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स्रोत: पिक्साबे |
वो हँसा है जो मुझे दर्द ए दिल देकर ,
खून बढ़ा उसका, मैं हूँ खुश बस यही सोचकर
फ़िज़ाओं में जो ये खुशबू सी है आ बसी,
क्या गुजरा था मेरा महबूब कहीं इधर से होकर
आज आसमाँ से गायब हुआ है जो क़मर,
शायद रात छत पर मुस्कराया था वो आकर
बालो में फिराके उंगलियाँ इतने न इतराओ अंजान,
कहना है उसका, दिखते हो तुम पूरे जोकर
©विकास नैनवाल 'अंजान'
बहुत खूबसूरत ...., एक से बढ़ कर एक अशआर..., सुन्दर सृजनात्मकता ।
जवाब देंहटाएंहार्दिक आभार, मैम।
हटाएंब्लॉग बुलेटिन की दिनांक 08/02/2019 की बुलेटिन, " निदा फ़जली साहब को ब्लॉग बुलेटिन का सलाम “ , में आप की पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !
जवाब देंहटाएंबुलेटिन में मुझे शामिल करने के लिए आभार शिवम जी।
हटाएंबहुत सच लिखा आपने
जवाब देंहटाएंशुक्रिया संजय जी।
हटाएंआपकी लिखी रचना "पांच लिंकों के आनन्द में" शनिवार 08 अप्रैल 2022 को लिंक की जाएगी .... http://halchalwith5links.blogspot.in पर आप भी आइएगा ... धन्यवाद! !
जवाब देंहटाएंरचना को शामिल करने हेतु हार्दिक आभार।
हटाएंबेहतरीन अभिव्यक्ति।
जवाब देंहटाएंआभार मैम...
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