बड़ी ताकत अपने साथ बड़ी जिम्मेदारियाँ भी लेकर आती हैं

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'बड़ी ताकत अपने साथ बड़ी जिम्मेदारियाँ भी लेकर आती हैं' एक ऐसी सूक्ति है जिसे हमेशा ध्यान में रखा जाना चाहिए। यह सूक्ति मैंने सबसे पहले एक फिल्म में सुनी थी। यह फिल्म स्पाइडरमैन श्रृंखला की थी और इसमें टोबी मेग्वाईर ने स्पाइडर मैन की भूमिका निभाई थी। ऐसा नहीं था कि मैंने इससे पहले स्पाइडरमैन नहीं देखा था। मुझे याद है कि स्टार प्लस में छः बजे के करीब फॉक्स किड्स नाम का एक शो आता था जिसमें कई कार्टून्स दिखाए जाते थे। एक्स मैन, घोस्ट राइडर, स्पाइडर मैन, डन्जन्स एंड ड्रैगन्स उन शोज में से हैं जो इसका हिस्सा होते थे। लेकिन इस शो में मैंने कभी वो एपिसोड नहीं देखा था जब पीटर पार्कर के अंकल बेन उसे यह नसीहत देते हैं। इसलिए जब भी इस सूक्ति के विषय में सोचता हूँ तो मेरे जहन में उस फिल्म का ही ख्याल आता है।

आज इस कथन का ख्याल मुझे इसलिए आया कि इस सूक्ति को अब हम सभी लोगों को आत्मसात करने की जरूरत है। यह वह सूक्ति है जो स्पाइडरमैन बने पीटर पार्कर को सही राह दिखलाती है और अब यह हमारी जरूरत भी बन चुकी है।

आज के वक्त में तकनीक ने सोशल मीडिया के रूप में हर व्यक्ति को बहुत बड़ी ताकत नवाज दी है। व्यक्ति अब अपनी बात कम से कम वक्त में बड़े से बड़े जन समूह तक पहुँचा सकता  हैं। सोशल मीडिया वह ताकत है जिसके माध्यम से पल में लोग अर्श में पहुँचाये जाए सकते हैं और पल में ही फर्श में भी लाये जा सकते हैं। जनधारणाएं बनाई जा सकती हैं और जनांदोलन चलाए जा सकते हैं।
जहाँ एक तरफ रानू मंडल जैसे उदाहरण हमारे पास हैं जिनकी जिंदगी सोशल मीडिया के चलते आबाद हो गयी वहीं  हमारे पास कई ऐसे उदाहरण भी है जो सोशल मीडिया के चलते बर्बाद हो गये। दिल्ली के व्यक्ति को इसी सोशल मीडिया के वजह से कई तरह की परेशानी का सामना करना पड़ा। उन्हें प्रताड़ित किया गया  और उन्हें खुद को बेगुनाह साबित करने के लिए चार साल लगे। हरियाणा की कुछ लड़कियों ने लड़कों पर झूठे आरोप लगाये और उन्हें भी इसका खामियाजा भुगतना पड़ा। अक्सर आये दिन ऐसे कई मामले आपको मिल जायेंगे जिसमें सोशल मीडिया के चलते कई लोगों की जिदंगी तबाह हुई है।

सोशल मीडिया कितनी बड़ी ताकत है इसका अंदाजा आप इसी से लगा सकते हैं कि अब सोशल मीडिया सरकार गिराने और बनाने के काम भी आने लगा है।  कैंब्रिज अनालिटिका का मामला (जिसमें फेसबुक के कई लोगों का डाटा लेकर उन्हें राजनीतिक रूप से प्रभावित करने की कोशिश की गयी थी ) इसका एक उदाहरण है। यहाँ यह काम गलत सलत फॉरवर्ड्स, एडिटेड वीडियोस, बड़े बड़े लोग जिन्हें ज्यादा लोग सोशल मीडिया पर फॉलो करते हैं उनके माध्यम से अपने हिसाब से पोस्ट करवा कर किया जा रहा है। हाल ही में कोबरा पोस्ट(ऑपरेशन कारोके, ऑपरेशन 136) ने ऐसा स्टिंग ऑपरेशन किया था जिसमें फिल्म इंडस्ट्री और मीडिया हाउस  के कई लोगों ने पैसे लेकर एक विशेष राजनितिक विचारधारा को प्रचारित करने की बात स्वीकार करी थी। यह तो कुछ मामले हैं जो कि उजागर हुए हैं लेकिन ऐसा कितना कुछ है जो हम नहीं जानते हैं। 


