इच्छाएँ

इमेज सोर्स : पिक्साबे
मैंने कुछ ई-बुक एग्रीगेटर की सदस्यता ली हुई है। शनिवार को जब कोलकता भ्रमण से कमरे में आया तो एक बज चुके थे। आकर सीधे सो गया। 

रविवार का दिन साधारण गया। शाम को मैंने एग्रीगेटर को खोला तो उसमें ऐसी किताबों की सूची थी जो कि उस दिन किंडल पर मुफ्त मिल रही थी। मैं एक एक करके उन्हें डाउनलोड करने लगा। डाउनलोड करते करते एक डेढ़ घंटे कब बीते पता ही नहीं लगा। जब रुका तो मैं 60 से 70 किताबें डाउनलोड कर चुका था। 

मैं हर फ्री किताब डाउनलोड नहीं करता। केवल वही करता हूँ जिनका विवरण मुझे पसंद आता है और जो मुझे लगता है कि मैं पढ़ूँगा। अब मेरे किंडल अकाउंट में साढ़े तीन हज़ार से ऊपर किताबें हो चुकी हैं। किताबें तो मैंने डाउनलोड कर ली लेकिन फिर मन में एक अवसाद सा जाग गया। 

क्या मैं इन्हे अपने जीवन में पढ़ पाऊँगा।फिर मन में ख्याल आया कि कैसे  जीवन में हम लोग इन इच्छाओं के पीछे भागने में इतने व्यस्त होते हैं कि कब हाथों से ज़िन्दगी रेत की तरह फिसल जाती है पता ही नहीं लगता है। इसी सोच के तहत निम्न पंक्तियाँ मन की जमीन पर पनपी। 

अब यह आपके समक्ष रखी है। अपने विचारों से अवगत करवाइयेगा।


इच्छायें,
पनपती हैं,
मन की जमीन पर,
कुक्करमुत्तों सी,
मैं भागता हूँ,
उन्हें पूरी करता हूँ,
वो उगती चली जाती हैं,
मैं भागता चला जाता हूँ,
भागते भागते,दौड़ते हाँफते,
गिर पड़ता हूँ,
देखता हूँ उठकर,
फिर उग चुकी हैं,
पहले जितनी थी,उससे ज्यादा,कई ज्यादा,
ये इच्छायें 
पनपती हैं
मन की जमीन पर,
कुक्करमुत्तों सी,
मैं भागता हूँ,पूरी करने को
और धम से गिर पड़ता हूँ,
कभी न उठने के लिए

- अंजान

© विकास नैनवाल 'अंजान' 

4 टिप्पणियाँ

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  1. ब्लॉग बुलेटिन की दिनांक 26/10/2018 की बुलेटिन, "सेब या घोडा?"- लाख टके के प्रसन है भैया !! “ , में आप की पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !

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    1. मेरी रचनाओं को स्थान देने के लिए हार्दिक आभार,शिवम जी।

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  2. शानदार ,बहुत बढ़िया लिखा जी।
    इच्छा मृग मरीचिका के समान होती है।व्यक्ति जीवन भर इच्छाओं को पूरा करने के लिए दौड़ भाग करता रहता है।जीवन खत्म हो जाता है लेकिन इच्छाएँ खत्म नहीं होती ।

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    उत्तर
    1. शुक्रिया जी। आपने सही कहा। इसी सोच के चलते यह लिखा था।

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