अलाव

अलाव
अलाव 

र्द शाम हो
एक गर्म अलाव हो
तू हो
और होऊँ मैं,
दोनों मिलकर
बन जाएँ हम 

बस है यही 
मेरी ख्वाहिश

पर
जब
इस शाम में
तू नहीं है पास
तो
अलाव के पास बैठा
करता हूँ याद
मैं तुझे
तेरी बातों को
तेरी मुस्कराहट को

और फिर
मुस्कराता हूँ
मैं
महसूस करके
उस तपन को
जो कि है शायद
तेरी मोहब्बत की
या फिर मेरे मन से जलते
इस अलाव की
© विकास नैनवाल 'अंजान'

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कविता

#फक्कड़_घुम्मकड़
#पढ़ते_रहिये_घूमते_रहिये

6 टिप्पणियाँ

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  1. बहुत सुन्दर सृजन.. नववर्ष की हार्दिक शुभकामनाएं एवं बधाई विकास जी ।

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. जी आभार मैम। आपको भी नववर्ष की हार्दिक शुभकामनाएं एवं बधाई, मैम।

      हटाएं
  2. बहुत सुंदर प्रस्तुति। मेरे ब्लॉग पर आपका स्वागत है।
    iwillrocknow.com

    जवाब देंहटाएं

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