धरती माँ ने पकड़े कान | हिन्दी कविता | योगेश मित्तल

धरती माँ ने पकड़े कान | हिन्दी कविता | योगेश मित्तल
Image by Papa Smurf from Pixabay


वरिष्ठ लेखक योगेश मित्तल की पहली कविता व कहानी 1964 में कलकत्ता के सन्मार्ग में प्रकाशित हुई थी। तब से लेकर आजतक वह लेखन क्षेत्र में सक्रिय रहे हैं। कविता, संस्मरण, लेख इत्यादि नियमित रूप से लिखते रहते हैं। लोकप्रिय साहित्य भी उन्होंने कई छद्दम नामों से लिखा है। 

अब  वह अपनी रचनाएँ फेसबुक,ब्लॉग इत्यादि पर लिखते रहते हैं। 

आज दुई-बात पर पढ़िए उनकी कविता 'धरती माँ ने पकड़े कान'

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धरती माँ ने पकड़े कान

धरती माँ ने पकडे कान,
काहे पैदा किया इंसान! 


भाई से भाई लड़ता है,
बेटा बाप पे अकड़ता है!
धन-दौलत की खातिर इन्सां,
अपनों के सीने चढ़ता है! 


बेटी बिके बाज़ारों में,
ठगी भरी व्यापारों में!
नेता रीढ़विहीन हो गए,
जनता पिसती नारों में! 


कोई भेड़िया, कोई सूअर है,
नहीं कोई इनमें इंसान!
धरती माँ ने पकड़े कान,
काहे पैदा किया इंसान! 


अपने सीने पर मैंने
इन्सां को दिया बसेरा है!
अपने स्वार्थ के लिए इसी ने
मेरा सीना चीरा है! 


इन्सां होकर भी ये इन्सां,
इन्सां का खून बहाता है!
फिर भी जाने क्यों यह इन्सां,
इन्सां ही कहलाता है! 


एक दिन खुद ये इंसानों से,
कर देगा मुझको वीरान!|
धरती माँ ने पकडे कान,
काहे पैदा किया इंसान! 


कभी कहीं पर, कभी कहीं पर,
बम से खेल रहा है होली!
जगह-जगह बमबारी करके
फाड़ रहा है मेरी चोली! 


मैंने इसे दिया है पानी,
मैंने इसे दिया है खाना,
इसने शुरू किया है मुझ पर
हिंसा का तांडव फैलाना! 


लगता है ये इन्सां एक दिन
मेरी भी ले लेगा जान,
धरती माँ ने पकडे कान,
काहे पैदा किया इंसान! 


लूट-डकैती मार-काट,
चाकू-छुरियाँ, बम और गोली!
क्या इसको बस यही याद है,
भूल गया है मीठी बोली! 


बात-बात पर लड़ने वाला,
बिना बात झगड़ने वाला!
जाति-पाति और ऊँच-नीच की
रोज़ सीढ़ियाँ चढ़ने वाला! 


प्रेम-प्रीत और सत्य अहिंसा
का यह भूल गया है ज्ञान!
धरती माँ ने पकडे कान,
काहे पैदा किया इंसान! 


- योगेश मित्तल

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योगेश मित्तल
लेखक: योगेश मित्तल

योगेश मित्तल जी का पूरा जीवन परिचय निम्न लिंक पर जाकर पढ़ सकते हैं:

उनकी रचनाएँ उनके ब्लॉग प्रतिध्वनि पर पढ़ी जा सकती हैं। योगेश जी के ब्लॉग का लिंक: 

दुई बात में योगेश मित्तल द्वारा लिखी हुई या सम्पादित रचनाएँ:
योगेश मित्तल 

27 टिप्पणियाँ

आपकी टिपण्णियाँ मुझे और अच्छा लिखने के लिए प्रेरित करेंगी इसलिए हो सके तो पोस्ट के ऊपर अपने विचारों से मुझे जरूर अवगत करवाईयेगा।

  1. सादर नमस्कार ,

    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शुक्रवार (28 -5-21) को "शब्दों की पतवार थाम लहरों से लड़ता जाऊँगा" ( चर्चा - 4079) पर भी होगी।
    आप भी सादर आमंत्रित है,आपकी उपस्थिति मंच की शोभा बढ़ायेगी।
    --
    कामिनी सिन्हा

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. चर्चाअंक में कविता को शामिल करने के लिए हार्दिक आभार।

      हटाएं
  2. जी नमस्ते,
    आपकी लिखी रचना शुक्रवार २८ मई २०२१ के लिए साझा की गयी है
    पांच लिंकों का आनंद पर...
    आप भी सादर आमंत्रित हैं।
    सादर
    धन्यवाद।

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.

