संस्मरण पौड़ी के #2: और पत्थर बरसने लगे

संस्मरण पौड़ी के: और पत्थर बरसने लगे

इन खेतों को देखता हूँ तो इनसे जुड़ी कई यादें मन में ताज़ा हो जाती हैं। एक याद ऐसी भी जब आसमान से पत्थर बरसने लगे थे। यह सब हुआ कैसे यह बताने से पहले इन खेतों का परिचय आपको दे दूँ।

यह सभी खेत मेरे घर के नीचे हैं और आस पास के गाँव जैसे कांडे, पौड़ी गाँव के लोगों के  हैं। 

वह लोग इन खेतों में धान, मंडवे और गेंहूँ की खेती करते हैं। कुछ चीजें सर्दी में होती हैं और कुछ गर्मियों में बोई जाती हैं। बीच के कुछ महीने खेत खाली रहते हैं। गाँव के किसान लोग मेहनत करते हैं और अपने खेतों पर फसल लगाते हैं। फिर वह उनके बढ़ने और कटने लायक होने का इतंजार बेसब्री से करने लगते हैं। 

लेकिन यह इन्तजार बेसब्री से कुछ और लोगों को भी होता है। और वो होते है बच्चे। क्योंकि जब इन खेतों में से फसल कट जाती थी तब बच्चों को इन खाली खेतों के रूप में एक मैदान मिल जाता है। और फिर इन खेतों में कई तरह से टूर्नामेंट होते हैं। कभी ये मैच केवल पैसों के लिए रखे जाते हैं। हर खिलाड़ी कुछ पैसे जमा करता है और जीतने वालो को यह मिलते हैं। कभी यह मैच बकरे के लिए भी होते हैं। विजेता टीम को बकरा मिलता है जिसका इस्तेमाल पोस्ट विक्ट्री लंच में होता है। जो छोटे छोटे बच्चे न पैसे का खेल खेल सकते हैं और न बकरों का वह लोग पार्ले जी और दूसरे बिस्कुटों के मैच रखते भी पाए जाते हैं। कभी कभी ऐसे भी मैच खेल लिए जाते थे। जहाँ जीतने वाले को केवल विजयी होने के अहसास के अलावा और कुछ नहीं मिलता था। 

यह संस्मरण भी ऐसे ही वक्त का है जब खेतों से फसल काटी जा चुकी थी। हम लोग अब बेसब्री से सप्ताहंत का इन्तजार करते थे। ऐसा इसलिए क्योंकि उसी दिन हमें मौका मिलता था कि हम लोग सुबह से लेकर दिन तक और फिर दिन का खाना खाने और आराम करने के बाद शाम दो तीन बजे से अँधेरा पड़ने  तक इन खेतों में क्रिकेट खेला करते थे। 

यहाँ क्रिकेट खेलना का ही नतीजा है कि मैं जो प्रकृतिक रूप से दायाँ हाथ का प्रयोग करता हूँ अब जब क्रिकेट खेलता हूँ तो बायाँ हाथ के बेट्स मैन के रूप में खेलता हूँ।  अब आप सोचेंगे कि मेरे क्रिकेट के बायें हाथ का बल्लेबाज का होने का इन खेतों से क्या सम्बन्ध है? 

तो बात ऐसी है कि जब हम लोग क्रिकेट खेला करते तो इन खेतों में बायें हाथ के बल्लेबाजों को एक तरह का फायदा मिलता था। अगर आप दायें हाथ के बल्लेबाज थे तो आपका लेगसाइड ऊपर की तरफ होता था। वहीं बायें हाथ के बल्लेबाज के लिए लेग साइड नीचे की तरफ होती थी और ऑफ साइड ऊपर की तरफ। अब आपका तो पता नहीं लेकिन मुझे ऑफ साइड के बजाय लेग साइड में शॉट मारने में हमेशा से आसानी रही है। ऑफ साइड की तरफ शॉट मारने एक लिए मुझे ज्यादा मेहनत करनी पड़ती थी। ऐसे में मुझे आसानी हो इसके लिए मैं राईट हैण्ड से लेफ्ट हैण्ड बैट्समैन बन गया। मेरी बैटिंग में फायदा हुआ हो या न हो लेकिन एक फायदा ये होता था कि शॉट अब चूँकि नीचे को लगते थे तो चौके छक्के ज्यादा लग जाते थे। वहीं रन बनाने के बहुत मौके भी मिलते थे।  यानी मेरे लिए यह बदलाव फायदा का ही सौदा था। 

