जोकर

स्रोत: पिक्साबे

वो हँसा है जो मुझे दर्द ए दिल देकर ,
खून बढ़ा उसका, मैं हूँ खुश बस यही सोचकर

फ़िज़ाओं में जो ये खुशबू सी है आ बसी,
क्या गुजरा था मेरा महबूब कहीं इधर से होकर

आज आसमाँ से गायब हुआ है जो क़मर,
शायद रात छत पर मुस्कराया था वो आकर

बालो में फिराके उंगलियाँ इतने न इतराओ अंजान,
कहना है उसका, दिखते हो तुम पूरे जोकर

©विकास नैनवाल 'अंजान'

10 टिप्पणियाँ

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  1. बहुत खूबसूरत ...., एक से बढ़ कर एक अशआर..., सुन्दर सृजनात्मकता ।

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  2. ब्लॉग बुलेटिन की दिनांक 08/02/2019 की बुलेटिन, " निदा फ़जली साहब को ब्लॉग बुलेटिन का सलाम “ , में आप की पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !

    जवाब देंहटाएं
  3. आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों के आनन्द में" शनिवार 08 अप्रैल 2022 को लिंक की जाएगी .... http://halchalwith5links.blogspot.in पर आप भी आइएगा ... धन्यवाद! !

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