      हटाएं
    2. पाँच लिंको का आनन्द में रचना को शामिल करने के लिए हार्दिक आभार, मैम...

      हटाएं
  3. उत्तर
    1. जी आभार... योगेश जी के ब्लॉग पर भी जाईयेगा... उधर भी काफी रचनाएँ मौजूद है....

      हटाएं
  4. बाकी तो सब कान पकड़ रहे , लेकिन इंसान कब कान पकड़ेगा ? बेहतरीन समसामयिक रचना ।

    जवाब देंहटाएं
  5. सटीक ! योगेश जी यथार्थ वाली कवि हैं और हमेशा वास्तविकता के आस पास का लेखन जिसमें व्यंग्य और तंज भी अपनी अनोखी शान रखते हैं।
    बहुत सुंदर प्रस्तुति।

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. जी आभार। उनकी रचना समसायिक होती हैं। उनके ब्लॉग पर भी आपको काफी अच्छे संस्मरण मिल जाएंगे। जाईयेगा। आभार।

      हटाएं
  6. मैं आदरणीय योगेश जी के ब्लॉग प्रतिध्वनि पर गई और उनके कई संस्मरण पढ़े। आपने एक अच्छे ब्लॉग से परिचय कराया, धन्यवाद विकास जी।
    लगता है ये इन्सां एक दिन
    मेरी भी ले लेगा जान,
    धरती माँ ने पकडे कान,
    काहे पैदा किया इंसान!
    जायज है धरती माँ का डर। माँ को सताने वाली संतानों को पापों का फल तो भुगतना ही है, आज नहीं तो कल।

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. जी आभार मैम...आपको संस्मरण पसंद आयें यह जानकर अच्छा लगा ... योगेश जी साहित्यिक दुनिया विशेषकर लोकप्रिय साहित्य दुनिया की जानकारी के खान हैं... आभार...

      हटाएं
  7. उत्तर
    1. जी आभार... योगेश जी के ब्लॉग पर भी जाइएगा.. आभार....

      हटाएं
  8. एक दिन खुद ये इंसानों से,
    कर देगा मुझको वीरान!|
    धरती माँ ने पकडे कान,
    काहे पैदा किया इंसान!
    इंसान की हरकतें ही ऐसी हैं...बहुत ही लाजवाब सृजन साझा करने हेतु बहुत बहुत आभार आपका।

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. जी कविता आपको पसंद आई यह जानकर अच्छा लगा मैम... योगेश जी के ब्लॉग पर भी जाइएगा... उधर आपको काफी कुछ अच्छा पढ़ने को मिल जायेगा...आभार....

      हटाएं
  9. योगेश जी की कविता बहुत अच्छी है। कविवर प्रदीप द्वारा हिंदी फ़िल्म 'नास्तिक' (1954) के लिए लिखा गया अमर गीत याद आ गया : देख तेरे संसार की हालत क्या हो गई भगवान, कितना बदल गया इंसान । आपने कविता साझा करके तथा ऐसे मूर्धन्य साहित्यकार के विषय में जानकारी देकर बहुत अच्छा किया विकास जी। उनकी प्रथम रचना कलकत्ता के दैनिक समाचार-पत्र 'सन्मार्ग' में प्रकाशित हुई थी, यह तथ्य मेरे लिए महत्वपूर्ण है क्योंकि अपनी उच्च शिक्षा के निमित्त मैं कलकत्ता में उसी भवन में (सितम्बर 1988 से अप्रैल 1992 तक) रहा जिसमें 'सन्मार्ग' समाचार-पत्र का कार्यालय था। आपने बताया है कि उन्होंने छद्म नाम से लोकप्रिय साहित्य भी रचा। क्या इस विषय में और जानकारी प्राप्त हो सकती है ताकि उनके द्वारा रचे गए लोकप्रिय साहित्य (सम्भवतः हिंदी उपन्यास कहानी आदि) को पढ़ने का प्रयास किया जा सके? एक बार पुनः बहुत-बहुत आभार आपका।

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. जितेंद्र जी उनके विषय में उनके ब्लॉग पर जाकर जाना जा सकता है। इसी पोस्ट में ब्लॉग का लिंक है। ब्लॉग का नाम प्रतिध्वनि है।

      हटाएं

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