खैर, उस दिन भी शायद रविवार का दिन था।  मुझे याद है शुरुआत में धूप खिली हुई थी लेकिन जब तक हम सब इकट्ठा होकर नीचे खेत में पहुँचे तो आसामन में हल्के हल्के बादल छा गये थे। हमें मालूम था कि ऐसा अक्सर होता था और बारिश ना के बराबर ही होती थी तो मैच खेला जा सकता था। ऐसे मौसम में खेलना अच्छा भी रहता था क्योंकि धूप न होने से गर्मी न के बराबर होती थी। हाँ, उमस थोड़ा बढ़ जाती लेकिन वह चिलचिलाती धूप से बेहतर थी।


अब हम लोग पिच पर इकट्ठा हो गये थे। टीम छटने लगी थी। मैच कितने ओवर का होगा यह तय होने लगा था। साथ में आपसी चुहलबाजियाँ भी हो रही थी। कुछ लोग आपस में ही एक दूसरे की टाँग खींच रहे थे। दो कप्तान जो थे वो अब टॉस करने को तैयार थे। सिक्का उछाला गया और टॉस हुआ। जो कप्तान जीता उसके चेहरे पर मुस्कान आ गई और जो हारा उसकी टीम के चेहरे पर एक तरह का विषाद आ गया। ऐसा होना लाजमी भी था। 

क्योंकि मैच सुबह हो रहा था तो हो सकता था कि वो दिन तक चलता। तब खाने का वक्त हो जाना था। ऐसे में कई बार पहली वाली टीम अपनी बारी लेकर फील्डिंग के टाइम गोली हो जाती थी। कई बार जो फील्डर नीचे खड़े होते वो धीरे धीरे करके गायब होने लगे। सबको उनके बारे में पता तब चलता जब बॉल उस खेत में जाती और कोई टीम वाला उधर बॉल पकड़ने के लिए नहीं होता। ऐसे में कप्तान को पारी रद्द करने का मौका मिल जाता। छुट्टी के दिन किसी के घर खाना जल्दी बन जाता और उसकी मम्मी उसे बुला लेती तो वह लड़का दुखी चेहरा बनाकर लेकिन अन्दर से भरपूर खुश होता हुआ अपने कंधे उचकाता और बिना फील्डिंग किये घर को चला जाता। अब मम्मी का आर्डर कौन टाल सकता था भला। वहीं एक के जाने के बाद एक दो लड़के ऐसे भी निकल जाते जिन्हें याद  आ जाता कि उसकी मम्मी ने भी जल्दी बुलाया है। यह दीगर बात थी इस तरह  जाने वाले अक्सर फील्डिंग करने वाले ही निकलते। 


वैसे ही टीम पाँच छः लोगों की बनी होती तो उनमें से दो का जाना भी काफी खलता। कप्तान फिर दूसरे कप्तान को लाचारी से देखता और यह निर्णय लिया जाता कि दूसरी पारी में मैच होगा। परन्तु एक बार रद्द हुआ मैच शायद ही दूसरी पारी में कभी हुआ होगा। क्योंकि ऐसी गारंटी नहीं थी कि दूसरी पारी में जो लोग एकत्रित होंगे वह लोग उस टीम के पूरे लोग होंगे ही जिन्होंने मैच रद्द किया था।  

यहाँ, मैं बता दूँ कि ऐसा नहीं है कि यह भागना बहुत ज्यादा होता था। लगभग एक प्रतिशत बार ही ऐसा हुआ होगा लेकिन फिर यह इंसानी प्रवृति है कि वह 99 प्रतिशत अच्छी बातों को भूलकर एक प्रतिशत बुरी बात को ज्यादा तवज्जो देता है। इसलिए उस एक प्रतिशत का ख्याल पहले फील्डिंग करने वालों के मन में आना लाजमी ही था। 

