इश्क मुश्क

इश्क-मुश्क
Image by Devanath from Pixabay

कभी कभार आप अपनी आम सी ज़िन्दगी जी रहे होते हैं और आपको कुछ न कुछ ऐसा देखने को मिल जाता है जो बार बार आपको याद आता रहता है। यह 'कुछ' होता तो बड़ा साधारण सा है लेकिन मन में किसी तरह बैठ सा जाता है और फिर बार बार आपका ध्यान अपनी तरफ खींचता जाता है। जैसे कई बार आपके शरीर के किसी हिस्से पर हल्की सी खुजली होने लगती है। आप उसे नज़रअंदाज़ करने की कोशिश करते हो लेकिन उसके होने का अहसास तब तक नहीं जाता है जब तक आप खुजला न लो। एक बार खुजलाने पर आपको राहत मिलेगी ये आपको पता है लेकिन एक बार खुजलाना शुरू करोगे और उस राहत का अनुभव करोगे तो बार बार खुजलाते रहोगे इसका भी आपको भान होता है। फिर भी आप खुजलाते हो इस उम्मीद में कि शायद खुजलाने से वह दूर हो जाये और आप मुक्त हो जाओ। वो घटनाएं भी ऐसी खुजली की तरह होती है। जब तक आप उनका जिक्र न कर लो वो आपका पीछा नहीं छोड़ती हैं। फिर आप उन्हें किसी को बताते हो या उनके विषय में लिखते हो, यह सोचकर कि शायद इससे वो आपका पीछा छोड़ दें।

कुछ दिनों पहले मेरे साथ एक ऐसी ही छोटी सी घटना घटी। वैसे अगर देखा जाये तो घटना मेरे साथ नहीं घटित हुई थी बल्कि मैं तो केवल उस घटना को घटित होते हुये देख रहा था। घटना तो मेरे सामने की तरफ बैठी एक युवती के साथ हुई थी। मैं एक मूक दर्शक था।

खैर, आप सोच रहे होंगे कि मैं किधर से किधर को जा रहा हूँ तो शुरू से शुरू करता हूँ।

अक्सर मैं दफ्तर से अपने कमरे तक जाने के लिए मैं एक साझा ऑटो लेता हूँ। अगर आप गुरुग्राम में रहते हैं तो आपने यह बड़े बड़े ऑटो देखे होंगे जो कि दस रूपये सवारी लेते हैं और आपको एक जगह से दूसरी जगह छोड़ देते हैं। मैं भी इनका ही उपयोग अक्सर करता हूँ। वैसे तो मैं ड्राईवर की बगल वाली सीट पर बैठना पसंद करता हूँ लेकिन उस दिन मैं अन्दर ही बैठा हुआ था। अन्दर एक सीट होती है जिसमें चार लोग बैठते हैं। और उस सीट के सामने की तरफ और ड्राइवर की सीट के पीछे एक तख्ती सी लगी होती है जिसमें और चार लोगों को बैठाया जाता है। यानी कुल मिलाकर आठ जन उस छोटे सी जगह में समाये होते हैं। ऐसे में यदा कदा अगर सामने वाला किसी से बात कर रहा है तो आपको कुछ न कुछ बात सुनाई ही दे जाती है। कई बार नज़र भी बात करने वाले के चेहरे पर चली जाती है। यह सब अपने आप होता है। आप जानते हैं यह शिष्टाचार के विरूद्ध है लेकिन फिर आप कान तो बंद नहीं कर सकते हैं न? तो उस दिन मैं भी उन आठ में से एक था। सफर आराम से कट रहा था और मैं अपने मोबाइल फोन में बिजी था।

