माउंट आबू मीट #7: गुरुशिखर

इस यात्रा वृत्तांत को शुरू से पढने के लिए इधर क्लिक करें।
21 मई 2017 का वृत्तांत

इवेंट के फेसबुक पेज से साभार 

अब तक आपने पढ़ा कैसे मैं और राकेश भाई अचलेश्वर में ट्रेक पे निकल गये थे(माउंट आबू मीट #7)। हम वापस आये तो पता था कि गाली काफी खानी पड़ेगी। लेकिन किसी ने गाली नहीं दी। हम जल्दी से अपनी सीट में बैठ गये और अपने अगले गंतव्य स्थान के लिए निकल गये। हमे गुरु शिखर जाना था।  गुरुशिखर के विषय में कुछ जरूरी बातें निम्न है :
१.  गुरुशिखर राजस्थान के अर्बुदा पहाड़ों में एक छोटी है ।
२.  समुद्र तल से 1722  मीटर(5676 फीट) की ऊँचाई पे मौजूद ये छोटी अरावली पर्वतमाला की सबसे ऊँची चोटी है।
३.  इस चोटी में भगवान विष्णु के अवतार दत्तात्रय  का मंदिर है।


हमे सुबह ही बता दिया गया था कि यह अरावली की सबसे ऊँची चोटी है तो मेरे मन में इसे देखने की उत्सुकता थी। हम गाड़ी में बैठे जा रहे थे और बातों का सिलसिला चल रहा था। हमारी बातों का सिलसिला पता नहीं कैसे gore की तरफ मुड़ गया। मुझे साहित्य में  हॉरर पढना  पसंद है। हॉरर के भी कई प्रकार होते हैं। मैंने कहा मुझे gore पढना भी पसंद है।  अमीर सिंह जी ने कहा उन्हें साहित्य का gore sub genre पसंद नहीं आता।  मैंने कहा मैंने इसे पढ़ा है और मैंने उनके Edward Lee के कहानी संकलन Mr Torso के विषय में सबको बताया। इस संकलन की टाइटल कहानी Mr  Torso को  मैं एक बार में नहीं पढ़ पाया था। इसमें विवरण इतना ग्राफ़िक था कि मुझे लगा मुझे उल्टी हो जाएगी। मेरे साथ ऐसा बहुत कम होता है। मैंने उन्हें एडवर्ड ली की एक और कृति The Portrait of a  Psychopath as a young girl के विषय में भी बताया। मैंने उन्ही दिनों American Pyscho पढ़ी थी और ये पाया था की एडवर्ड ली के उपन्यास के मुख्य करिदार के सामने अमेरिकन साइको का मुख्य किरदार बच्चा था। ऐसी ही चर्चा हो रही थी कि अमीर सिंह जी ने कहा कि फिर आपको पोर्न में वायलेंस पसंद है। मैंने उन्हें बताया कि नहीं मुझे हार्ड कोर पोर्न भी पसंद नहीं आता। मुझे सॉफ्ट कोर पोर्न देखना पसंद है। उन्होंने कहा ये कैसे हो सकता है ? मुझे हॉरर  में gore पसंद है लेकिन पोर्न में वो नही तो मैंने कहा मेरे लिए दोनों अलग बातें है। जब मैं हॉरर में gore पढता हूँ तो मैं साइकोपैथ पे साथ नहीं होता हूँ। मैं ज्यादातर वक्त उस किरादार के साथ होता हूँ जो उसे रोकना चाहता है। लेकिन जब कोई पोर्न  देखता है तो वो उसमे काम करने वाले कलाकारों की जगह अपने को इमेजिन करता है। ऐसे में जब मैं पोर्न देखता हूँ तो मैं क्योंकि मैं अपने पार्टनर के साथ हिंसा नही कर सकता तो वैसा पोर्न मुझे पसंद नहीं आता। ऐसे ही थोड़ी देर gore और पोर्न के के ऊपर डिस्कशन हुआ। हमारा डिस्कशन चल रहा था। बीच में योगी भाई ने भी पार्टिसिपेट किया। फिर जैसा विमर्शों के साथ होता है  ये भी अपने आप खत्म हो गया। हम सब चुप थे और खिड़की से आने वाले नजारों को  देख रहे थे।

