी पढ़े हुए चूँकि काफी वक्त हो गया था तो सोचा इसे मँगवा लूँ।  अब आ गया है तो जल्द ही इसे पढ़ा भी जाएगा। 

उपन्यास के केंद्र में एक लड़की है जो कभी कविता भटनागर तो कभी  संतोष आहूजा के नाम से जानी जाती है। वह अपने प्रेमी विक्की को अमेरिकी खुफिया एजेंसी सीआईए के चंगुल से बचाने की योजना बनाती। इस लड़की और उसके प्रेमी के अलावा उपन्यास में आंद्रोप नामक रूसी अपराधी और आर्गन नामक सीआईए के जासूस की भी मुख्य भूमिका है। वह लड़की कौन है? उसकी योजना क्या है? और रूसी अपराधी और अमरीकी जासूस का इसमें क्या रोल है? यही सवाल मन में उमड़ने घुमड़ने लगे हैं। 

देखना होगा इन सबको लेकर वेद जी ने क्या रचा है?

पराई आग 

पराई आग राजभारती का उपन्यास है। मुझे शीर्षक से यह एक सामाजिक उपन्यास लगा था लेकिन यह उपन्यास उनकी इंद्रजीत शृंखला का है और यह एक सस्पेंस थ्रिलर है। 
उपन्यास का जो पहला पृष्ठ  है उस पर उपन्यास के विषय में निम्न बात दर्ज है जो कि उपन्यास पढ़ने के लिए उत्साहित करती है:

आंतकवाद के कहर व उसके भयावह अंजाम पर एक बिल्कुल नई अधूरी दास्तान - सत्य घटनाओं पर आधारित एक सनसनीखेज तूफ़ानी रचना। 

राजभारती के इंद्रजीत किरदार के उपन्यास मैंने नहीं पढे हैं। वह कौन है क्या करता है इससे मैं इतना वाकिफ नहीं हूँ। उपन्यास के पृष्ठ पलटने पर यह ही पता चल पाया है कि वह एक तरह का एंटी हीरो है। एक अपराधी है। उपन्यास कैसा होगा ये देखना बनता है। 

अनर्थ

अनर्थ भी राजभारती द्वारा लिखा गया उपन्यास है। यह उपन्यास भी शीर्षक से सामाजिक उपन्यास लगता है लेकिन यह भी इंद्रजीत शृंखला का उपन्यास है। उपन्यास के पहले पृष्ठ पर उपन्यास के विषय में जो चीज लिखी दिखती है वह निम्न है:

पाकिस्तानी एजेंटों के नापाक इरादों व गोलियों के धमाकों के साथ परवान चढ़ती एक ऐसी खून आलूदा दास्तान, जिसमें जज़्बात की आंधी भी है और मौत का तांडव भी।

उपन्यास के विषय में लिखी हुई यह बात उपन्यास के विषय उत्सुकता तो जगाती है। 

हाँ, यह उत्सुकता उपन्यास का कथानक कायम रख पाता है या नहीं ये देखना बनता है। राजभारती मुझे लेखक ठीक लगते हैं लेकिन उपन्यासों के कथानकों को कभी कभी वो काफी खींचते हैं। शायद प्रकाशन के दबाव के कारण उन्हें उसे निश्चित पृष्ठ संख्या तक पहुँचाना पड़ता रहा होगा। पृष्ठ संख्या तक तो वो पहुँच जाते थे लेकिन कथानक का कसाव कम हो जाता था। मेरा ये मानना है कि अब प्रकाशन उनके कुछ संपादित संशोधित संस्करण निकाले तो ज्यादा अच्छा रहेगा। इससे कथानक में कसाव रहेगा और कहानी से साथ न्याय हो सकेगा। 

इंसाफ की तलवार 

इंसाफ की तलवार लेखक सुनील प्रभाकर का उपन्यास है।  सुनील प्रभाकर का लिखा आज तक मैंने कुछ नहीं पढ़ा है। यह असल नाम है भी या नहीं इसका भी मुझे अंदाजा नहीं है। हो सकता है ये ट्रेड नाम हो जिनका चलन लोकप्रिय साहित्य के स्वर्णिम युग में काफी था। 

खैर उपन्यास के आवरण चित्र और बैककवर पर जो उपन्यास को लेकर बात दर्ज है वह उपन्यास के प्रति उत्सुकता तो जगाती ही है। 

आवरण चित्र पर दर्ज है:

जालिमों के लहू की प्यासी एक ऐसी 'इंसाफ की तलवार' जिसकी चमक ने आतताइयों के कलेजे थर्रा कर रख दिये

वहीं उपन्यास के पृष्ठ आवरण पर निम्न बात दर्ज है:

किसी भी मलजूम पर होते जुल्मों को देखकर वह पागल-सा हो उठता था... और रंग डालता था धरती को जालिमों के खून से.... कौन था वो रहस्यमयी इंसाफ का पुजारी...?

