माउंट आबू #3 (शनिवार): नक्की झील, टोड रॉक और बोटिंग

20 मई २०१७,शनिवार 
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पिछली कड़ी में आप पढ़ चुके थे कि हमने लंच निपटा लिया था। उसके बाद थोड़ी मस्ती भी कर ली थी। फिर आराम फरमा कर हमे तैयार होने के लिए कह दिया था। अब जब तक लोग बाग़ तैयार होते हैं तब तक आपको माउंट आबू के विषय में कुछ बता दूँ। वैसे तो ये सारी बातें विकिपीडिया या राजस्थान टूरिज्म की साईट से प्राप्त हो जाएँगी लेकिन चूँकि आप इधर आ ही चुके हैं तो संक्षिप्त में इधर ही कुछ बातें जान लीजिये। तो माउंट आबू के विषय में कुछ बातें:

१.आपका तो पता नहीं लेकिन जब भी राजस्थान शब्द सुनता हूँ तब मेरे मन में जो चित्र उत्पन्न होते हैं उनमे मुख्यतः रेत के टीले, ऊँट या किले ही महत्वपूर्ण रूप से होते हैं। लेकिन माउंट आबू इन तस्वीरों बिलकुल जुदा है। सिरोही जिले में मौजूद माउंट आबू राजस्थान का एकलौता हिल स्टेशन है। नदियाँ, झील,झरने और हरियाली से भरपूर इस स्थान पर आकर आपको लगता ही नहीं है कि आप राजस्थान में हैं।
२. माउंट आबू समुद्र तल से १२२० मीटर की ऊँचाई पर है।
३. माउंट आबू का पहले चौहान साम्राज्य का हिस्सा था। बाद में सिरोही के राजा ने इसे अंग्रेजों को अपना मुख्यालय बनाने के लिए लीज पे दे दिया।
४.माउंट आबू का प्राचीन नाम अर्बुदांचल था।
५. माउंट आबू से जुडी कई पौराणिक गाथाएं भी हैं। ये गाथाएं मुझे रुचिकर लगी इसलिए इधर दे रहा हूँ। 

एक कथा के अनुसार ऋषि वशिष्ट ने धरती को राक्षसों से बचाने के लिए इधर यज्ञ किया था। उस यज्ञ से चार राजपूत पैदा हुए थे। जिन्होंने आगे चलकर चार राजपूत परिवार बनाये। 

दूसरी कहानी के अनुसार इस जगह का नाम हिमालय के पुत्र आरबुआदा के नाम पर पड़ा है। आरबुआदा एक विशालकाय साँप था जिसने एक गहरी खाई में शिवजी के बैल नंदी की जान बचाई थी।

ये कथाएँ हो सकता है किंवंदती हों लेकिन अगर घुमते हुए आपको इन कथाओं का भान हो तो फिर घूमने का अनुभव और ही होता। आप अपनी कल्पनाओं को उड़ान दे सकते है। आरबुदा और नंदी की कल्पना कर सकते है। यज्ञ से उत्पन्न हुए राजपूत और फिर उनके राक्षसों से युद्ध की कल्पना कर सकते हैं। ऐसा करने से घूमने का अनुभव और रोमांचक ही होगा। मुझे इसीलिए किसी भी जगह से जुडी ऐसी कथाओं में विशेष रूचि रहती है। वो अलग बात है मुझे इनका पता घूमकर आने के बाद ही चलता है।

६. यह भी कहा जाता है कि गुर्जर मूल रूप से इधर के ही निवासी हैं और इधर से ही उन्होंने अपना राज्य फैलाया था।
(स्रोत: ,,)
तैयार होने के बाद हम  माउंट आबू के भ्रमण पर निकले। हम अपने होटल सवेरा पैलेस से निकले और कुछ ही दूर स्थित नक्की झील पर पहुँचे। झील हमारे होटल से पाँच दस मिनट की दूरी पर ही थी। टहलते टहलते हम उधर पहुँच गए थे। रास्ते सैलानियों से भरे हुए थे। कई जगह घुड़सवारी की भी सुविधा थी। माहौल बड़ा सुहावना था और हम मस्ती में चल रहे थे।