जैसे हम गुरु शिखर की तरफ पहुँचे तो ट्रैफिक बढ़ता जा रहा था। गाड़ियों से सड़क खचाखच भरी थी। हम गुरु शिखर के काफी नज़दीक थे। कुछ लोग ट्रैफिक को नियंत्रित कर रहे थे। कुछ लोग एक कार के सामने थे और ड्राईवर से उनकी कुछ बहस हो रही थी। उस कार में आगे दो लोग और पीछे महिलाएं बैठी थी। गर्मागर्म बहस जारी थी और फिर अचानक हाथ पाँव चलने लगे। एक व्यक्ति ड्राईवर, जो कि कार वालों का लड़का ही लग रहा था, को मारने लगा। उस लड़के के बगल में एक अधेड़ व्यक्ति बैठे थे जिन्होंने शायद उस व्यक्ति से गाली देकर बात की थी और शायद उस लड़के ने भी ऐसे ही बदतमीजी से बात की थी। बहस तगड़ी हो गयी। जिस व्यक्ति ने ड्राईवर को मारा था वो उधर से वापस गया और अपनी गाड़ी से बेसबॉल का बैट निकाल कर लेकर आ गया। जो ड्राईवर पिटा था उनके पीछे जो औरतें थी वो भी कार से उतरने लगी तो कुछ लोगों ने उन्हें समझाया। हमारी कार उनके बगल में ही थी तो जी पी सर ने भी उनको शांत रहने को बोला। किसी तरह लोगों ने बात शांत कराई और कुछ ने उस व्यक्ति को पकड़ा और कुछ ने कार वालो को आगे निकलने के लिए बोला। जी पी सर ने कमेंट किया कि उन्हें अब तक लगता था कि पंजाब में ही ये सब होता है। वो माहोल को हल्का करने की कोशिश कर रहे थे। वैसे अगर देखा जाये तो गलती कार वाले की थी। जो दूसरा व्यक्ति था वो केवल ट्रैफिक ही नियंत्रण कर रहा था। कार वाले दोनों व्यक्तियों ने पहले तो उससे  तू तड़ाक में बात की और फिर शायद उसे गाली भी दी। ऐसे में उस व्यक्ति का गर्म होना जायज था।

इंडिया में एक यही बात मुझे पसंद नहीं आती कि यहाँ आर्थिक स्थिति देखकर इज्जत दी जाती है। रिक्शेवाले भाई से लोग अक्सर तू तड़ाक में बात करेंगे और अगर कोई अमीर व्यक्ति दिखेगा तो आप लगाकर बात कि जाएगी। रिक्शे वाले  भाई भी अपनी रोजी कमा रहा और वो भी इज्जत के उतने ही हकदार हैं जितने की आप।  ऐसे में जब लोग ये दोगला पन दिखाते हैं तो उनके लिए मेरे मन में इज्जत अपने आप ही घट जाती है। इधर कार वाले ने भी वही किया था। उन्हें लग रहा था कि क्योंकि उनके पास कार है तो वो सड़क में खड़े उस बंदे से बदतमीजी से बात कर लेंगे। आमतौर पर कोई दूसरा होता तो उनकी बात सुन लेता। इस भाई ने कान के रख दिए। मुझे तो उसकी गलती नहीं लगी।

खैर, माहोल थोड़ा भारी तो हो गया था। जब आप घूमने निकलते हो तो खुशनुमा माहौल चाहते हो। हम थोड़े आगे बड़े और फिर चूँकि ट्रैफिक ज्यादा था तो हमने उधर से पैदल ही गुरु शिखर जाने की सोची। वैसे भी हम ज्यादा दूर नहीं थे। चलते हुए हम इसी इंसिडेंट के ऊपर बात कर रहे थे। अगर उस कार वाले ने प्यार से बात कर ली होती तो ये सब नहीं होता। वैसे भी प्यार से निन्यानवे प्रतिशत काम आपके हो जाते हैं। ऐसा बहुत हम होता है कि आप किसी से प्यार से बात करे और वो आपसे उस लहजे में बात न करे। ऐसे ही बातचीत करते हम ऊपर पहुँच गये।
गुरु शिखर पर पहुंचे हम। जीपी जी और अमीर जी दिख रहे हैं तस्वीर में । 

गुरुशिखर जाने के लिए गेट 


ऊपर हमारे ग्रुप के कुछ लोग पहले से ही पहुँचे हुए थे। उन्होंने हमे इशारा किया। जी पी सर लोग शोर्ट कट से उनकी तरफ चले गये। शार्ट कट एक सीढ़ी थी जो सीधे मंदिर तक जाती थी।  मैं और राकेश भाई प्रॉपर रास्ते से ऊपर की तरफ बढ़ने लगे। मंदिर तक जाने के लिए एक inclined slope थी जो ऊपर तक जाती थी। उधर जाते रास्ते के किनारे दुकाने बनी थी जो खाने का सामान, सजाने का सामान इत्यादि बेच रही थी। नीचे से ऊपर का रास्ता पाँच छः मिनट का था। हम जल्द ही ऊपर पहुँच गये।
समुद्र तल से ऊँचाई दर्शाती दीवार 
पहले हम पीछे की तरफ गए और हमने उधर थोड़ी फोटो खींची।
ऊपर देखने लायक इतना कुछ नहीं था। एक मंदिर सा था। एक बड़ी घंटी थी जिसके सामने कई लोग फोटो खिंचवा रहे थे। उसके आस पास लोग शहद के पास मक्खी की तर्ज पर खड़े थे। लोग ज्यादा थे इसलिए मैं और रकेश भाई उधर नहीं गये। हाँ, बाद में पता चला एसएमपीयंस  उधर गये थे तो उनकी तस्वीर मैं इधर जोड़ लूँगा ताकि आप लोगों को आईडिया हो सके।  एक दुकान थी और उसके बगल में कुछ टेबल कुर्सी लगी हुई लगी हुई थी। लोगों से वो जगह भरी हुई थी। हमने उधर थोड़ी देर फोटो खींची।