खैर, टॉस हारने वाला कैप्टेन अपनी फील्डिंग लगाने में व्यस्त था और वहीं टॉस जीतने वाला कप्तान यह निर्धारित करने में कि कौन कब कब बैटिंग करने जाएगा। 

ऐसे ही बच्चा पार्टी अपने में व्यस्त थी कि तभी धप्प सी आवाज हुई जैसे कोई भारी चीज गिरी हो। मैदान में हो रही बातचीत थम गई और वहाँ शान्ति छा गई। अब सबकी नज़र उधर चली गई जहाँ पर वह चीज गिरी थी। वहाँ अब धूल ही उड़ रही थी। तभी एक और चीज धप्प से आकर हमारे नजदीक गिरी। इस बार चूँकि हम लोग उधर ध्यान दे रहे थे तो देखा वह एक पत्थर था। हममे से कुछ ने आसमान की तरफ देखा तो आसमान में बादल थे लेकिन आसमान से पानी की जगह पत्थर बरसेंगे यह किसने सोचा था?

जब तक किसी को समझ आता क्या हो रहा है कि पत्थरों के बरसने की दर बढ़ गई थी। एक के बाद एक पत्थर बरसने लगे थे। हैरत की बात यह थी कि पत्थर हमारे ऊपर नहीं बल्कि अगल बगल ही बरस रहे थे। यह पत्थर ऊपर से बरस रहे थे और हमने ऊपर देखा ही था कि पत्थर की बारिश के साथ एक और चीज होने लगी। पत्थर के बरसने के साथ साथ एक औरत की आवाज़ भी आने लगी थी। वह आवाज़ हम लोगों को गाली देती जा रही थी। हमने ऊपर नजर मारी तो पत्थर गिरते तो दिखाई दिये और आवाज़ तो सुनाई दी लेकिन कोई दिखाई न दिया। 

झूठ नहीं कहूँगा। हम लोग पहले तो डर गये थे। अगर रात घिर ही होती और तब यह घटना होती तो कई बच्चे डर के मारे चिल्लाने भी लगते। एक पल को तो मन में आया भी था कि कोई भूत है लेकिन चूँकि सुबह का वक्त ही था तो ऐसीद धारणा को हमने दूर ठेला और दूसरे ही पल सिर पर पैर रख कर नीचे वाले खेतों की तरफ कूदते हुए भागे। हमने भागना शुरू किया ही था कि आवाज़ की मालकिन भी अब नमूदार हुई। वह अब ऊपर मौजूद खेत के कोने पर आकर पत्थर मारने लगी और गालियाँ देने लगी थीं। पर तब तक हम लोग उनकी रेंज से काफी नीचे चले गये थे। कई लड़के तो उस महिला को चिढ़ा भी रहे थे और जो गलियाँ वो बोलती जा रहीं थी उसे ही उनकी आवाज़ में दोहराने की नाकाम कोशिश करते जा रहे थे। 

वह महिला कब रुकी यह देखने को हम रुके नहीं थे। काफी खेत नीचे जाकर जब उनकी आवाज़ आना बंद हो गई थी और इतना तय हो गया था कि वह महिला अपनी उस पोजीशन से नीचे नहीं आने वाली थी हम लोग रुक गये थे।


पहले पत्थर के गिरने से लेकर हमारे भागने तक का पूरा कार्यक्रम केवल दो चार मिनट का ही रहा होगा लेकिन जब हम लोग रुके तो सभी की साँसे फूल रही थीं। सभी पसीने पसीने थे। हम लोग अब रूककर इस पत्थर की बारिश के ऊपर ही बातचीत कर रहे थे। डरे सब थे लेकिन अब एक दूसरे की टाँग खींची जा रही थी कि कौन इस बारिश से ज्यादा डरा था। वो चाची गालियाँ किसे दे रही थी इसकी तोहमत भी एक दूसरे पर लगाई जा रही थी। तकरीबन आधा घंटा हम लोग हम लोग इस पर बात और हँसी ठट्ठा करते रहे। 

