चलना

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चलना ही है मेरी नियति
चलना ही है मेरी फितरत

चाह कर भी नहीं पाता हूँ ठहर
करता हूँ कोशिश तो धकेल देती है ज़िन्दगी मुझे आगे

रोती है यह किसी ज़िद्दी बच्चे की तरह
अपनी इच्छाओं और आकांक्षाओं का बोझ लादती है मुझ पर

मैं बढ़ चलता हूँ उन्हें पूरा करने को
अपनी ठहराव की चाहत हो त्यागकर

क्योंकि
चलना ही है मेरी नियति है
चलना ही है मेरी मजबूरी

मैंने सुना है
जो रहता है जड़ वो मर जाता है

इसलिए चलते रहना है मुझे
ताकि रहे अहसास अपने जिंदा होने का

फिर भले ही मूँदनी पड़े मुझे अपनी आँखें
बन्द करने पड़े अपने कान

ध्यान हो बस चलने पर
उठते गिरते कदमों पर
उठती गिरती साँसों पर
अपनी कभी पूरी न होने वाली इच्छाओं पर 

न देखूँ जो हो रहा है आसपास
न सोचूँ कुछ भी
बस रहूँ चलता

क्योंकि 

चलना ही है मेरी नियति 
चलना ही है मेरी इच्छा


©विकास नैनवाल 'अंजान'

2 टिप्पणियाँ

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