चश्मों का समय समय पर साफ किया जाना जरूरी है

चश्मे ही चश्मे
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कुछ दिनों पहले एक खबर देखी की लेंस कार्ट 2020 में 500 नये स्टोर खोल रहा है। लेंसकार्ट एक कम्पनी है जो चश्मे बेचती है।  इस खबर से अंदाजा लगाया जा सकता है कि चश्मो की बिक्री देश में बढ़ रही है।

इसी खबर को पढ़कर मुझे याद आया कि कुछ दिनों पहले जब मैं मेट्रो स्टेशन पर ट्रैन का इन्तजार कर रहा था तो मुझे लगा कि मुझे अब चश्मा लगाने की जरूरत है। हुआ यूँ कि ट्रैन के आने का इंतजार करते हुए जब मैंने दाएं बाएं गर्दन घुमाई तो दूर मौजूद इंडिकेटर मुझे धुँधला सा दिखाई थी। लगा इसे साफ़ देखना है तो चश्मा लगा लेना ही पड़ेगा।

कभी कभी सोचता हूँ कि यह चश्मा भी क्या खूब चीज बनाई है।अगर सही है तो चीजें साफ़ दिखाई देती हैं और सही नहीं है तो धुँधली तो दिखाई ही देती हैं बल्कि गलत चश्मा सिर दर्द भी कर देता है। वहीं इन चश्मों को लगातार साफ किया जाना भी जरूरी होता है। हो सकता है आपका चश्मा साफ हो लेकिन उसमें जमी धूल के चलते भी आपको साफ दिखाई नहीं देता हो।


अब तो चश्मों को लेकर लोगों का नज़रिया भी बदला है। पहले यह नज़र ठीक करने के काम आते थे लेकिन अब तो फैशन स्टेटमेंट भी हैं।

मुझे याद है जब मैं छोटा था तब नज़र का चश्मे का होना शर्म का पर्याय होता था। लोग चश्मे पहनने से कतराते थे और उनकी यथासम्भव कोशिश रहती थी कि चश्मे को न ही पहनना पड़े। वह अपने चश्मे को छुपाकर रखना चाहते थे। लेकिन अब जमाना बदल गया है।लोगों की नज़र कमजोर नहीं भी होती है तब भी चश्मे लगा देते हैं। इससे एक तरह का लुक जो आता है। चश्मे पहनने वाले लोग स्टाइलिश हो गए हैं। चश्मे से अब केवल नज़र ही साफ नहीं होती बल्कि लोग कूल और स्मार्ट भी दिखते हैं।

चश्मों के प्रति यह बदलाव  हर तरह के चश्मों पर हर चश्मेधारी व्यक्ति पर दिखने लगा है। अब आप कहेंगे चश्मे कितने प्रकार के होते हैं? देखिये एक चश्मा तो ऐसा है जिसे जब आप पहनते हैं तो दिखता है। वह आपके चेहरे पर नुमाया होता है।यह चश्मा कुछ ही लोगों के पास होता है लेकिन एक दूसरा चश्मा भी होता है। यह दूसरे तरह का चश्मा हर व्यक्ति ने चढ़ाया होता है।फिर चाहे वो मैं हूँ या आप हों। जी, कंफ्यूज हो गए? अरे कंफ्यूज मत होइए। यह दूसरी तरह का चश्मा वह होता है जो मन में चढ़ाया होता है। यह चश्मा ऐसा होता है जो अलग अलग रंगों में आता है।

सभी ने यह चश्मा पहना होता है और अपने अपने रंगों के चश्मे से हम इस दुनिया को देखते रहते हैं। ऐसा नहीं है कि यह चश्मा अभी से ही लोगों पर चढ़ा है। जब से मानव सभ्यता का जन्म हुआ है तभी से मानव ऐसा चश्मा लगाकर घूमता है। पहले की बात तो मैं नहीं करता लेकिन जब मैं छोटा था तब इस चश्मे को भी लोग शर्म का पर्याय मानते थे। छुपते हुए आपसदारी में उन्ही लोगों के सामने, जिन्होंने भी उनके जैसा चश्मा चढ़ाया होता था, वो इसे दर्शाते थे। लेकिन अब इस चश्मे को लेकर भी लोगों के विचार बदले हैं। लोग खुले सीना चौड़ा करके चश्मे को दर्शा रहे हैं। यह दूसरे वाले चश्मे की ही तरह फैशन स्टेटमेंट हो गया है, अच्छा माने जाने लगा है।

यह न दिखने वाला चश्मा बड़ा ख़ास होता है। व्यक्ति अपने इस चश्मे से दुनिया को देखता है और फिर पहले हैरान और बाद में क्रोधित होकर यही पूछता रहता है कि क्यों दूसरे को वही नहीं दिख रहा जो उसे दिख रहा है। जब उसे अपने आस पास ऐसे व्यक्ति नहीं दिखते हैं जिनके चश्मों का रंग उसके चश्मे के जैसे है तो वह उन व्यक्तियों की तलाश में निकल पड़ता है और उनसे यारी गाँठ देता है। आखिर में होता यह है की अलग अलग रंगों वाले चश्मे पहने लोग अलग अलग समूह में खड़े रहते हैं और एक दूसरे से केवल इसलिए झगड़ते हैं क्योंकि उनके चश्मे अलग रंग के हैं। सभी को अपने चश्मा सही और दूसरे के चश्मे गलत लगते हैं। सभी को अपना रंग पसंद आता है और दूसरे का रंग नापसंद आता है। खास बात यह होती है कि आप चश्मा लगाए हुए होते हैं लेकिन आपको इस बात का अहसास ही नहीं होता है। आखिर अहसास भी हो क्यों? चश्मा दिखता थोड़े न है?