हम पिछले बार देर कर चुके थे लेकिन अब देर नहीं करना चाहते थे। इसलिए जब हमे काफी देर तक ऊपर कोई नहीं दिखा तो हमने सोचा कि हमे देर न हो गयी हो और ये सोचकर हम जल्दी नीचे आ गये। मुझे भीड़ भाड़ वैसे भी इतनी पसंद नहीं है तो मैं उधर से जल्द ही निकलना चाहता था।
विहंगम नज़ारे देखते हुए राकेश भाई 

ऊपर से दिखती प्राकृतिक छटा 

ऊपर मौजूद दुकान 

ऊपर मंदिर की तरफ जाता रास्ता। बगल में मौजूद रेस्टोरेंट 

ऊपर से दिखता मनमोहक दृश्य 

दत्तात्रेय जी का मंदिर। राकेश भाई पता नहीं क्यों कांचा चीना बन गए थे। शायद मांडवा के विषय में सोच रहे होंगे। 😜😜😜


घंटा हिलाते अल्मास भाई,साथ में विद्याधर भाई और पुनीत भाई 
हम नीचे पहुँचे तो हमे योगी भाई दिखे। वो जिस गाड़ी के सामने थे उसके अन्दर गुरूजी बैठे हुए थे। उन्होंने हमे देखा तो बोला कि अरे तुम जल्दी आ गये। पिछली बार बहुत गाली मिली थी तुम्हे। हमने कहा तभी तो जल्दी निपटा लिया। लेकिन नीचे आकर पता चला कि सभी ऊपर थे। ऊपर जाकर हमने देखा था कि गुरुशिखर तो खूबसूरत था लेकिन उसके आस पास का इलाका भी काफी अच्छा था। हमने गुरु जी को कहा हम इसी रोड आगे जा रहे हैं। उसी रोड में आगे जाकर शायद एयर फाॅर्स का कुछ बेस टाइप भी था जहाँ आम जनता को जाने की अनुमति नहीं थी। लेकिन वो काफी दूर पर था जहाँ हमे वैसे भी नहीं जाना था। योगी भाई अपनी चोट के कारण ऊपर नहीं गये थे लेकिन चूँकि इधर सडक थी जो समतल थी तो वो भी हमारे साथ हो लिए। हम उधर चल रहे थे तो मैंने कहा कि मुझे पर्यटक स्थल तक आने तक जो रास्ते आसान कर दिए हैं वो बिलकुल पसंद नहीं। उन्होंने कहा क्यों? मैंने कहा अब इधर ही देख लो।कहने को सबसे ऊँची चोटी है लेकिन चलने के नाम पर कुछ भी नही। ऊँची चोटी में चढ़ने का जो एहसास होता है वो गायब है।  ऐसे में इधर आने न आने का कोई फायदा भी तो नहीं है। फिर इतनी गाड़ियां, इतना प्रदूषण। मेरे हिसाब से तो यही सही रहता कि इसके एक डेढ़ किलोमीटर नीचे ही गाड़ियों की आवाजाही बंद कर दी गयी होती तो इधर ज्यादा शान्ति होती क्योंकि फिर घुमक्कड़ी के शौक़ीन ही इधर आते। बाकी लोग तो चढ़ाई के नाम पर ही अलग हो जाते। वो दोनों मेरी बात से सहमत नहीं थे क्योंकि ये बातें तो मैं अपने स्वार्थ के लिए बोल रहा था।मुझे चलना पसंद है इसलिए कह रहा था। लेकिन मैं सच में सोचता हूँ कि  कुछ पर्यटक स्थल ऐसे रखने चाहिए जहाँ जुनूनी लोग ही पहुँच सके। इससे आर्थिक नुक्सान तो होगा लेकिन उस जगह की खूबसूरती बरकरार रहेगी। जिस तरह से रास्ता आसान कर दिया गया है उस वजह से कोई भी  मुँह उठाकर आ जाता है। एक बार त्रिउन्ड ट्रेक पर गया था तो कुछ लोग स्पीकर लेकर चल रहे थे और जिस शोर शाराबे से दूर जाने के लिए हम उधर गये थे उस शोर शराबे को अपने साथ लेकर आ गये थे। मेरी समझ में ये नहीं आया था कि अगर गाने ही सुनने थे तो हेड फोन में सुनलो। जो स्पीकर खरीद सकता है वो हेड फोन भी खरीद सकता है। ये स्पीकर लगाकर  दूसरों को सुनाने की क्या जरूरत है। और इतनी सी बात इन संगीत प्रेमियों के समझ में क्यों नहीं आती इससे मुझे हैरत होती है। हमारे अन्दर इसी  सिविक सेंस की  कमी है। खाली पैसे आने से कुछ नहीं होगा जब तक ऐसा सिविक सेंस नहीं आता। आपका इस मामले में क्या विचार है?