पार्क में जाने के लिए गेट


नक्की झील कैसे बनी  इसके पीछे भी कई लोक कथाएँ हैं। कहा जाता है कि देवताओं ने एक भयंकर राक्षस से बचने के लिए इसका निर्माण किया था।  इसक निर्माण  उन्होंने नाखुनों से किया था इसलिए इसे नक्की (नख या नाखून) झील कहते हैं। 

दूसरी किंवंदती के अनुसार रसिया बालम ने इस झील का निर्माण किया था।  उस वक्त के राजा ने कहा कि जो भी व्यक्ति एक दिन में ये झील खोद देगा उससे वो अपनी बेटी का विवाह कर देंगे। मूर्तिकार रसिया बालम ने ये कर दिखाया लेकिन फिर चूँकि राजकुमारी की माँ नहीं मानी तो ये शादी नहीं हो सकी।  रसिया बालम और कुंवारी कन्या का मंदिर दिलवाड़ा के मंदिरों में है। 

(स्रोत)

उस वक्त शाम के चार बजकर  दस मिनट के करीब हो रहे होंगे जब हम झील के निकट पहुँचे। झील के किनारे बैठने के लिए एक पार्क बना हुआ है। उधर जाकर एक बेंच पर हम में से कुछ लोगों ने अपनी तशरीफ़ टेकी और कुछ लोग इधर उधर के नजारों में व्यस्त हो गये। मैं भी झील और उधर हो रही हल चल में व्यस्त हो गया। थोड़े बहुत झील की तसवीरें उतारी। झील के एक कौने में काफी नावें थीं। कुछ तो शिकारा की तरह थी और कुछ छोटी नाव थीं। झील के दूसरे कोने में बच्चों के लिए एक विशेष खेल था। प्लास्टिक की बड़ी ज़ोर्ब बॉल्स (zorb balls) में बच्चों को डाल दिया जाता था और फिर उन्हें पानी में छोड़ देते थे। ये बॉल्स एक रस्सी से बंधी रहती थी। अब बच्चे उस बॉल के अंदर  पानी के ऊपर चलने के प्रयास करने  में लुड़कते रहते। उन्हें देखकर मेरा भी मन उसे करने का कर रहा था। लेकिन शायद ये सुविधा वयस्कों के लिए नहीं थी। मुझे तो कोई वयस्क ये करता नहीं दिखा वरना मैं जरूर एक बार इसका अनुभव लेता। मुझे एक बार ज़ोर्बिंग तो करनी है।  इसके इलावा पार्क में काफी भीड़ थी। लोग बाग़ बैठे हुए थे। कुछ बच्चे आम की कैरियाँ बेच रहे थे तो कोई आइस क्रीम बेच रहा था । सैलानी सेल्फी खींच रहे थे या एक दूसरे की तस्वीर निकाल रहे थे। यानी पूरा वातावरण एक सकारात्मक एनर्जी से भरपूर था।  मैं कुछ देर इसी वातावरण का आनंद लेता रहा।

नक्की झील में मौजूद नावें  

नक्की झील  


नक्की झील का हाई पॉइंट जहाँ का ट्रेक मुझे करना था 


फोटो खींचने और आस पास के नज़ारों को देखने  के बाद मैं बाकी एसएमइयन्स  के निकट खड़ा हो गया। उधर ये डिस्कशन होने लगा कि अब क्या किया जाये। मुझे तो सर्वसम्मति से जो निर्धारित होता वो मंजूर था। समूह में घूमने पर अक्सर वही करना होता है जो सब चाहते हैं। इसलिए मैं अपने ही ख्यालों में खोया हुआ था।

