शब्द निकले/ मन के कोने से ऐसे/ चन्द्र बदरी से जैसे



शब्द निकले
मन के कोने से ऐसे
चन्द्र बदरी से जैसे

कभी दिखे
कभी छुपे
तड़पाये मुझे कुछ ऐसे  
नटखट शिशु हो जैसे

शब्द निकले
मन के कोने से ऐसे
चन्द्र बदरी से जैसे 

मैं जाऊँ तलाश में
तो पा न पाऊँ उन्हें
जो बैठ करता रहूँ कोई काम
तो वो चले आएं
अचानक मिलने कुछ ऐसे
हों भूले बिसरे मित्र मेरे जैसे

शब्द निकले
मन के कोने से ऐसे
चन्द्र बदरी से जैसे

पा जाऊँ इन शब्दों को
तो मिले वो खुशी
मैं जाऊँ झूम
 मुस्कराऊँ कुछ ऐसे
मिली  कोई सम्पदा हो जैसे

शब्द निकले
मन के कोने से ऐसे
चन्द्र बदरी से जैसे

© विकास नैनवाल 'अंजान'

4 टिप्पणियाँ

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  1. बहुत खूबसूरत भावाभिव्यक्ति ।

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  2. आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज रविवार 05 जुलाई 2020 को साझा की गई है.... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. 'सांध्य दैनिक मुखरित मौन में'पर मेरी रचना को शामिल करने के लिए दिल से आभार।

      हटाएं

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