कल बैठा जगजीत सिंह जी कि गायी हुई ग़ज़ल सुन रहा था । ग़ज़ल के बोल दिल को छू गये और मैं इसे काफी बार सुनता रहा। यह ग़ज़ल शिव कुमार बटालवी साहब की लिखी हुई थी। और इसके बोल इस प्रकार है :
रोग बनके रह गया है , प्यार तेरे शहर दा ,
मैं मसीहा वेखिया, बीमार तेरे शहर दा ,
ऐदिया गालियाँ मेरी , चढ़दी जवानी खा लई,
क्यूँ करा न दोस्ता , सत्कार तेरे शहर दा ,
जित्थे मोया बाद भी , कफ़न नहीं होया नसीब ,
कौन पागल हुण करे , ऐतबार तेरे शहर दा ,
ऐथे मेरी लाश तक , नीलाम कर दित्ती गयी ,
लाथ्या कर्जा न, फिर भी यार तेरे शहर दा
- शिव कुमार बटालवी
रोग बनके रह गया है , प्यार तेरे शहर दा ,
मैं मसीहा वेखिया, बीमार तेरे शहर दा ,
ऐदिया गालियाँ मेरी , चढ़दी जवानी खा लई,
क्यूँ करा न दोस्ता , सत्कार तेरे शहर दा ,
जित्थे मोया बाद भी , कफ़न नहीं होया नसीब ,
कौन पागल हुण करे , ऐतबार तेरे शहर दा ,
ऐथे मेरी लाश तक , नीलाम कर दित्ती गयी ,
लाथ्या कर्जा न, फिर भी यार तेरे शहर दा
- शिव कुमार बटालवी
इस ग़ज़ल को आप इन लिंक्स पे जाके सुन सकते हैं।
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