तभी एक लड़की, जो कि मेरे सामने की तरफ सबसे कोने में बैठी हुई थी, ने किसी को फोन मिलाया और परेशान हालत में उससे बात करने लगी। मुझे एक तरफा बातचीत ही सुनाई दे रही थी। और बातचीत का लब्बोलबाब ये था उस लड़की को उस व्यक्ति ने ब्लाक कर दिया था। शायद व्हाट्सएप्प पर ब्लाक किया हो और अब वो उससे खुद को अनब्लॉक करने को कह रही थी क्योंकि उसे उससे बात करनी थी। सामने वाला शख्स उसकी बात टाल रहा था। और लड़की  गिड़गिड़ा रही थी। मैं फोन पर गेम तो देख रहा था लेकिन कनखियों से लड़की के भाव भी देख रहा था। उसका यह गिड़गिड़ाना फिर गुस्से में बदला और फिर मिमियाहट में बदल गया। उसके बाद क्या हुआ मुझे नहीं पता।  तब तक ऑटो का लास्ट स्टॉप आ गया था। मुझे उतरना था और मैं उतर गया। वो लड़की भी उतर गई। तब भी वह फोन पर ही थी। उस वक्त वह इतनी दयनीय लग रही थी और मेरे मन में कुछ प्रश्न कुलबुला रहे थे।

आखिर उसे ब्लॉक क्यों किया गया? क्यों वो ऐसे गिड़गिड़ा रही थी? क्या उसकी गलती थी या उसकी गलती नहीं थी? उसके साथ आगे क्या हुआ होगा यह मैं देखना चाहता था। क्या वो अनब्लॉक हो पायी? मैं उसे जाते हुए देख रहा था। उसने रोड पार की और फोन पर ही लगे हुए दूसरे तरफ चली गयी। मैं कुछ देर तक उसे जाते हुए देखता रहा और यही सोचता रहा कि बिना बात की कितनी टेंशन पाल ली है इसने। फिर वो नज़रों से ओझल हो गयी।

इस इट वर्थ इट? मैंने अपने आप से प्रश्न किया। ना मैंने अपनी गर्दन हिलाई, एक गहरी साँस ली और अपने कमरे की तरफ बढ़ चला।

इस बात को हुए कम से चार से पाँच हफ्ते गुजर चुके हैं  लेकिन आज भी गाहे बगाहे वो लड़की, उसका चेहरा जेहन में उतर जाता है। मैं ये सोच कर तस्सली देता हूँ कि उसे अनब्लॉक कर दिया गया होगा। और वो खुश होगी।

इश्क में कई बार आदमी कितना दयनीय हो जाता है।  ऐसा क्यों होता है मुझे नहीं पता?  दूसरे व्यक्ति पर इतना निर्भर हो जाना कभी कभी मुझे डरावना सा लगता है। आखिर क्यों होता है ऐसा? क्या ये सब evolutionary है? क्या इश्क का काम व्यक्ति को दयनीय बनाना है या इश्क का काम उसे उठाना है? न जाने कितने सवाल हैं जो उस घटना की याद आते ही मन में उमड़ने घुमड़ने लगते हैं?

ऐसा नहीं है कि मेरी ऐसी स्थिति नहीं हुई है। मैंने भी ऐसा महसूस किया है लेकिन जिस व्यक्ति के लिए कभी ऐसे एहसास मन में थे उससे कई वर्षों बाद जब दोबारा मिला तो मन में कोई हुक नहीं उठी। कुछ महसूस नहीं हुआ और मैं काफी दिनों तक यही सोचता रहा कि शायद यही इश्क की आखिरी परिणति होती है। आखिर में सब खत्म हो ही जाता है। अभी नहीं तो थोड़े दिनों बाद। बस आप बचे रहते हो और वो दूसरा व्यक्ति बचा रहता है। और फिर दोबारा वो भटकन शुरू होती है। किसी ऐसे व्यक्ति के लिए जो आपको दोबारा वैसा महसूस कराये।


या आप एक दूसरे के साथ इतने सहज हो जाते हैं कि उस सहजता को छोड़कर दोनों ही नहीं जाना चाहते। भले ही प्रेम का अहसास जीवित न रहे। शायद यही कारण भी है कई जोड़े अंत तक साथ रहते हैं। भले ही वो लड़ते रहे, झगड़ते रहे, भले ही उन्हें देखकर आप सोचें कि ये साथ क्यों हैं? शायद वो हद से ज्यादा सहज हो चुके हैं एक दूसरों की कमियों से, उनकी खामियों से।

आपका क्या ख्याल है?

© विकास नैनवाल 'अंजान'

8 टिप्पणियाँ

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  1. बेहतरीन मनोवैज्ञानिक और चिन्तनपरक लेख

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  2. बहुत सुंदर रचना, विकास जी।

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  3. पढकर बहुत अच्छा लगा ... होता है अक्सर ऐसा

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