अब मैच तो होना ही नहीं था इसलिए हमने नीचे खेतों में घूमने का मन बना दिया। उस दिन हम लोग घूमते  रहे थे और उन खेतों में मौजूद उन गेंदों को ढूँढते रहे थे जो हमने या पिछली टीमों ने खोई थी। कई बार हमें ऐसी गेंदे उधर मिल जाती थी और नई गेंदे खरीदने के खर्चे हम बच लेते थे। यह घटना घटने के काफी दिनों बाद तक हम लोग इस बारिश का जिक्र करते रहे थे। पत्थर की बारिश के साथ हमारा या ये कहूँ कि मेरा यह पहला ही अनुभव था। इसके बाद ऐसे अनुभव इक्का दुक्का हुए थे लेकिन पहले अनुभव का रोमांच उनमें नहीं था। हमें पता था कि महिलाओं का मकसद हमें चोटिल करना नहीं बल्कि केवल डराना होता था। इसलिए उनके प्रति हमारे मन में कभी बैर भाव भी नहीं आया था। कई बार तो ऐसा लगता जैसे यह एक खेल है जिसमें उन्हें भी उतना ही मजा आता था।

असल में होता यह है कि इन खेतों में से जो खेत पिच बनती है वह खेत क्रिकेट खेलते और उस पर लगातार भागने के कारण वह खेत काफी सख्त हो जाता है। ऐसे में हल लगाते हुए खेत के मालिकानों को काफी दिक्कत होती है। फिर यदि बारिश हो तो इन सख्त खेतों से उपजाओ मिटटी बह कर नीचे वाले खेत में बह जाती है और तब शायद इनकी उर्वरता पर भी असर पड़ता है।  ऐसे में उनका बच्चों के ऊपर बिगड़ना लाजमी है।


खेत के मालिकान चूँकि दूसरे गाँवों में रहते हैं तो रोज इसकी निगरानी नहीं कर पाते हैं। इसलिए सप्ताहंत में गाहे बगाहे ऐसी बारिशे कर बच्चों को हतोत्साहित करने का असफल प्रयास करते हैं। लेकिन बच्चे तो बच्चे हैं वह उन पर कहाँ गालियों असर होता है।

मैं आपको बता दूँ आज भी इन खेतों में क्रिकेट खेले जाते हैं और आज भी बच्चों को इन पत्थर की बारिशों का सामना करना पड़ता है। 

नारंगी निशान: जहाँ से पत्थर वो महिला फेंक रही थी, नीला निशान: जहाँ हम लोग थे; यह फोटो 29 जून 2021 की है 

फसल न होने पर बच्चे इन खेतों में क्रिकेट खेलते हुए; यह फोटो दिसम्बर 23 2020 की है


 

14 टिप्पणियाँ

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  1. बहुत अच्छा संस्मरण साझा किया विकास जी आपने। ऐसी ही यादें होती हैं बचपन की जो सदा साथ रहती हैं।

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    1. जी आभार सर.. आजकल घर आया हूँ तो कुछ न कुछ ऐसा घटित हो जाता है जो पुरानी यादें ताजा कर देता है तो सोचा यहाँ उन्हें लिखता चलूँ..एक तरह से लिखते हुए खुद उन्हें जीने का मौका मिल जायेगा और यहाँ पहाड़ की जिंदगी से भी पाठक वाकिफ हो पाएंगे....

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  2. लाजवाब संस्मरण । बचपन की यादें बेशकीमती होती हैं।

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  3. सादर नमस्कार,
    आपकी प्रविष्टि् की चर्चा शुक्रवार (16-07-2021) को "चारु चंद्र की चंचल किरणें" (चर्चा अंक- 4127) पर होगी। चर्चा में आप सादर आमंत्रित हैं।
    धन्यवाद सहित।

    "मीना भारद्वाज"

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    1. शुक्रवार की चर्चा में मेरी पोस्ट को शामिल करने के लिए हार्दिक आभार,मैम....

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