कमाल है!!


Image by Brian Merrill from Pixabay

भीड़ है,
भाड़ है,
दौड़ है,
भाग है,
कितनी जल्दी है,
कमाल है!

कभी इधर,
कभी उधर,
कभी यहाँ
कभी वहाँ
आदमी बेहाल है,
कितनी जल्दी है,
कमाल है!

खाने का,
होश नहीं,
जीने का
ख्याल नहीं,
जवान है,
बीमार है,
कितनी जल्दी है
कमाल है!

रुकता नहीं
थमता नहीं
पूछता नहीं
जाँचता नहीं
इच्छाएं हैं
जो खत्म होती नहीं
मंजिल हैं
जो मिलती नहीं
फिर भी 
कितनी जल्दी है
कमाल है!

जीतता है
पाता है
फिर भी वो खुश नहीं
अब तनाव है
अब अवसाद है
फिर भी
कितनी जल्दी है
कमाल है!



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कवितायें

© विकास नैनवाल 'अंजान'

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