ऐसे में हम लोगों की यह  जिम्मेदारी है कि हम सोशल मीडिया का प्रयोग सोच समझ कर करें। लेकिन मैंने कई बार यह बात ध्यान दी है कि ज्यादातर लोग इस मामले लापरवाही ही दिखलाते हैं। 

लेखक बस मुद्दों के ऊपर लिखने की  होड़ में रहते हैं। ऐसे में उन्हें भले ही मुद्दों की विषय में कुछ जानकारी न हो लेकिन वह उसके विषय में अपने अध कचरे ज्ञान को परोसने में लगे रहते हैं। ऐसे में अगर वह अच्छा लिखते हैं तो कई लोग उस ज्ञान को ब्रह्म वाक्य मान उसे सही समझने लगते हैं। बाद में वो बात अगर झूठ भी साबित हो जाये तो इससे लेखक और पढ़ने वाले को फर्क नहीं पड़ता है। उन्होंने अपनी धारणा बना ही ली होती है।

वही दूसरी और आम पाठक भी अपनी भूमिका इसमें निभाते हैं। वह इन्टरनेट में चीजें पढ़ते हैं, उसकी वैद्यता की जाँच नहीं करते हैं और अपने जानकारी क्षेत्र में फेसबुक, ट्विटर, व्हाट्सएप्प जैसे प्लेटफार्म के माध्यम से उसे फैलाते रहते हैं। अगर बात वह है जो वह सुनना चाहते है तो उसे प्रचारित करने में वह कोई कसर नहीं छोड़ते हैं। 

एक फॉरवर्ड या शेयर करने में व्यक्ति को एक सेकंड लगता है लेकिन उसका प्रभाव कितना ज्यादा होता है यह आप सोच भी नहीं सकते हैं। कई बार इससे दंगे हो जाते हैं, जन भावनाएं भड़काई जाती हैं, सम्प्रदायिक सद्भाव को क्षति पहुंचाई जाती है। 

अगर हाल ही के उदाहरण दूँ तो लोगों ने कोरोना से सम्बन्धित,जिनमें मीडिया हाउसेस भी शामिल थे, कितने ही फेक वीडियोस और न्यूज़ चलाए। लोगों ने भी उन्हें खूब साझा किया जिससे आपसी सद्भाव की भावना आहत हुई और बाद में जाकर पता लगा कि फैलाए गये वीडियोस में से काफी नकली थे। यह सब एक विशेष सोच के चलते फैलाए गये थे। और आमजन  की इसे फ़ैलाने में सबसे ज्यादा बड़ी भूमिका थी।  ऐसे ही कई वीडियोस या संदेश फैलाए जाते हैं। यह हर तरह के लोग कर रहे हैं। कोई भी इसमें अब पीछे नहीं रहा है।

नफरत फैलाने का यह कारोबार अब संगठित रूप से किया जा रहा है। बाकायदा टीम बनी हुई हैं जिन्हें यह काम करने के लिए पैसे दिए जाते हैं। एक खास तरीके के मेसेज, एक ख़ास तरीके के सम्पादित वीडियोस और ख़ास तरह के लेख आम जन  तक पहुँचाये जाते। फिर उस जहर को आम जन भी आगे पहुंचाने में लग जाते हैं। और यह कड़ी  बढ़ती चली जाती है। इससे वोट बैंक तैयार किया जाता है और हम आप जाने अनजाने में अपनी भूमिका इसमें निभाते हैं।

ऐसे में हमें यह सोचने की जरूरत है कि हमको किस तरह जिम्मेदारी के साथ इस ताकत का इस्तेमाल करना है  ताकि बन्दर के हाथ में उस्तरा की कहावत चरितार्थ न हो। मेरे अनुसार हम थोड़ी सावधानी बरते तो यह काम आसानी से किया जा सकता है। मैं निम्न बिन्दुओं का पालन इसके लिए करता हूँ। आशा है यह आपके काम भी आएंगे:

  1. अगर आप लिखते हैं तो घटना घटने के बाद उसके ऊपर प्रतिक्रिया करने के होड़ में न रहे। पहले मामले की पूरी जानकारी लें फिर उस पर धारणा बनाये। अगर आपने गलत जानकारी जल्दबाजी में साझा की तो यकीन जानिए बाद में आप माफीनामा भी लिख देंगे तो भी ज्यादा फायदा न होगा। हो सकता है आपका माफ़ीनामा वहाँ न पहुँचे जहाँ तक आपकी गलत पोस्ट चली थी और लोग गलत चीजों को ही सही मानने लगे। 
  2. अगर आप पाठक हैं और आपके पास कहीं से कोई बना बनाया ऐसा मैसेज, विडियो आता है जिसमें कई चीजों को तथ्य किए रूप में दिया गया है तो उसे सीधे ही अपने दोस्तों, परिवारों के साथ बाँटने न लग जाएँ। याद रखें कोई चीज इन्टरनेट से आई है इसका मतलब यह नहीं है कि वह सच ही है। एक बार पोस्ट के तथ्यों की खुद से जाँच करें। अगर आपके लिए यह सम्भव नहीं है तो उसे संदेश या पोस्ट को आगे फॉरवर्ड न करें। 
  3. कोशिश करें कि आप अपने सोशल मीडिया में नकारात्मक जानकारी के बनिस्पत सकारात्मक जानकारियाँ ही साझा करें। 
  4. अगर आपकी जानकारी में कोई व्यक्ति है जो आपको गलत संदेश भेजता है तो उसकी गलती पर उसे टोकें।ऐसे में उसे भी उसकी जिम्मेदारी का अहसास होगा। अगर आपको पता है फॉरवर्ड की गयी जानकारी गलत है तो सही जानकारी उस समूह में डालें ताकि लोग इस बात से अवगत हो सकें।
यह बेहद सरल स्टेप्स हैं जिनका प्रयोग हम सोशल मीडिया का इस्तेमाल करते हुए कर सकते हैं। याद रखिये सोशल मीडिया एक बेहद सशक्त माध्यम है जो आपको काफी कुछ अच्छा करने की ताकत देता है वहीं दूसरी और काफी कुछ बुरा भी इससे होता है। जैसे आप आग से चूल्हा जला सकते हैं, भट्टियाँ जला सकते हैं और न जाने कितने दूसरे सृजनात्मक कार्य कर सकते हैं लेकिन उसी आग को आप किसी के घर जलाने के लिए भी काम में ला सकते हैं। ऐसे में आपको यह निर्धार्रित करना होता है कि आपको आग से क्या करना है? उसी तरह से आपको सोशल मीडिया के मामले में भी आपको यह निर्धारित करना है कि आपको इस ताकत का प्रयोग अच्छाई के लिए करना है या बुराई के लिए करना है। 

आपके पास बहुत बड़ी ताकत है लेकिन याद रखिये इसके साथ आपके उतनी ही बड़ी जिम्मेदारी भी आ चुकी है।


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लेख

© विकास नैनवाल 'अंजान'

12 टिप्पणियाँ

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  1. विकास भाई,बिल्कुल सही कहा आपने कि यदि हमें कोई बात की सच्चाई पता नहीं हैं तो उसे आगे फॉरवर्ड नहीं करना चाहिए।

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  2. समझाइश भरी चिन्तनपरक पोस्ट विकास जी । अक्सर फारवर्ड किये मैसेज अधूरी जानकारी वाले या भ्रामक होते हैं।

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    1. जी धन्यवाद मैम। कई दिनों से इस चीज ने परेशान किया हुआ था तो सोचा लिख दूँ।

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  3. सही कहा जितनी बड़ी पॉवर उतनी ज्यादा जिम्मेदारी..... सोशल मीडिया ताकत तभी है जब जिम्मेदारी के साथ इसके निर्वहन किया जाय...वरना भ्रामक और नुकसानदायक भी है
    बहुत सुन्दर ज्ञानवर्धक पोस्ट।

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  4. बहुत ही उम्दा विचार। पर हम पहले आने के कतार में इतने अंधे हो गए हैं कि हम बस जल्द से जल्द किसी सूचना को साझा कर अपने आप को कतार में पहले नंबर पर देखना चाहते हैं। भले ही हम उस सूचना के बारे में कुछ न जानते हों।

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    1. सही कहा। लेखन ही न, गलत सलत फॉरवर्ड्स भी यही काम करते हैं। द्वेष ही बढ़ाते हैं।

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  5. सच ये बिल्कुल भी समझदारी नहीं कि बिना सोचे समझे कोई बात आगे बढ़ा कर दूसरों को मुसीबत में डाल देना
    बहुत अच्छी जागरूक करती प्रस्तुति

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    1. जी मैम। व्हाट्सएप्प जैसे एप्लीकेशन के आने से तो भ्रामक जानकारियाँ बहुत तेजी से फैलाई जा रही हैं। लोग भी इनकी गम्भीरता को न समझते हुए इन्हें फॉरवर्ड करते रहते हैं।

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