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स्रोत: पिक्साबे |
मैं ज़बाँ से कुछ न कहता होऊँ मगर,
तू न सोच कि दिल में मेरे जज्बात नहीं,
कहने को तो कह दूँ मैं हाल ए दिल,
पर अभी सही वक्त और हालात नहीं,
क्यों भीगी हैं तेरी पलके,क्यों है उदास तू,
यकीं कर अपनी ये आखिरी मुलाकात नहीं,
क्यों चलना छोड़ मैं बैठ जाऊँ ज़मी पर,
ज़िन्दगी में अभी इतनी भी मुश्किलात नहीं,
हुआ है जो इंसाँ इंसाँ के लहू का प्यासा,
न बता मुझे यह कोई सियासी खुराफात नहीं
है कौन तू और क्यों आया है यहाँ 'अंजान',
समझ आये आसानी से ये वो मामलात नहीं
© विकास नैनवाल 'अंजान'
हर अशआर अपने आप मेंं पूर्णता लिए...., लाजवाब सृजन ।
जवाब देंहटाएंशुक्रिया, मैम।
हटाएंबहुत शानदार
जवाब देंहटाएंधन्यवाद शोभित भाई।
हटाएंबहुत खूब
जवाब देंहटाएंआभार प्रशांत भाई।
हटाएंवाह बहुत उम्दा अस्आर।
जवाब देंहटाएंशुक्रिया, मैम।
हटाएंबेहतरीन 👌
जवाब देंहटाएंआभार, मैम।
हटाएंइस का शीर्षक ही इतना खूबसूरत और अर्थ समेटे हुए है कि रचना पढ़े बिना नहीं रह सकता...सुन्दर रचना
जवाब देंहटाएंआभार सर।
हटाएंजबरदस्त
जवाब देंहटाएंशुक्रिया, हितेश भाई।
हटाएंबेहतरीन, मनमोहक
जवाब देंहटाएंहार्दिक आभार सर।
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