पेशावरी हसीना

(व्हाटसैप के एक समूह में दोस्तों के साथ बातचीत चल रही थी। इस समूह में एक मित्र ने अपने जीवन की कुछ घटना बताई और उनकी टांग खींचने के लिए मैंने यह कविता लिख दी। मूल कविता में दो लाइन्स थी और उन्होने इस मज़ाक का बुरा नहीं माना।बल्कि उन्होंने ही मुझे इसमें और ज्यादा पंक्तियाँ जोड़ने के लिए प्रेरित किया। यह कविता उन्हीं मित्र की देन है। शुक्रिया उन्हें। 'बड़ा दुःख दीना' कभी किसी गाने में सुने थे तो अचानक ही मन में कौंध गए। अभी गूगल करने पर पता चला यह गाना राम लखन फिल्म का है। और इसके गीतकार आनंद बक्षी साहब थे। उन्हें भी इस प्रेरणा के लिए धन्यवाद।)


स्रोत : pixabay

एक थी पेशावरी हसीना,
 जिस ने था दिल मेरा छीना,

 बड़ा दुःख दीना रे बड़ा दुख दीना,

ख्वाबो के समंदर में वो थी खूबसूरत सफीना,
पहनती थी हिज़ाब स्याह  झीना-झीना 

बड़ा दुःख दीना रे बड़ा दुःख दीना 

घर में हुई खबर और क्रुद्ध हुई घर वाली हसीना ,
करी फिर कुटाई मेरी जैसे पीसते पुदीना,

बड़ा दुख दीना रे बड़ा दुख दीना,


पड़ी लाते, पड़े घूंसे कोई भी जगह बची न,
कहते रहा मैं मानो  मैं न इतना कमीना

बड़ा दुःख दीना रे बड़ा दुःख दीना 


उसने फिर तरेरी आँखें और पिटाई में की कोई कमी  ना,
और  आखिर में मुझसे मेरा फोन और  लैपटॉप भी छीना 

बड़ा दुःख दीना  रे, बड़ा दुःख दीना 

अब दुखता है शरीर  और आता है पसीना   
जब याद आती मुझे वो पेशावरी हसीना,

बड़ा दुःख दीना रे बड़ा दुःख दीना 



-अंजान 

10 टिप्पणियाँ

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  1. हा हा हा
    Super वाह विकास जी
    Amezing
    पढ कर मजा आ गया।

    जवाब देंहटाएं
  2. ब्लॉग बुलेटिन की दिनांक 01/10/2018 की बुलेटिन, ये बेचारा ... होम-ऑटोमेशन का मारा “ , मे आप की पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !

    जवाब देंहटाएं
  3. इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.

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