मैं झील के ऊपर मौजूद हाई पॉइंट की तरफ देखकर सोच रहा था कि उधर जाना कितना अच्छा होगा। शायद इस बाबत मैंने एक दो लोगों से बोला भी लेकिन कुछ सकारात्मक प्रतिक्रिया न देखकर दोबारा अपने ख्यालों में डूब गया। मैं ख्यालों में डूबा हुआ था कि तभी दिनेश भाई की आवाज़ मेरे कान में पड़ी। दिनेश भाई किसी जगह की बाबत बात कर रहे थे। उधर पहुँचने के लिए हमे चढ़ाई चढ़नी थी। चढ़ाई और चढ़ना शब्द ने मेरे कान खड़े कर दिए थे। ट्रेकिंग का मुझे शौक रहा है और अगर इस ट्रिप में वो हो जाती तो मेरे वारे न्यारे हो जाते। बातचीत में आये इस नए मोड़ ने मुझे उनकी बातों को ध्यान से सुनने के लिए विवश कर दिया था। मेरे मतलब की बात थी तो मैंने  बात सुननी शुरू की और पता चला वो किसी टोड रॉक के विषय में बोल रहे थे। उन्होंने कहा थोड़ी देर चलने पर ही हम टोड रॉक पहुँच सकते थे और उधर से काफी विहंगम दृश्य देखने को मिलते। उनकी बातों से मैं उत्साहित था लेकिन चलने के नाम पर काफी एसएमपियन्स ज्यादा उत्साहित नहीं लग रहे थे।  गुरूजी को चोटिल थे इसलिए पहले ही बेंच पर अपना आसन लगाकर विराजमान थे। योगेश्वर भाई के टखनों में थोड़ी प्रॉब्लम थी तो वो सीधी सड़क पर चलने के लिए तो तैयार थे लेकिन सीढिया और चढ़ाई वाले रस्ते पर जाना नहीं चाहते थे। बाकी कुछ लोगों ने भी पहले तो थोड़ा  ना नुकुर किया लेकिन आखिर मान ही गए। मुझे पहले लग रहा था कि कहीं ऊपर जाना कैंसिल न कर दें। लेकिन जब ऐसा नहीं हुआ तो मैं काफी खुश हो गया।


टोड रॉक की बात करें तो इसे ऐसा इसलिए कहा जाता है क्योंकि साइड से ये ऐसा लगता है जैसे कोई मेंडक झील में छलांग मार रहा हो। जब दिनेश भाई ने इसे हमे नीचे से दिखाया था तो मुझे ये मेंडक कम और कछुआ ज्यादा लगा था ये बात मैंने उस वक्त कही भी थी लेकिन बाद में ऊपर पहुँचकर लगा कि नाम सार्थक है। 

झील से टोड रॉक टर्टल, रॉक लग रहा था


उत्साह में  आगे आगे भाग रहा था। नक्की झील से रास्ता सीधा ही था। रास्ते के बगल  कुछ चट्टानें थीं। वो थोड़ा ऊँचाई पे थी और उन्हें देखकर मेरे भीतर का पहाड़ी कुछ ज्यादा ही उत्साहित हो गया और बकरे की मानिंद कुछ देर में कूदते फांदते मैं ऊपर चढ़ गया। अब मैं उधर खड़े होकर पोज़ मार रहा था लेकिन फिर नीचे से मुझे झिडकी पड़ी। मैं चाहता था कि कोई मेरी फोटो खींचे लेकिन उधर से बोला गया कि मैं उतर आऊँ क्योंकि ऊपर चढ़ने में देर हो रही थी और हमे बोटिंग के बाद सनसेट पॉइंट भी जाना था। मैं हतोत्साहित हुआ ही था कि शिव भाई फोटो खींचने को तैयार हो गये उन्होंने मेरी एक फोटो खींची। साथ में पुनीत भाई ने भी मेरी फोटो खींची। फोटो खिची तो संतुष्टि हुई कि चढ़ना सफल हुआ। फिर जिस गति से चढ़ा था, उसी गति से नीचे भी आ गया और सही रास्ते पे लग गया।
शिव भाई का खींचा फोटो। 