अब आप सोच रहे होंगे कि सभी लोगों के चश्मे हैं तो फिर मेरा भी चश्मा होगा और उसका कोई रंग भी होगा? हो सकता है मेरा चश्मा भी हो और वह अलग रंग का हो। यह होने की पूरी गुंजाइश है।


ऐसे में सवाल आता है कि  हम लोगों को क्या करना चाहिए? पहनने वाला चश्मा तो एक बार को उतारा जा सकता है लेकिन जो पहना नहीं है, जो दिखता नहीं है और उससे कैसे निजाद पायें? कब इन चश्मों को बदलने की सोचें? कैसे पहचाने की हमें चश्मा लगा हुआ है?

यह सभी प्रश्न हैं जो मुझे कुछ दिनों से परेशान कर रहे हैं। मैं मानता हूँ कि सभी के तरह मेरा भी एक चश्मा है। मैं उस पर मौजूद रंग को साफ करने की कोशिश करता रहता हूँ लेकिन वक्त के साथ रंग चढ़ ही जाता है। यह होना प्राकृतिक ही है।

अक्सर यह चश्मा चीजें सरल बना देता है। चीजें सरल होती हैं तो आपको मेहनत नहीं करनी पड़ती है और इंसान जो कि मूलतः एक आलसी जीव है वो ऐसी स्थिति में खुश रहता है। यह मेरे साथ भी होता है। चश्मे पर कभी कभी रंग ज्यादा चढ़ जाता है। वो कहवात है न सावन अंधे को हर चीज हरा हरा ही दिखता है वैसे ही मुझे भी होता है।

ऐसे में मैं केवल एक चीज करता हूँ। खुद को देखता हूँ और सोचता हूँ कि क्या अपने चश्मे के कारण मैं किसी से नफरत करने लगा हूँ। नफरत एक नकारात्मक भाव है। यह बढ़ता है तो जीवन में जहर ही घुलता है। मैं इससे दूर रहने की कोशिश करता हूँ। फिर मैं यह सोचता हूँ कि क्या मैं किसी के प्रति  नफरत का भाव ऐसी चीजों के लिए रख रहा हूँ जिसके होने में उसका कोई हाथ परोक्ष रूप से नहीं है। मसलन किसी से भी  मैं उसके रंग, रूप,जाति या धर्म के कारण नफरत करने लगता हूँ तो समझ जाता हूँ कि मेरे चश्मे में गलत रंग चढ़ने लगा है। इसे फेंकने की जरूरत है। कई बार एक रंग के चश्मे के चलते अगर मैं दूसरे रंग के चश्मे वाले से नफरत करने लगता हूँ या उससे बातचीत से कतराता हूँ या उससे सभ्य नहीं रहता हूँ तो भी मैं यह समझ जाता हूँ कि चश्मे को साफ करने की जरूरत है। मैं यह इसलिए करता हूँ क्योंकि मुझे पता है कि इन चश्मों को फेंकने से या इन पर चढ़े रंग को साफ करने से भलाई केवल मेरी ही नहीं है, बल्कि मेरे आस पास के लोगो की और मेरे आने वाली पीढ़ी की भी है। जो चश्मे केवल नफरत बोते हैं वो नफरत ही काटते हैं।

मैं नास्तिक आदमी हूँ। भगवान को नहीं मानता। स्वर्ग और नर्क के विषय में मेरा यह मानना है कि व्यक्ति का स्वर्ग और नर्क यहीं इसी धरती पर होता है। आपके आस पास की दुनिया आपकी है। यह आप पर ही निर्भर करता है कि इसे स्वर्ग बनाएं या नर्क। और इसका स्वर्ग और नर्क बनने का काफी दारोमदार इस पर होता है की आपने अपने चश्मे साफ रखे हैं या नहीं। अगर उनमें रंग चढ़ने लगा है तो उन्हें साफ कर दीजिये। चश्मों पर रंग चढ़ना प्राकृतिक बात है। हम मानवों की वायरिंग ऐसी हो रखी है कि हम समूह बनाने के लिए तत्पर रहते हैं। यह चश्मे इसी समूह के निर्माण में सहायक होते हैं। लेकिन यह भी हमारी ही जिम्मेदारी होती है कि हम अपने अपने चश्मों का गाहे बगाहे निरीक्षण किया करें।

क्योंकि चश्मे पर रंग जब चढ़कर गहरा होता है तो पहनने वालो को इसका पता नहीं चलता है। इसलिए समय समय पर आत्मनिरीक्षण करना चाहिए।

तो बताइये? आपने अपना चश्मा आखिरी बार कब साफ किया था?

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©विकास नैनवाल 'अंजान'

4 टिप्पणियाँ

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  1. वाह !! बहुत खूब ! जो दिखता नहीं उसकी भी और जो दिखता है उसकी दोनों चश्मों की स्वच्छता बहुत ज्यादा जरूरी है नियमित साफ-सफाई से दुर्घटनाओं से बचाव होता है । बहुत अच्छा लेख ।

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