एक और खास बात इस उपन्यास की यह है कि जैसे आवरण चित्रों के कारण इन लोकप्रिय उपन्यासों को पढ़ते हुए लड़कों को घरों में डाँट पड़ती थी इस उपन्यास का आवरण चित्र बिल्कुल वैसा ही है। `


बदनाम मोहब्बत 

बदनाम मोहब्बत राजहंस द्वारा लिखा गया उपन्यास है। यह एक प्रेम उपन्यास है जो कि इसके कवर और इसके कवर पर दर्ज इबारत को देखकर पता चल ही जाता है। 

कवर पर दर्ज है 

बदनमियों के साये में परवान चढ़ती एक ऐसी पाक मोहब्बत जो दुनिया भर के प्रेमियों के लिए एक मिसाल बन गई!


मुसाफिर 

मुसाफिर भी राजहंस का लिखा हुआ उपन्यास है। उपन्यास क्या है और इसकी कहानी क्या है इसके विषय में मुझे कोई आइडीया नहीं है। पढ़कर ही इसके विषय में पता चलेगा। 


*****

तो यह थे वह उपन्यास तो सितंबर की दूसरी खेप में मेरे पास आए।  अगर आप यह किताबें मंगवाना चाहते है तो एम आर पी बुक शॉप से आप भी मँगवा सकते हैं। 

वेबसाईट का लिंक: एम आर पी बुक स्टोर


इस उपन्यासों के लेखकों के विषय में क्या आपने सुना है? क्या आप लोकप्रिय उपन्यास पढ़ते थे? अगर हाँ, तो आपके पसंदीदा उपन्यासकार कौन से थे? आपको किस शैली के उपन्यास ज्यादा पसंद आते थे? मुझे बताना नहीं भूलिएगा। 

2 टिप्पणियाँ

आपकी टिपण्णियाँ मुझे और अच्छा लिखने के लिए प्रेरित करेंगी इसलिए हो सके तो पोस्ट के ऊपर अपने विचारों से मुझे जरूर अवगत करवाईयेगा।

  1. जब तक आप जैसे पाठक हैं विकास जी, तब तक तो हिन्दी साहित्य जीवित रहेगा ही चाहे वह गंभीर श्रेणी का हो अथवा लोकप्रिय श्रेणी का। लोकप्रिय उपन्यास जब तक लुगदी काग़ज़ पर (सस्ते मूल्य में) छपते थे, तब तक ही वे पल्प थे। अब वाइट पेपर पर छपे (ऊंचे मूल्य वाले) उपन्यासों को पल्प कहना उचित नहीं। वैसे मेरी दृष्टि में पल्प या लुगदी एक सकारात्मक विशेषण ही है, नकारात्मक नहीं। सुनील प्रभाकर निश्चय ही एक छद्म नाम है। आपने वेद-मंत्र मंगवाया है लेकिन यह अच्छा उपन्यास होते हुए भी उस वक़्त का है जब वेद जी का लेखन अपने ढलान पर था। अतः उसे अपनी अपेक्षा को थोड़ा कम रखते हुए ही पढ़िएगा। इस उपन्यास का कथानक वेद जी ने हॉलीवुड फ़िल्म 'दि नेट' से लिया था। मैंने वर्षों पूर्व राज भारती की लिखी हुई एक बेहतरीन मर्डर मिस्ट्री 'नवाब मर्डर केस' पढ़ी थी। आज उस उपन्यास का नाम तक कहीं नहीं मिलता है। कभी आपको वह उपन्यास मिले तो ज़रूर पढ़िए (और उसकी एक प्रति मेरे लिए भी अरेंज कीजिए)। मित्तल जी की वेद जी से जुड़े संस्मरणों की लेखमाला फिर से अटक गई है। अगली कड़ी की प्रतीक्षा करते-करते बहुत समय बीत गया है।

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    1. जी सही कहा पल्प अब नहीं रहा है। अब इस साहित्य को पॉप फिक्शन या genre फिक्शन कहा जाने लगा है। जी मुझे भी पल्प सकारात्मक ही लगता है क्योंकि इसी की वजह से साहित्य आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग तक भी अपनी पहुँच बना पाया था। सुनील प्रभाकर मुझे छद्म नाम ही लगा था। वेद जी ने आगे जाकर काफी विदेशी फिल्मों का भारतीयकरण किया था। आपने फिल्म का नाम बताकर अच्छा किया। अब वेद मंत्र पढ़ने के बाद फिल्म भी देखने का प्रयास होगा। उपन्यासो को अक्सर बिना किसी अपेक्षा के ही पढ़ता हूँ इसलिए शायद इतने विविध लोगों को पढ़ पाता हूँ। इसे भी बिना किसी अपेक्षा के पढ़ने की कोशिश रहेगी। राज भारती का नवाब मर्डर केस अगर मिलेगा तो जरूर पढ़ने की कोशिश रहेगी। प्रति मिल सकी तो आपके लिए भी एक बचाकर रखूँगा। जी मित्तल जी एक उपन्यास लिखने में व्यस्त हैं इसलिए वह कड़ी अटक गयी है। शायद इन संस्मरणों को पुस्तकार रूप में लाने की भी उनकी इच्छा है। इसलिए भी देरी हो रही है। मैं उनसे पूछूँगा।

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