मेरे चलने की स्पीड तेज है तो मैं जल्दी जल्दी चल रहा था। रास्ते की बात करूँ तो रास्ता साधारण था। सीढ़ीनुमा रास्ता था। आप चढ़ते हुए आराम से ऊपर पहुँच सकते थे। ऐसा नहीं था कि आप रास्ता भटक सकते थे।  ऊपर चढ़ते हुए एक छोटा सा मंदिर जैसा था। उधर लिखा था कि उस गुफा में स्वामी विवेकानंद ने कुछ हफ्ते बिताये थे।  मुझे वो साधरण सा लगा। उस वक्त सोचा कि ऊपर से नीचे आते वक्त अन्दर जाकर देखूंगा। और ऊपर चल दिया। लेकिन बाद में भी अन्दर जाने का मौका नहीं मिला। इसलिए कल पर छोड़ने के लिए मना किया है कबीर बाबा ने।

रास्ते में मौजूद मंदिर और चम्पा गुफा 

गुफा दर्शाता बोर्ड 


चलने के मामले में अगर बात करूँ तो राकेश भाई और वीर नारायण भाई की चलने की गति सराहनीय थी। वो दोनों मेरे से जल्दी ऊपर पहुँच गये थे।हमने टोड रॉक की तरफ चलना चार पैंतीस के लगभग शुरू किया होगा और मैं ऊपर लगभग चार चाव्वालीस पे पहुँच गया था।  यानी ऊपर पहुँचने में मुश्किल से दस मिनट भी नहीं लगे होंगे। बाकी लोग अपनी गति से ऊपर आने में लगे हुए थे।  वो हँसी ठट्टा करते हुए आ रहे थे। ऐसे में उधर क्या बातें हुई होंगी इसका पता तो उन्हें ही होगा।


पेड़ों के झुरमट से दिखती झील 



टोड रॉक की तरफ अग्रसर राकेश भाई और वीर नारायण भाई 


रास्ते लगे हुए एसएमपियन्स

ऊपर से झील का नज़ारा 

एक पैनोरमा शॉट 

टोड रॉक 

खैर, मैं वीर भाई और राकेश भाई से थोड़े देर में ऊपर पहुँचा। ऊपर का नज़ारा वाकई मनोरम था। ऊपर तेज और ठंडी हवाएं चल रही थीं। हमने सबके आने तक यहाँ वहाँ जाकर फोटो उतारी। फिर जब सब आ गये तो हमारे इधर उधर जाने में थोड़ी सी बंदिश लग गयी। क्योंकि हवा तेज चल रही थी इसलिए बड़े-बुर्जुर्ग लोग हमे ज्यादा किनारे जाने से रोक रहे थे। हमने उनका कहना भी माना। लेकिन उधर मुझे मेरी सिंहगढ़ लोहगढ़ वाली यात्रा याद आ गयी। ये हवाएं तो उसके सामने कुछ भी नहीं थी और उस वक्त तो चूँकि बारिश और कोहरा था तो किले के आसपास काफी भयावह नज़ारा था। खैर, मैं कल्पना की उड़ान से वापिस धरती पे आया।