खैर,ऐसे ही बातें करते हुए हम पीछे वाली सड़क पर आगे बढ़ गये। उधर काफी चट्टाने थीं। हम सडक से नीचे उतरे और उन चट्टानों की तरफ बढ़ गये।  उन चट्टानों पर खड़े होकर  और टेढ़े मेढे होकर हमने काफी फोटो खिंचवाई।
गुरुशिखर जाने वाली रोड के आस पास का दृश्य 

ये रोड रिस्ट्रिक्टेड थी। फोटो में योगी भाई का कुछ प्रतिशत हिस्सा भी आया है। 

चट्टानों पर चढ़कर बैठे योगी भाई। 


चट्टानों के बीच में खड़ा मैं। फोटो क्रेडिट : राकेश भाई या योगी भाई में से कोई एक 

बकलोली करते हुए। ये भी घुमक्क्ड़ी का एक जरूरी हिस्सा है। 

योगी भाई और राकेश भाई 

हम ग्यारह चौव्वन पर गुरु शिखर पहुँचे थे। बारह बीस के करीब मैं और राकेश भाई गुरुशिखर होकर, फोटो वगेरह खिंचवाकर नीचे आ गये थे। और बारह चालीस तक हम गुरु शिखर वाली रोड पर आगे जाकर फोटो वगेरह खींचवा कर वापस आ गये थे। जब तक हम वापस आये तब तक बाकी लोग भी आ गये थे। हमारी गाड़ी वाले तो सभी आ गये थे तो हम गाड़ी में बैठकर अपने अगले पर्यटन स्थल की ओर बढ़ चले।

क्रमशः
पूरी ट्रिप के लिंकस
माउंट आबू मीट #१: शुक्रवार का सफ़र
माउंट आबू मीट #२ : उदय पुर से होटल सवेरा तक
माउंट आबू  #3 (शनिवार): नक्की झील, टोड रोक और बोटिंग
माउंट आबू #4: सनसेट पॉइंट, वैली वाक
माउंट आबू मीट #5: रात की महफ़िल
माउंट आबू मीट #6 : अचलेश्वर महादेव मंदिर और आस पास के पॉइंट्स
माउंट आबू #7:गुरुशिखर

4 टिप्पणियाँ

आपकी टिपण्णियाँ मुझे और अच्छा लिखने के लिए प्रेरित करेंगी इसलिए हो सके तो पोस्ट के ऊपर अपने विचारों से मुझे जरूर अवगत करवाईयेगा।

  1. वाह भाई वाह,
    लेख में जीवंत चित्रण कर दिया।
    गाली पडती तो भाई के कलेजे को ठंडक पडती😀😀,
    खैर गाली आपको नहीं तो यातायात सम्भाल रहे बंदे को पड गयी, बदले में झापड रसीद किया ये ठीक ही किया।
    सही कहा भाई, भारत में पैसे वाली औकात देखकर सम्बोधन का तरीका उपयोग करते है।
    दो नम्बर से बने अमीर को भी जी व आप लगाकर बोलते है और ईमानदारी से जीवनशैली जीने वाले गरीब को तू तडाक जैसे असभ्य शब्दावली का उपयोग लगभग सभी करते है कुछ अपवाद तो हर जगह मिलेंगे।

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. जी मेरा फलसफा तो ये है। दो दिन की ज़िन्दगी है। सबसे प्यार मोहब्बत से बातें करो तो आराम से कटेगी ही। उससे वातावरण सकारात्मक रहता है। हाँ ,कोई बदतम्मीजी से बात करे और समझाने पर भी न मने तो सख्त बनना पड़ता है। लेकिन ऐसी नौबत बहुत कम आती है।

      हटाएं
  2. बहुत ही बढ़िया और विस्तृत जानकारी

    जवाब देंहटाएं

एक टिप्पणी भेजें

आपकी टिपण्णियाँ मुझे और अच्छा लिखने के लिए प्रेरित करेंगी इसलिए हो सके तो पोस्ट के ऊपर अपने विचारों से मुझे जरूर अवगत करवाईयेगा।

और नया पुराने