उधर फोटोग्राफी का सेशन कुछ देर चला। हमने ग्रुप फोटो ली। जब हम ग्रुप फोटो ले रहे थे तो एक दक्षिण भारतीय भाई भी हमारी फोटो ले रहे थे। मैंने उन्हें हमारे साथ ग्रुप फोटो में आने को कहा लेकिन उन्होंने शर्मा कर मना कर दिया। फिर उनके साथ आयी महिला ने कुछ कहा और वो उधर चले गए। हमारा फोटो सेशन इसके बाद भी चला। फिर नीचे चलने का निर्णय हुआ। नीचे जाने से पहले मैंने राकेश भाई से बोला कि क्या पीछे जाकर देखें कि इस रॉक के टॉप पर चढ़ा जा सकता है या नहीं। अगर ऐसा हो सकता तो मज़ा आ जाता। वो तैयार हो गये।  हम पीछे गये भी और थोड़ा चढ़े भी लेकिन हमे जल्द ही पता चल गया कि ऊपर पहुँचना नामुमकिन था। इसलिए हम वापस आ गये। फिर थोड़ा बहुत और फोटो खिंचवाई और नीचे की तरफ चलने लगे।
वो लोग जिन्होंने टोड रॉक फ़तेह किया : राकेश भाई , विद्याधर  भाई, राजीव भाई, कुलदीप भाई, संदीप अग्रवाल जी , मैं , पुनीत जी, जी पी जी ,सैंडी भाई ,अल्मास भाई, शिव भाई , दीपक भाई, वीर नारायण जी और दिनेश भाई 

आज मैं ऊपर आसमाँ नीचे 

 हम पाँच बीस के करीब तक नीचे पहुँच चुके थे। हम नीचे आये तो उधर पार्क के नज़दीक एक चाय वाले की दुकान थी। कुलदीप भाई  उधर बैठ गये। उनके माध्यम से पता चला कि उधर चाय अच्छी बनती है। और मेरे जानने वालों को पता है कि चाय मुझे जितनी मिले उतनी कम है। मेरा तो पूरा मूड बन गया था चाय का। कुलदीप भाई का भी मूड लग रहा था लेकिन बाकियों को बोटिंग करनी थी। और फिर गुरुजी और बाकी लोग हमारा इंजतार भी कर रहे थे। इसके इलावा बोटिंग के बाद हमे सनसेट पॉइंट भी जाना था। इसलिए चाय के विषय में मन मारकर हम पार्क की तरफ चले गये। जब दुकान वाले को लगा कि हम उठ रहे हैं तो उन बुजुर्गवार ने भी  हमे रोकने की कोशिश करी लेकिन फिर भी इन निष्ठुर लोगों पर कोई असर नहीं हुआ और दो चाय प्रेमियों को चाय मिलने से रह गयी। उस छूटी चाय की टीस अभी भी मन को दुखी कर देती है।

ऑन सीरियस नोट इधर मैं दीपक भाई की तारीफ़ करना चाहूँगा। उनके कमर में दर्द था जिससे उनका चलना मुश्किल हो रहा था। जब वो नीचे उतर रहे थे तो उनकी चाल से साफ़ जाहिर होता था कि उन्हें परेशानी हो रही थी लेकिन उन्होंने हर जगह उतने ही उत्साह से सबका साथ दिया। हैट्स ऑफ टू हिम। उनका जज़्बा प्रेरणादायक था।

 हम जब पार्क में वापस पहुँचे तो हमने सबको जहाँ छोड़ा था उधर ही पाया। फिर थोड़ा बहुत विचार विमर्श के बाद  बोटिंग का निर्णय हुआ।  टिकेट ली गयी और हम अन्दर दाखिल हुये। सब अलग अलग समूह में थे। मैं कुलदीप भाई के साथ था। उधर सबको लाइफ जैकेट दी जा रही थी और उसके पाँच रूपये लिए जा रहे थे। हम लोगों को लग रहा था कि हम २१ लोग होंगे। जो जैकेट दे रहा था उसने हमसे पूछा :आप इक्कीस लोगों में से हैं। 
हमने कहा: जी। 
जैकेट वाला :  पहले वालों ने भी पैसे नहीं दिए आपको देने होंगे। 
हम : हमारे पीछे जो आ रहे हैं उनसे लेना। 
जैकेट वाला :सभी ये कह रहे हैं। आप लोग ही दो। मैं कितनो को याद रखूँगा। 

हम पशोपेश में पड़ गये क्या किया जाए। हमे सही काउंट भी नही पता था। फिर उधर से हमे शिव भाई और अल्मास भाई दिखे। उनके हाथ में टिकेट भी थे तो हमने उनके आने का इंतजार किया। वो आये तो उन्होंने कहा कि हम २१ नहीं सतरह आदमी हैं। ये बात उस आदमी को समझाने के लिए थोड़ा वक्त लगा कि चार लोगों की टिकेट कैंसिल करवा दी गयी थी। लेकिन आखिर उसके समझ में आ गयी। शिव भाई ने लाइफ जैकेट के एक्स्ट्रा चार्ज पर हैरत जताई। उन्होंने कहा कि ये नया है। लेकिन चार्ज देना था तो दिया ही।  फिर हमने अपनी जैकेट ली और नीचे चल दिए।

मुझे उस जैकेट को  पहनने का तरीका नहीं पता था। उधर एक व्यक्ति दिखा जो एक महिला को जैकेट पहना रहा था। उसने एक दो को और पहनाई। मैं उसके पास गया तो बोलने लगा आगे जाओ आपको आगे पहना देंगे। बहुत गुस्सा आया उस वक्त। शायद वो खाली महिलाओं को जैकेट पहनाने के लिए रखा गया था।

खैर, हम आगे गये। किसी तरह जैकेट ऐसे ही डाल दी। नाव वाले ने भी बोला कि जैकेट इतनी जरूरी नही है। अल्मास भाई,जो के जैकेट के गंदे होने के कारण मन मारकर इसे पहनने वाले थे, कि ये बात सुनकर बांछे  खिल गयी। उन्होंने जैकेट ऐसे ही हाथ में पकड़ने का मन बना लिया।

फिर सब बोट पर लदे और बोटिंग का सफ़र शुरू हुआ। हम सब बैठे ही थे कि और बोट चलनी शुरू हुई ही थी  हमे याद आया कि महेश ठाकुर जी  हमारे साथ नहीं थे। उन्हें भी बोटिंग करनी थी और वो बाथरूम गये थे लेकिन दौड़ा भागी में कहीं रह गये थे। लेकिन अब क्या हो सकता था। जब ज्यादा लोग हों तो ऐसा अक्सर हो जाता है। आपको समूह के साथ रहना होता है वरना जल्दबाजी में छूटने की सम्भावना बढ़ जाती है।

बोटिंग  के दौरान सामने हमे भारत माता नमन स्थल दिखा जहाँ सबने भारत माता का जयघोष किया। उसके बात चीत होने लगी। गुरप्रीत सर जी ने बोट वाले भाई से सवाल किया तो उन्होंने कहा कि वो हमारे चुप होते ही सब कुछ बताने वाले थे। ये सुनकर कुछ लोग खुद चुप हो गये और कुछ को गुरप्रीत जी ने चुप करवा दिया।उनका रौब ही ऐसा है। अच्छे खासे चुप हो जाएँ। 😜😜😜 

अब बोट वाले भाई गाइड का काम करने लगे।

उन्होंने झील में पाये जाने वाले जीव जंतुओं के विषय में बताया। उधर मौजूद महाराजा जयपुर के महल के विषय में बताया। उन्होंने बताया उधर अब कंस्ट्रक्शन की अनुमति अब नहीं मिल सकती थी  इसलिए कुछ नया निर्माण तो हो नहीं सकता था तो जो उधर था उन्हें ही होटल में बदला जा रहा था। इसी के साथ वो हिंट भी सरका रहे  थे  कि थोड़ा टिप के लिए वो हमारे चक्कर को बढ़ा भी कर सकते थे। लेकिन चूँकि हमे सनसेट पॉइंट भी जाना था तो हमने चक्कर न ही बढवाने की सोची। चक्कर को साधारण रखकर वापस ले जाने के निर्देश उन्हें दिये गये।

झील के बीच में एक फव्वारा भी था। बोट वाले सैलानियों को उसके निकट भी लेकर जा रहे थे जिससे उनपर पानी की फुहार पड़ती। लेकिन चूँकि हमारे पास कैमरा था जिसमे पानी जाने के आसार थे इसलिए हमने उन्हें  उधर ले जाने के लिए मना किया। लेकिन तब तक वो उसी दिशा में बढ़ गये  थे  तो उन्हें  दिशा बदलने में थोड़ा वक्त लगा। ऐसे में हम एक दूसरी नाव से भी हल्के से भिड़े और थोड़े पानी की फुहार हमारे ऊपर गिरी भी थी।

उधर एक राइड भी थी जो सैलानियों को ऊपर ले जाती थी और जहाँ जाकर वो आबू शहर को देख सकते थे। झील के किनारे ही एक मंदिर भी था  शायद रघुनाथ मंदिर। ये सब भी उन्होंने ही हमे बताया।

ऐसे ही थोड़े देर में बोटिंग समाप्त हुई और हम पार्क पे वापस आ गये।
बोटिंग के दौरान : लेफ्ट से : योगी भाई, संदीप अग्रवाल जी, नवल जी (मुंडी ही दिख रही है),अमीर सिंह जी , वीर नारायण भाई, पुनीत भाई, राजीव भाई,  गुरप्रीत जी , राजीव रंजन जी उर्फ़ गुरुजी, विद्याधर  भाई,कुलदीप भाई ,सैंडी भाई , मैं ,दीपक भाई और अल्मास भाई (तस्वीर अल्मास भाई की फेसबुक वाल से साभार)

उधर एक मस्त वाक्या हुआ। हमारे समूह में संदीप भाई एक उम्दा फोटोग्राफर हैं जिनकी फोटोग्राफी हम सबको अभिभूत करती है। उन्होंने लैंप की एक मस्त फोटो ली और उससे मुझे दिखाते हुए कहा कि कुछ भी कहो फोटो ब्लैक एंड वाइट मस्त आती है। मैंने फोटो देखी तो बेहतरीन थी।उनकी फोटो देखकर मुझे भी जोश आ गया। मन में फोटोग्राफी से जुड़े कई हवाई किले खड़े कर दिये। फिर मैंने उन्हें थोड़ा आगे निकल जाने दिया। और अपने फोन से उसी लैंप की फोटो खींची। जब अपनी खिंची फोटो देखी तो हँसी आ गयी। जिसका काम उसी को साजे और करे तो बुद्धू बाजे की कहावत चरित्राथ हुई थी। मैंने आस पास देखा। किसी ने मुझे फोटो लेते नहीं देखा था। बस फिर क्या था, फोन जेब में रखा और ऐसे निकल गया जैसे कुछ हुआ ही न हो।

बाकी लोग आगे निकल गये थे तो मैंने उनको पकड़ा। उस वक्त छः दस के करीब बज रहे होंगे।  अब हमे सनसेट पॉइंट की तरफ जाना था।

क्रमशः

पूरी ट्रिप के लिंकस
माउंट आबू मीट #१: शुक्रवार का सफ़र
माउंट आबू मीट #२ : उदयपुर से होटल सवेरा तक
माउंट आबू  #3 (शनिवार): नक्की झील, टोड रोक और बोटिंग
माउंट आबू #4: सनसेट पॉइंट, वैली वाक
माउंट आबू मीट #5: रात की महफ़िल
माउंट आबू मीट #6 : अचलेश्वर महादेव मंदिर और आस पास के पॉइंट्स

2 टिप्पणियाँ

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  1. विकास जी आप बहुत अच्छा लिखते है। माउंट आबू की झील भी बहुत सुंदर है।

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